कुल पेज दृश्य

जीवन-धारा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
जीवन-धारा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 13 नवंबर 2025

मीना भट्ट, जीवन-धारा, पुरोवाक्

पुरोवाक् 
लोकोपयोगी गीतों की मंजूषा ''जीवन धारा''   
- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
                    सनातन सलिला नर्मदा की घाटी आदि काल से साधना भूमि के रूप में प्रसिद्ध है। साधना की यह विरासत अतीत से वर्तमान तक गतिमान है। सर्व हित की साधना केवल आध्यात्मिक व्यक्तित्व ही नहीं करते, सांसारिक व्यक्ति भी सर्व कल्याण की साधना करता है। साहित्य की साधना इसी प्रकार की साधना है। साहित्य वह जिसमें सबका हित समाहित हो। नर्मदा तटीय संस्कारधानी जबलपुर की पुण्य भूमि पर साहित्य सृजन की दिव्य परंपरा चिरकालिक है। संस्कारधानी के समसामयिक साहित्य-साधकों में 'मीना भट्ट' एक ऐसा नाम है जो सत्य-शिव-सुंदर और सत-शिव-सुंदर को साहित्य सृजन का लक्ष्य मानकर, निरंतर सृजन में रत है। सामान्यत: नया साहित्यकार अपने लिखे को ही श्रेष्ठ समझता और आत्म मुग्ध रहता है। अंतर्जाल के विविध समूहों पर अधकचरा साहित्य निरंतर परोसा जा रहा है। मीना जी इस कुप्रवृत्ति का विरोध बोलकर नहीं, निरंतर लिखकर करती हैं। वे लिखने के साथ-साथ निरंतर पढ़ती और समझती हैं। गीत-गजल आदि विधाओं में मीना का रचनाकार कलम उठाने के पहले उसका अध्ययन करता है, निरंतर अभ्यास कर सृजन करता है, जानकारों से विमर्श करता है और अपने लेखन को तराशने के बाद प्रकाशित करता है। संभवत:, इस मनोवृत्ति का कारण मीना जी का विधि और न्याय विभाग से जुड़ा रहना है। मीना जी का एक और वैशिष्ट्य आत्म प्रचार से विमुख रहना और अपने पूर्व पद का अहं न रखना भी है। यह निरासक्त भाव लेखन के विषय और शिल्प के प्रति तटस्थ रहकर उससे संबंधित मौलिक चिंतन करने और उसे रचनाओं में अभिव्यक्त करने में सहायक होता है। ''जीवन धारा'' मीना जी की नवीन काव्य कृति है, जिसमें मीना जी की सुदीर्घ काव्य-सृजन साधना का संस्कार पंक्ति-पंक्ति में प्रतिबिंबित है।

                    जीवन धारा का श्रीगणेश वाग्देवी वंदना से करने की सनातन परंपरा को जीवंत रखते हुए मीना जी उन्हें 'महाबला', 'शत्रुनाशिनी', 'सुलोचना', 'सुमंगला', 'मुक्तिवाहिनी', 'प्रेमदायिनी', 'सुहासिनी', 'श्रीप्रदा', 'प्रशासनी' आदि अपारंपरिक विशेषणों से अभिषिक्त कर, मौलिक चिंतन दृष्टि का परिचय देती हैं। श्रीराम पर केंद्रित रचना में 'गंगा धारे' लिखा जाना मौलिक तो है किंतु लोक में 'गंगा धारे' शिव जी हेतु प्रयुक्त होता है। इसे 'गंग किनारे' लिखना अधिक समीचीन होता। वंदना क्रम में श्री कृष्ण, भारत देश के पश्चात लोक का स्मरण 'प्रेम' भाव को अपनाने के आह्वान से किया जाना द्वेषाधिक्य से ग्रसित इस समय में सर्वथा श्लाघ्य है। जीवन धारा के गीतों में जन सामान्य को जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने, पारस्परिक सद्भाव वृद्धि, सत्कर्म करने की प्रेरणा, राष्ट्र भक्ति, नैतिक मूल्यों की स्थापना तथा पर्यावरण और प्रकृति के प्रति दायित्व बोध के साथ नर-नारी के मध्य स्वस्थ्य पारस्परिक सहयोग भाव की आवश्यकता प्रतिपादित कर मीना जी ने अपने गीतों को केवल वाग्विलास होने से बचाकर, लोकोपयोगी और अनुकरणीय बनाने में सफलता अर्जित की है। गत ७ दशकों में प्रगतिवाद और यथार्थ की दुहाई देकर हिंदी साहित्य में जिस नकारात्मक और द्वेषवर्धक प्रवृत्ति की बढ़ आई है, उसका रचनात्मक प्रतिरोध करते हुए मीना जी ने अपने हर गीत में सकारात्मक और निर्माणात्मक सुरुचि का बीजारोपण किया है। 

                    मानव जीवन में ऋतु परिवर्तन की महती भूमिका है। मीना जी ने मौसमों के अतिरेकी विनाशक परिदृश्य पर मोहक स्वरूप को वरीयता ठीक ही दी है। सावन वर्णन में घोंसले भीगने पर भी पंछी का दाना चुनने आना उसकी जिजीविषा दर्शाता है किंतु चुगने को दाना न मिलना मनुष्यों के कदाचरण का संकेत करता है- 

छोड़ घोंसले भीगे-भीगे, 
पंछी आए आँगन में।
नहीं मिला दान चुगने को,
अब के देखो सावन में।। 

                    हमने बचपन में देखा है कि गरीब से गरीब घर में भी गाय और कुत्ते के लिए रोटी निकली जाती थी, अब संपन्नतम घरों से भी किसी को कुछ नहीं मिलता। मीना जी की खूबी यही है कि वे स्थूल वर्णन न कर परोक्ष संकेत करती हैं, समझनेवाले के लिए इशारा ही काफी होता है। 

                    वर्षा न होने संबंधी गीत में ''रिक्त नेह के घट सारे हैं, / कुटिल मलिनता भरी हुई है। / पत्थर हृदय जमाना सारा, / मानवता भी मरी हुई है।। /  चटक मन नित प्यास तरसे, / सूख हुआ तन भी पंजर है। / तरस रहे वर्षा को हम सब, / मौन मगर बैठ अंबर है।।'' लिखकर गीतकार ने अवर्षा के लिए प्रकृति को दोष न देते हुए मानव में स्नेह के अभाव और मलिनता के आधिक्य को इंगित कर 'वर्षा' को केवल मौसमी बरसात नहीं मानव जीवन में स्नेह की वर्षा के अभाव के रूप में शब्दित किया है, यह श्लेष प्रयोग गीत को चिंतन और चिंता दोनों धरातलों पर प्रतिष्ठित करता है। 

                    लोकतंत्र का आधार हर नागरिक को अपनी  सरकार आप चुनने का संविधान सम्मत मताधिकार है। 'जागो मतदाता, जागो अब' गीत में नागरिकों को उनके गुरुतर दायित्व का बोध कराया गया है। अपने गीतों में मीना जी सरल, सहज, प्रवाहमयी भाषा का उपयोग करते हुए अन्य भाषाओं के शब्दों से परहेज नहीं करतीं। इस गीत में अंग्रेजी भाषा के पोलिंग बूथ, वोटिंग कार्ड शब्दों का प्रयोग उनकी भाषिक उदार दृष्टि का परिचायक है। तद्भव / देशज शब्दों (मनवा, करतार, हिय, टोटा, अँखियाँ, जिया, नैना, डगर, छोरी, भौंरा, करधनिया, इत-उत आदि), उर्दू में व्यवहृत अरबी-फारसी शब्दों (मस्त, तूफान, खुशियाँ, रोशनी आदि), शब्द युग्मों (निशि-वासर, निशि-दिन, दिन-रात, राग-द्वेष, पाप-पुण्य, दीन-दुखी, शीलवंत-गुणवंत, मंदिर-मस्जिद, चंदल-रोली,धूल-धूसरित, राग-रागिनी आदि), तत्सम शब्दों (नवल, हलाहल, मयंक, अनुपम, अंबुज आदि) के साथ अन्य भाषा के शब्दों के देशज रूपों (अंग्रेजी सैंडल - संदल, संस्कृत हट्ट - हाट आदि), शब्द-आवृत्ति (गली-गली, खंड-खंड, निरख-निरख, अंग-अंग आदि)  के साथ बटोही (भोजपुरी), सैंदुर (बुंदेली) आदि शब्दों का सम्यक-सार्थक प्रयोग मीना जी के शब्द-सामर्थ्य का परिचायक है। 

                    इस गीतों में शृंगार (आध्यात्मिक-सांसारिक, मिलन-विरह) , शांत, करुण, भक्ति तथा वीर रस अपनी सरसता के साथ यथास्थान सहभागी होकर संकलन को समृद्ध कर रहे हैं। संकलन का आलंकारिक वैभव रुचिवान पाठक को अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, रुपक, अतिशयोक्ति, पुनरावृत्ति आदि अलंकारों की छटा दिखाकर मुग्ध करता है। 

                    मीना जी व्यवसाय से न्यायाधीश रही हैं। स्वाभाविक है कि उन्हें कर्तव्य पालन और अनुशासन प्रिय हों। इस संकलन के माध्यम से केवम मनोरंजन न कार, उन्होंने पाठक के माध्यम से समग्र समाज को जाग्रत कार उसमें कर्तव्य बोध और अनुशासन पालन का पथ शक्कर में लपेटी कुनैन की गोली खिलाने की तरह किया है- 

देता गौरव है अनुशासन, 
देखो अलख जगाएगा। 
अनुशासन के पालन से ही 
युग परिवर्तन आएगा।  

                    इन गीतों की भाषा प्रांजल, प्रवाहमयी, सरस और सुबोध है। मुझे आशा हे नहीं भरोसा भी है कि ये गीत हर आयु वर्ग, क्षेत्र, पंथ और वादाग्रहियों द्वारा सराहे और समझें जाएँगे। लंबे समय बाद साहित्यिक गुणवत्ता युक्त लोकोपयोगी गीत संग्रह की पांडुलिपि का वाचन कर रसानंद में मगन होने का अवसर मिला है। मीना जी साधुवाद की पात्र हैं।  
          
***
संपर्क- विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१८३२४४                     

विचार हेतु 
लक्ष्मी दुर्गावती में काल-क्रम दोष (दुर्गावती पहले हुईं, लक्ष्मीबाई बाद में) 
पाना तुमको लक्ष्य अगर तो / निशि-वासर चलते रहिए  - तुम के साथ रहो, आप से साथ रहिए?