कुल पेज दृश्य

बुधवार, 13 अक्तूबर 2021

हिंदी ग़ज़ल / मुक्तिका

हिंदी ग़ज़ल / मुक्तिका -
बहर --- २२-२२ २२-२२ २२२१ १२२२
*
एक वही सारी दुनिया में, किसको गैर कहूँ बोलो?
औरों के क्यों दोष दिखाऊँ?, मन बोले 'खुद को तोलो'
*
​खोया-पाया, पाया-खोया, कर्म-कथानक अपना है
क्यों चंदा के दाग दिखाते?, मन के दाग प्रथम धो लो
*
जो बोया है काटोगे भी, चाहो या मत चाहो रे!
तम में, गम में, सम जी पाओ, पीड़ा में कुछ सुख घोलो
*
जो होना है वह होगा ही, जग को सत्य नहीं भाता
छोडो भी दुनिया की चिंता, गाँठें निज मन की खोलो
*
राजभवन-शमशान न देखो, पल-पल याद करो उसको
आग लगे बस्ती में चाहे, तुम हो मगन 'सलिल' डोलो
***
मुक्तिका
*
ख़त ही न रहे, किस तरह पैगाम हम करें
आगाज़ ही नहीं किया, अंजाम हम करें
*
यकीन पर यकीन नहीं, रह गया 'सलिल'
बेहतर है बिन यकीन ही कुछ काम हम करें.
*
गुमनाम हों, बदनाम हों तो हर्ज़ कुछ नहीं
कुछ ना करें से बेहतर है काम हम करें.
*
हो दोस्ती या दुश्मनी, कुछ तो कभी तो हो
जो कुछ न हो तो, क्यों न राम-राम हम करें
*
मिल लें गले, भले ही ईद हो या दिवाली
बस हेलो-हाय का न ताम-झाम हम करे
*
क्यों ख़ास की तलाश करे कल्पना कहो
जो हमसफ़र हो साथ उसे आम हम करें
*

कोई टिप्पणी नहीं: