बलिहारी गुरु सोवत दीन जगाय.
जन्म-जन्म का सोया मनुआ, शब्दन लीन चिताय.
माया-मोह में हम लिपटाने, जग में फिरत भुलाय.
जन्म-कर्म के बंधन निशदिन, रहत हमें भरमाय.
काम-क्रोध की नदिया गहरी, लेती हमें बहाय.
बलिहारी गुरु संत हुलसी!, 'विद्यहि' लीन बचाय.
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शनिवार, 9 मई 2009
गुरु वन्दना: विद्या सक्सेना, कानपूर,
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माया-मोह
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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1 टिप्पणी:
aap bhagyshalee hain jo gurukripa ka prasad paya.
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