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शनिवार, 16 अक्तूबर 2021

सरस्वती वंदना, वीना श्रीवास्तव

सरस्वती माता - सकल विद्या दाता
दक्षिण भारत में खास करके तमिलनाडु में सरस्वती माता को विद्या का मूल और सब प्रकार के कला का कारण मानते हैं। विद्यारंभ के पहले "सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी  विद्यारंभम करिश्यामी सिद्धिर भवतु मे सदा" मंत्र जपते हैं। रोज सुबह शाम जब घर पर दिया जलाया जाता है तब सरस्वती की वंदना की जाती है।
वीना श्रीवास्तव
जन्म - १४ सितंबर १९६६, हाथरस।
आत्मजा - स्व. रमा श्रीवास्तव - स्व. महेश चन्द्र श्रीवास्तव।
जीवन साथी श्री राजेंद्र तिवारी।
शिक्षा - स्नातकोत्तर (हिंदी, अंग्रेजी)।
संप्रति - पत्रकारिता, स्वतंत्र लेखन। अध्यक्ष- शब्दकार, सचिव- (साहित्य ) हेरिटेज झारखंड, कार्यकारी अध्यक्ष – ग्रीन लाइफ।
प्रकाशन - काव्य संग्रह - तुम और मैं, मचलते ख्वाब, लड़कियाँ (३ पुरस्कार), शब्द संवाद (संकलन व संपादन), खिलखिलाता बचपन (स्तंभ)
परवरिश करें तो ऐसे करें (स्तंभ)। संपादन ‘भोर धरोहर अपनी’ त्रैमासिकी।
उपलब्धि - नाटक “बेटी”, "हिम्मत" आकाशवाणी राँची से प्रसारित-पुरस्कृत, प्रभात खबर में स्तंभ लेखन, अंतरराष्ट्रीय सम्मान - मास्को, बुडापेस्ट, इजिप्ट (मिस्त्र), इंडोनेशिया- (बाली), जर्मनी (बुडापेस्ट) में, देश में अनेक सम्मान।
संपर्क - सी- २०१श्री राम गार्डन, कांके रोड, रिलायंस मार्ट के सामने, रांची ८३४००८ झारखंड।
चलभाष - ९७७१४३१९००। ईमेल - veena.rajshiv@gmail.com ।
ब्लॉग लिंक- http://veenakesur.blogspot.in/
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शारदे माँ! मैं पुकारूँ
शारदे माँ! मैं पुकारूँ
हर पल तेरी बाट निहारूँ
सुर की नदिया तुम बहा दो
द्वेष की दीवार गिरा दो
मन में प्रेम के पुष्प खिलाके
सुर से सुर को तुम मिला दो
तू जो आए चरण पखारूँ
हर पल तेरी बाट निहारूँ
अंधकार को दूर करो माँ!
ज्ञान का संचार करो माँ!
मन मंदिर में दीप जला दो
नव स्वर से झंकार करो माँ!
तेरे दरस से भाग सँवारूँ
हर पल तेरी बाट निहारूँ
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अपना पता बता दे या मेरे पास आजा
श्वेतांबरी, त्रिधात्री दृग में मेरे समा जा
एक हंस सुवासन हो सरसिज पे एक चरण हो
शोभित हो कर में वीणा, वीणा की मधुर धुन हो
मैं मंत्रमुग्ध नाचूँ, ऐसा समा बंधा जा
श्वेतांबरी त्रिधात्री दृग में मेरे समा जा
तेरा ज्ञान पुंज दमके वीणा के सुर भी खनके
तेरे पाद पंकजों की रज से धरा ये महके
हम धन्य होएँ माता हमको दरस दिखा जा
श्वेतांबरी त्रिधात्री दृग में मेरे समा जा
जहाँ शांति हर तरफ हो और प्रेम की धनक हो
अपनी ज़बां पे माता तेरे नाम के हरफ़ हों
हम भूल जाएँ सब कुछ ऐसी छवि दिखा जा
श्वेतांबरी त्रिधात्री दृग में मेरे समा जा
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