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रविवार, 17 मई 2009

कथा संध्या : लघु कथा : विरोधी -अरुण शर्मा

अकबर ने बीरबल से कहा- 'क्याबात है बीरबल आजकल राज्य में हर ओर से भ्रष्टाचार की आवाजें सुनायी दे रहीं हैं?

बीरबल ने कहा- 'हुज़ूर! आपके कुछ जागीरदार-सूबेदार बहुत भ्रष्ट हो गए हैं। अब आपके रस-काज के संचालन में भ्रष्ट लोगों का बोलबाला हो गया है।'

अकबर ने बीरबल की स्पष्टवादिता से प्रसन्न होकर उसे इनाम दिया।

कुछ दिनों बाद अकबर ने बीरबल से फ़िर पूछा- 'आजकल चारों ओर भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार सुनायी पड़ रहा है, क्या बात है?

बीरबल ने कहा- 'हुज़ूर आपके सरे लोग चाहे वे आपके नेता हों या अफसर सब भ्रष्ट हो गए हैं। अपने ही लोग जब भ्रष्ट हो गया हैं तो आवाज़ आनी स्वाभाविक है।

इस बार अकबर ने अप्रसन्न होकर बीरबल को राज-काज से खदेड़ दिया और उसे विरोधी करार दिया।

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2 टिप्‍पणियां:

manvanter ने कहा…

good sattire.

sushama nigam ने कहा…

युगीन सत्य को उद्घाटित करती लघुकथा.