एक शे'र
आचार्य संजीव 'सलिल'
जब तलक जिंदा था, रोटी न मुहैया थी।
मर गया तो तेरही में दावतें हुईं॥
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
एक शे'र
आचार्य संजीव 'सलिल'
जब तलक जिंदा था, रोटी न मुहैया थी।
मर गया तो तेरही में दावतें हुईं॥
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7 टिप्पणियां:
shaandar
सामाजिक रूढियों पर चोट करती सशक्त लघुकथा.
bahut achchhee rachna.
Thought provoking.
Yahi saty hai.....
कम शब्दों में
अधिक उकेरन
Babli ने कहा…
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत बढ़िया लगा! मैं भारतीय हूँ इस बात का मुझे गर्व है!
Wednesday, May 27, 2009 9:27:00 AM
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