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डॉ. राजरानी शर्मा
प्राध्यापक हिन्दी
जन्म : १२ . ०५ . १९५५
मथुरा उत्तर प्रदेश
एम. ए . पी-एचडी.
रामचरितमानस का शैलीवैज्ञानिक अध्ययन
१९८४ से उच्च शिक्षा म प्र शासन
शोध निदेशक
पूर्व अध्यक्ष अध्ययनमंडल जीवाजी वि वि ग्वालियर
कवयित्री , लेखिका , समीक्षक , आकाशवाणी दूरदर्शन के लिये नियमित लेखन !
*
मेरे हिरदै आन बिराजो सुरसती
तुम्हरी स्तुति गाऊँ ....
कर वीणा अरु वेदविभूषित
कमलहस्त वर पाऊँ
हंसासनी श्वेतवसना शुचि
हरख हरख गुन गाऊँ
मेरे हिरदै .....
तुम्हरी कृपा जो पाऊँ सारदे
जीवन धन्य बनाऊँ
सुभ मति सुभ गति दूध धोयौ मन
तुम्हरी कृपा ते पाऊँ
मेरे हिरदै आन बिराजो सुरसती ....
कछु कह पाऊँ कछु रच पाऊँ
जीवन जोत जगाऊँ सारदे
तेरी कृपा की कोर मिलै तौ
नित नव छंद सुनाऊँ
मेरे हिरदै आन बिराजो ......
सत्य लखूँ सुंदर सौ सोचूँ
लेखनि विमल बनाऊँ
वरदहस्त परसाद में पाऊँ
शिवमय कछु रच पाऊँ
मेरे हिरदै आन बिराजो .......
करूँ साधना अरथ अाखर की
चित चंदन कर पाऊँ
साधूँ सुर और ताल शब्द के
दिव्य अरथ के अर्घ्य चढ़ाऊँ
मेरे हिरदै आन बिराजो .......
पावन पुण्य लेखनी पाऊँ
पल पल तुम्हरी ओर निहारूँ
जग में आइवो सफल करूँ माँ
कृपा की जोति जगाऊँ ....
मेरे हिरदै आन बिराजो सुरसती
मेरे हिरदै आन बिराजो सुरसती
तुम्हरी स्तुति गाऊँ ....
कर वीणा अरु वेदविभूषित
कमलहस्त वर पाऊँ
हंसासनी श्वेतवसना शुचि
हरख हरख गुन गाऊँ
मेरे हिरदै .....
तुम्हरी कृपा जो पाऊँ सारदे
जीवन धन्य बनाऊँ
सुभ मति सुभ गति दूध धोयौ मन
तुम्हरी कृपा ते पाऊँ
मेरे हिरदै आन बिराजो सुरसती ....
कछु कह पाऊँ कछु रच पाऊँ
जीवन जोत जगाऊँ सारदे
तेरी कृपा की कोर मिलै तौ
नित नव छंद सुनाऊँ
मेरे हिरदै आन बिराजो ......
सत्य लखूँ सुंदर सौ सोचूँ
लेखनि विमल बनाऊँ
वरदहस्त परसाद में पाऊँ
शिवमय कछु रच पाऊँ
मेरे हिरदै आन बिराजो .......
करूँ साधना अरथ अाखर की
चित चंदन कर पाऊँ
साधूँ सुर और ताल शब्द के
दिव्य अरथ के अर्घ्य चढ़ाऊँ
मेरे हिरदै आन बिराजो .......
पावन पुण्य लेखनी पाऊँ
पल पल तुम्हरी ओर निहारूँ
जग में आइवो सफल करूँ माँ
कृपा की जोति जगाऊँ ....
मेरे हिरदै आन बिराजो सुरसती
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वंदना
रुपहरण धनाक्षरी
८,८,८,८,प्रति चरण चार चरण समतुकांत
चरणांत गुरु लघु
शारदे माँ बार बार
करूँ विनती विचार,
भर ज्ञान का भंडार,
विद्या दान दोअपार।
ज्ञान जीवन का सार,
उत्कर्ष का है आधार,
सफलता का है द्वार,
।शरण आयी तिहार ।
करता दूर विकार,
प्रतिभा देता निखार,
स्वपन होते साकार,
मानता कभी न हार।
हृदय रखो उदार,
चित्त दीजिए सुधार,
करूँ शारदे पुकार,
करदे माता उद्धार।
मीना भट्ट
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