प्रकार: अर्धसम मात्रिक छंद
विधान २ पद, २ विषम चरण, २ सम चरण, १३-११ पर यति, पदादि में एज शब्द में जगण निषेध, पदांत गुरु-लघु
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दोहा में 'दो' मूल है, द्विपदी दो पग जान।
दो-दो हैं सम-विषम पद, कहता चरण जहान।।
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गौ भाषा को दोहता, दोहा गहता अर्थ।
गागर में सागर भरे, दोहाकार समर्थ।।
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विषम चरण दो आदि में, पहला-तीजा देख।
दूजा-चौथा सम चरण, दो इनको अवरेख।।
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दो अक्षर गुरु-लघु रहें, पंक्ति-अंत उच्चार।
दो शब्दों में जगन का, है प्रयोग स्वीकार।।
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मानव की करतूत लख, भुवन भास्कर लाल।
पर्यावरण बिगाड़कर, आप बुलाता काल।।
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प्रकृति अपर्णा हो रही, ठूँठ रहे कुछ शेष।
शीघ्र समय वह आ रहा, मानव हो निश्शेष।।
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नीर् वायु कर प्रदूषित, मचा रहा नर शोर।
प्रकृति-पुत्र होकर करे, नाश प्रकृति का घोर।।
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हत्या करता वनों की, रौंदे खोद पहाड़।
क्रुद्ध प्रकृति आकाश भी, विपदा रही दहाड़।।
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माटी मिट है कीच अब, बनी न तेरी कब्र।
चेताता है लाल रवि, सुधर तनिक कर सब्र।।
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मानव की करतूत लख, भुवन भास्कर लाल।
पर्यावरण बिगाड़कर, आप बुलाता काल।।
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प्रकृति अपर्णा हो रही, ठूँठ रहे कुछ शेष।
शीघ्र समय वह आ रहा, मानव हो निश्शेष।।
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नीर् वायु कर प्रदूषित, मचा रहा नर शोर।
प्रकृति-पुत्र होकर करे, नाश प्रकृति का घोर।।
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हत्या करता वनों की, रौंदे खोद पहाड़।
क्रुद्ध प्रकृति आकाश भी, विपदा रही दहाड़।।
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माटी मिट है कीच अब, बनी न तेरी कब्र।
चेताता है लाल रवि, सुधर तनिक कर सब्र।।
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