विश्व वाणी हिन्दी के श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार, शिक्षाविद तथा चिन्तक नियाज़ जी द्वारा इस स्तम्भ में विविध आंग्ल साहित्यकारों के साहित्य का मंथन कर प्राप्त सूक्ति रत्न पाठको को भेंट किए जा रहे हैं। संस्कृत में कहा गया है- 'कोषस्तु महीपानाम् कोशाश्च विदुषामपि' अर्थात कोष या तो राजाओं के पास होता है या विद्वानों के।
इन सूक्तियों के हिन्दी अनुवाद मूल की तरह प्रभावी हैं। डॉ। अम्बाशंकर नागर के अनुसार 'अनुवाद के लिए कहा जाता है कि वह प्रामाणिक होता है तो सुंदर नहीं होता, और सुंदर होता है तो प्रामाणिक नहीं होता किंतु मैं यह विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि इन सूक्तियों का अनुवाद प्रामाणिक भी है और सुंदर भी।'
'नियाज़' जी कहते हैं- 'साहित्य उतना ही सनातन है जितना कि मानव, देश और काल की सीमायें उसे बाँध नहीं सकतीं। उसके सत्य में एक ऐसी सत्ता के दर्शन होते हैं जिससे अभिभूत होकर न जाने कितने युग-द्रष्टाओं ने अमर स्वरों में उसका गान किया है। प्रांजल विचार संचरण के बिना श्रेष्ठ नव साहित्य का निर्माण असंभव है।' आंग्ल साहित्य के कुछ श्रेष्ठ रचनाकारों के साहित्य का मंथन कर नियाज़ जी ने प्राप्त सूक्ति रत्न बटोरे हैं जिन्हें वे पाठकों के साथ साँझा कर रहे हैं। सूक्तियों का हिन्दी काव्यानुवाद कर रहे हैं आचार्य संजीव 'सलिल' ।
सूक्तियाँ शेक्सपिअर के साहित्य से-
Evening संध्या
The setting Sun, and the music at the close,
As the last taste of sweets, is sweetest last.
ढलता रवि, संगीत अंत का, देता उतना ही आल्हाद।
जितना मृदुतम मधुप्रेमी को, लगता मधु का अंतिम स्वाद.
अस्त हो रहा सूर्य हो, या अंतिम संगीत.
लगे मधुरतम, आख़िरी, मिष्ठानों सा मीत..
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3 टिप्पणियां:
सूक्ति-सलिला ज्ञान का समुद्र है. शेक्सपिअर के साहित्य से चुनी हुई सूक्तियां अर्थ सहित पढ़कर मन प्रसन्न हो गया. प्रो. नियाज़ का अनुवाद सारगर्भित तथा सलिल जी का दोहांनुवाद जीवंत है.
मैं नियाज़ जी के कृतित्व पर शोध कार्य कर रही हूँ. वे ज्ञान के भंडार हैं. दिव्या नर्मदा को उनका आशीष मिलना बहुत शुभ है. यह स्तम्भ सबके लिए उपयोगी है.
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