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गुरुवार, 14 अक्तूबर 2021

नवगीत बुंदेली

नवगीत बुंदेली 
धरती की छाती पर होरा
रओ रे सूरज भून
*
दरक रई छाती खेतन कीं 
मुरझा रए खलिहान। 
माँगे ठंडा पेय भिखारी 
गहे न रूपया दान। 
साँझ नें अधरं पे गुइँया!
काए लगा लौ खून 
धरती की छाती पर होरा
रओ रे सूरज भून
*
धोंय-निचोरें एकई कपरा 
पहने गीले होंय। 
चलत-चलत कूलर हीटर भओ 
पंखे तक-तक रोंय। 
आँख मिचौली खेले बिजुरी 
मलमल लग रओ ऊन। 
धरती की छाती पर होरा
रओ रे सूरज भून
*
गरमा गरम न कोऊ चाहे 
सहो न जाए ताप। 
सब खौं लगे तरावट नीकी 
बैरन लगती भाप। 
आँखन मिरची झोंके मौसम 
दिन दिन तप रओ दून। 
धरती की छाती पर होरा
रओ रे सूरज भून
*
लिखो तजुर्बा; पढ़ तरबूजा 
चक्कर खाय दिमाग। 
लू खें झोजके; मृगनैनी खों 
लगे, लगा रए आग। 
अब नें गलिन में घूमें रसिया 
चौक परे रे सून। 
धरती की छाती पर होरा
रओ रे सूरज भून
अंधड़ रेत बगुले घेरें 
सहर लग रओ भट्टी। 
है कितै पनघट; अमराई 
नीकी खस की टट्टी। 
बूँदें निकरें नई नैनन सें
बहन बदन सेन दून 
धरती की छाती पर होरा
रओ रे सूरज भून
***
    

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