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रविवार, 17 अक्तूबर 2021

सरस्वती चालीसा, छत्तीसगढ़ी, कन्हैया साहू 'अमित', अशोक अग्य

*सरस्वती चालीसा~छत्तीसगढ़ी भाषा*
(सर्वाधिकार सुरक्षित सामग्री)
जय जय दाई सरसती, अइसन दे वरदान।
अग्यानी ग्यानी बनय, होवय जग कल्यान।। (दोहा)
(चौपाई)
हे सरसती हरव अँधियारी।
हिरदे सँचरय झक उजियारी।।-1
जिनगी जग मा कटही रुख हे।
तोर चरण मा जम्मों सुख हे।।-2
मूँड़ मुकुट हीरा मणि मोती।
दगदग दमकय चारो कोती।।-3
सादा हंसा तोर सवारी।
कमल विराजे वीणाधारी।।-4
सुर सरगम के सिरजनहारी।
मान-गउन के तैं अवतारी।।-5
सारद तीन लोक विख्याता।
विद्या वैभव बल के दाता।।-6
सबले बढ़के वेद पुरानिक।
सरी कला के तहीं सुजानिक।।-7
ग्यान बुद्धि के तैं भंडारी।
तहीं जगत मा बड़ उपकारी।।-8
वरन वाक्य पद बोली भासा।
महतारी तैं सबके आसा।।-9
तोर दया ले सब्बो सिरजन।
कविता कहिनी गीता सुमिरन।।-10
जंतर मंतर कुछु नइ जानँव।
सबले पहिली तोला मानँव।।-11
मुरहा मैं मन के बड़ भोला।
गोहराँव मैं निसदिन तोला।।-12
हाथ जोड़ के करथँव विनती।
होय भक्त मा मोरो गिनती।।-13
मोर कुटी मा आबे दाई।
बिगड़े काज बनाबे दाई।।-14
एती वोती मैं झन भटकँव।
राग रंग मा मैं झन अटकँव।।-15
मोर करम ला सवाँरबे तैं।
अँचरा दे के दुलारबे तैं।।-16
जिनगी के दुख पीरा हर दे।
छँइहा सुख के छाहित कर दे।।-17
सुर नर मुनि मन महिमा गावैं।
संझा बिहना माथ नवावैं।।-18
तहीं ग्यान विग्यान विसारद।
सुमिरय तोला ऋषि मुनि नारद।।-19
तोरे पूजा आगू सब ले।
सरी बुता हा बनथे हब ले।।-20
विधि विधान जग के तैं बिधना।
बोली भाखा तोरे लिखना।।21
जीव जगत के तैं महतारी।
तोरे अंतस ममता भारी।।-22
तोर नाँव हे जग मा पबरित।
बरसाथस तैं किरपा अमरित।।-23
दाई चारो वेद लिखइया।
ग्यान कला अउ साज सिखइया।।-24
रचे छंद अउ कहिनी कविता।
भाव भरे बोहावत सरिता।-25
नीति नियम ला तहीं बखानी।
ग्रंथ शास्त्र हा तोर जुबानी।।-26
मंत्र आरती सीख सिखावन।
आखर तोरे हावय पावन।।-27
अप्पड़ होवय अड़बड़ ग्यानी।
कोंदा बोलय गुरतुर बानी।।-28
सूरदास हा बजाय बाजा।
बनय खोरवा हा नटराजा।।-29
बनथस सबके सबल सहारा।
जिनगी जम्मों तोर अधारा।।-30
भरे सभा मा लाज बचाथस।
अँगरी मा तैं जगत नचाथस।।-31
महतारी झन तैं तरसाबे।
अंतस खच्चित मोर हमाबे।।-32
हावँव लइका निच्चट अँड़हा।
परे हवँव मैं कचरा कड़हा।।-33
राखे रहिबे मोरो सुरता।
खँगे-बढ़े के करबे पुरता।।-34
अखन आसरा खँगे पुरोबे।
मन सुभाव मल मोरो धोबे।।-35
झार केंरवस, कर दे उज्जर।
बनय 'अमित' छकछक ले सुग्घर।।-36
मेट सवारथ झगरा ठेनी।
दया मया बोहा तिरबेनी।।-37
अरजी करत 'अमित' अभिमानी।
करबे किरपा तहीं भवानी।।-38
पूत 'अमित' के सदा सहाई।
कभू भुलाबे झन तैं दाई।।-39
अंतस ले जे तोला गावँय।
मनवांछित फल वोमन पावँय।।-40
सुमिरन करलव सारदा, लेलव सरलग नाम।
होहय जग मा मान बड़, सिद्ध परय सब काम।।(दोहा)
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*सरस्वती चालीसा~छत्तीसगढ़ी भाषा*
(सर्वाधिकार सुरक्षित सामग्री)
जय जय दाई सरसती, अइसन दे वरदान।
अग्यानी ग्यानी बनय, होवय जग कल्यान।। (दोहा)
(चौपाई)
हे सरसती हरव अँधियारी।
हिरदे सँचरय झक उजियारी।।-1
जिनगी जग मा कटही रुख हे।
तोर चरण मा जम्मों सुख हे।।-2
मूँड़ मुकुट हीरा मणि मोती।
दगदग दमकय चारो कोती।।-3
सादा हंसा तोर सवारी।
कमल विराजे वीणाधारी।।-4
सुर सरगम के सिरजनहारी।
मान-गउन के तैं अवतारी।।-5
सारद तीन लोक विख्याता।
विद्या वैभव बल के दाता।।-6
सबले बढ़के वेद पुरानिक।
सरी कला के तहीं सुजानिक।।-7
ग्यान बुद्धि के तैं भंडारी।
तहीं जगत मा बड़ उपकारी।।-8
वरन वाक्य पद बोली भासा।
महतारी तैं सबके आसा।।-9
तोर दया ले सब्बो सिरजन।
कविता कहिनी गीता सुमिरन।।-10
जंतर मंतर कुछु नइ जानँव।
सबले पहिली तोला मानँव।।-11
मुरहा मैं मन के बड़ भोला।
गोहराँव मैं निसदिन तोला।।-12
हाथ जोड़ के करथँव विनती।
होय भक्त मा मोरो गिनती।।-13
मोर कुटी मा आबे दाई।
बिगड़े काज बनाबे दाई।।-14
एती वोती मैं झन भटकँव।
राग रंग मा मैं झन अटकँव।।-15
मोर करम ला सवाँरबे तैं।
अँचरा दे के दुलारबे तैं।।-16
जिनगी के दुख पीरा हर दे।
छँइहा सुख के छाहित कर दे।।-17
सुर नर मुनि मन महिमा गावैं।
संझा बिहना माथ नवावैं।।-18
तहीं ग्यान विग्यान विसारद।
सुमिरय तोला ऋषि मुनि नारद।।-19
तोरे पूजा आगू सब ले।
सरी बुता हा बनथे हब ले।।-20
विधि विधान जग के तैं बिधना।
बोली भाखा तोरे लिखना।।21
जीव जगत के तैं महतारी।
तोरे अंतस ममता भारी।।-22
तोर नाँव हे जग मा पबरित।
बरसाथस तैं किरपा अमरित।।-23
दाई चारो वेद लिखइया।
ग्यान कला अउ साज सिखइया।।-24
रचे छंद अउ कहिनी कविता।
भाव भरे बोहावत सरिता।-25
नीति नियम ला तहीं बखानी।
ग्रंथ शास्त्र हा तोर जुबानी।।-26
मंत्र आरती सीख सिखावन।
आखर तोरे हावय पावन।।-27
अप्पड़ होवय अड़बड़ ग्यानी।
कोंदा बोलय गुरतुर बानी।।-28
सूरदास हा बजाय बाजा।
बनय खोरवा हा नटराजा।।-29
बनथस सबके सबल सहारा।
जिनगी जम्मों तोर अधारा।।-30
भरे सभा मा लाज बचाथस।
अँगरी मा तैं जगत नचाथस।।-31
महतारी झन तैं तरसाबे।
अंतस खच्चित मोर हमाबे।।-32
हावँव लइका निच्चट अँड़हा।
परे हवँव मैं कचरा कड़हा।।-33
राखे रहिबे मोरो सुरता।
खँगे-बढ़े के करबे पुरता।।-34
अखन आसरा खँगे पुरोबे।
मन सुभाव मल मोरो धोबे।।-35
झार केंरवस, कर दे उज्जर।
बनय 'अमित' छकछक ले सुग्घर।।-36
मेट सवारथ झगरा ठेनी।
दया मया बोहा तिरबेनी।।-37
अरजी करत 'अमित' अभिमानी।
करबे किरपा तहीं भवानी।।-38
पूत 'अमित' के सदा सहाई।
कभू भुलाबे झन तैं दाई।।-39
अंतस ले जे तोला गावँय।
मनवांछित फल वोमन पावँय।।-40
सुमिरन करलव सारदा, लेलव सरलग नाम।
होहय जग मा मान बड़, सिद्ध परय सब काम।।(दोहा)
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कन्हैया साहू 'अमित'
शिक्षक-भाटापारा छ.ग.
संपर्क~9200252055
कन्हैया साहू 'अमित'
शिक्षक-भाटापारा छ.ग. संपर्क~9200252055
सरस्वती वंदना
अशोक अग्य
*
माँ शारदे चहु दिश धरा का
अंग अंग बसंत हो।
संसार से दुर्दैव का बस
अंत हो बसंत हो।
दिव्य वीणा का मधुर सुर ताल मय संगम रहे।
काव्य की धारा बहे मन बुद्धि पर संयम रहे।
झनन झन झनकार से गुंजित सुरभि सुखवंत हो।
माँ.........
गीत पंचम में सुनाती बाग में कोयल मिले।
पुष्प नीले लाल पीले विविध रंग के हों खिले।
कामना के कल्पतरु के तर बसा रतिकंत हो।
माँ शारदे.......
नाचते नित मोर श्री वृन्दा विपिन की ओर हों।
कृष्ण राधे धुन सदा सर्वत्र ब्रज के छोर हो।
फूलती फलती धरा धन धान्य से अत्यंत हो।
माँ शारदे.......
बस तेरी आराधना मैं नित करूँ उठकर नमन।
मैं अकिंचन भी रहूँ पर दो मुझे संतोष धन।
लेखनी इस अग्य की भी रसिक हित रसवंत हो।
माँ शारदे........

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