नव काव्य विधा: चुटकी
समयाभाव के इस युग में बिन्दु में सिन्धु समाने का प्रयास सभी करते हैं। शहरे-लखनऊ के वरिष्ठ रचनाकार अभियंता अमरनाथ ने क्षणिकाओं से आगे जाकर कणिकाओं को जन्म दिया है जिन्हें वे 'चुटकी' कहते हैं।
चुटकी काटने की तरह ये चुटकियाँ आनंद और चुभन की मिश्रित अनुभूति कराती हैं। अंगरेजी के paronyms की तरह इसकी दोनों पंक्तियों में एक समान उच्चारण लिए हुए कोई एक शब्द होता है जो भिन्नार्थ के कारण मजा देता है।
गिरिजा
उसने बताया नाम जब गिरिजा.
दर्द तब चीख पड़ा मैं: 'जा तू गिर जा..'
अंतुले
नाम है इनका अंतुले
सदा ही रहते अन तुले..
गोबी
पहुँचा मरुस्थल जब वह गोबी..
लगा ढूँढने वह फूल गोभी..
नंदmain bola: 'laya bakra'
उसकी सबसे बड़ी जो नंद..
वह समझती ख़ुद को महानंद..
बकरा
मैं बोला:'लाया बकरा.'
वह बोली:'तू क्या बक रा?'
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2 टिप्पणियां:
पहली बार इस विधा के बारे में जानकारी हुई. रचनाएँ मन को भाईं. अमरनाथ जी को नव विधा के जन्म हेतु बधाई.
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