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मंगलवार, 19 अक्तूबर 2021

मुक्तिका

लेख : मुक्तिका क्या है?
संजीव 'सलिल'
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मुक्तिका वह पद्य रचना है जिसका-
१. प्रथम, द्वितीय तथा उसके बाद हर सम या दूसरा पद समान पदांत तथा तुकांत युक्त होता है। 

२. हर पद का पदभार हिंदी वर्ण या मात्रा गणना के अनुसार समान होता है।  तदनुसार इसे वार्णिक मुक्तिका या मात्रिक मुक्तिका कहा जाता है। उच्चार के अनुसार समान पदभार रखे जाकर भी मुक्तिका लिखी जा सकती है।  

३. मुक्तिका का कोई एक या कुछ निश्चित छंद नहीं हैं। इसे जिस छंद में रचा जाता है उसके शैल्पिक नियमों का पालन किया जाता है। 

४. हाइकु मुक्तिका में हाइकु के सामान्यतः प्रचलित ५-७-५ मात्राओं या उच्चार के शिल्प का पालन किया जाता है, दोहा मुक्तिका में दोहा, सोरठा मुक्तिका में सोरठा, रोला मुक्तिका में रोला छंदों के नियमों का पालन किया जाता है। ५-७-५ वर्णों को लेकर भी हाइकु मुक्तिका लिखी जाती है। 

५. मुक्तिका का प्रधान लक्षण यह है कि उसकी हर द्विपदी अलग-भाव-भूमि या विषय से सम्बद्ध होती है अर्थात अपने आपमें मुक्त होती है। एक द्विपदी का अन्य द्विपदीयों से सामान्यतः कोई सम्बन्ध नहीं होता।  

६. किसी विषय विशेष पर केन्द्रित मुक्तिका की द्विपदियाँ केन्द्रीय विषय के आस-पास होने पर भी आपस में असम्बद्ध होती हैं। 

७. मुक्तिका मूलत: हिन्दी व्याकरण-पिंगल नियमों का अनुपालन करते हुए लिखी गयी ग़ज़ल है। इसे अनुगीत, तेवरी, गीतिका, सजल, पूर्णिका आदि भी कहा गया है। 

गीतिका हिन्दी का एक छंद विशेष है। अतः, गीत के निकट होने पर भी इसे गीतिका कहना उचित नहीं है.

तेवरी शोषण और विद्रूपताओं के विरोध में विद्रोह और परिवर्तन की भाव -भूमि पर रची जाती है किन्तु शिल्प ग़ज़ल का शिल्प का ही है। 

हिन्दी ग़ज़ल के विविध रूपों में से एक मुक्तिका है। मुक्तिका उर्दू गजल की किसी बहर पर भी आधारित हो सकती है किन्तु यह उर्दू ग़ज़ल की तरह चंद लय-खंडों (बहरों) तक सीमित नहीं है। उर्दू लय खण्डों की पदभार गणना तथा पदांत-तुकांत, फारसी नहीं हिंदी व्याकरण-पिंगल के अनुसार रखे जाते हैं।  
१९-१०-२०१० 
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