सरस्वती वंदना
महान वरदे!, सुजान स्वर दे
रामदेवलाल 'विभोर'
*
महान वरदे!, सुजान स्वर दे, सुनाद नि:सृत विचार हो माँ!
समस्त स्वर ले, समस्त व्यंजन, समस्त आखर निखार हो माँ!
सुशब्द हो माँ!, सूअरथ हो माँ!, सुरम्यता सब प्रकार हो माँ!
सुविज्ञ हो माँ!, सुसिद्ध हो माँ!, अदम्य अनुपम उदार हो माँ!
अमर्त्य हो माँ!, समर्थ हो माँ!, समग्रता का लिलार हो माँ!
सुबुद्धि हो माँ!, प्रबुद्ध हो माँ!, असीम आभा प्रसार हो माँ!
सुताल-लय माँ!, सुगीतमय माँ!, सुरागबोधक धमार हो माँ!
सुज्ञानदात्री, सुतानदात्री, अजस्र पावन मल्हार हो माँ!
अनंत हो, चिर वसंत हो माँ!, सुकीर्तिवर्धक बयार हो माँ!
सुश्रव्य हो माँ!, सुदृश्य हो माँ!, समग्र मानस-उभार हो माँ!
सुकंठ हो माँ!, सुपंथ हो माँ!, 'विभोर' कवि की पुकार हो माँ!
नमो भवानी!, विशुद्ध वाणी, अकूत करती दुलार हो माँ।
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शनिवार, 16 अक्तूबर 2021
सरस्वती वंदना, रामदेवलाल 'विभोर'
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