कुल पेज दृश्य

शनिवार, 16 अक्तूबर 2021

मुक्तक

मुक्तक
संजीव
*
'पुष्पा'या है जीवन पूरा, 'गीता' पढ़कर हर मानव का।
'राम रतन' जड़ गया श्वास में, गहना आस ध्येय हो सबका।।
'छाया' है 'बसंत' की पल-पल, यह 'प्रताप' रेवा मैया का-
'निशि'-वासर 'जिज्ञासु' रहे मन, दर्श करें 'गिरीश' तांडव का।।
*
'आकांक्षा' 'अनुकृति' हो पाएँ, अपने आदर्शों की हम भी।
आँसू पोंछ सकें कोई हम, हों 'एकांश' प्रकृति संग ही।।
बनें सहारा निर्बल का हरि, दीनबंधु बन पाए सत्ता-
लिखें कहानी बार-बार हम, नचिकेता यम की।।
*
'विजय' वर सके 'ममता' नारी, 'श्रद्धा' की सींचें फुलवारी।
भाष 'सुभाष' छू सके दिल को, महका दें भारत की क्यारी।।
जगवाणी हो हिन्दी अपनी, बुद्धि 'विनीता' रहे हमेशा -
कंकर में शंकर देखें हम, आदमियत हो मंज़िल न्यारी।।
***
१६-१०-२०२१

कोई टिप्पणी नहीं: