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रविवार, 17 अक्तूबर 2021

बात बेबात पाक कला भूरी रही

बात बेबात
पाक कला भूरी रही
संजीव
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भाग्य और पड़ोसी इन दोनों को कभी बदला नहीं जा सकता। यह बात पाकिस्तान को लेकर बिना किसी संशय के कही और स्वीकारी जा सकती है। पाकिस्तान की कलाएँ स्वतंत्रता के बाद से हम सब देखते आ रहे हैं। पाककला का बेजोड़ नमूना आतंकवाद है । ऐसी ही कुछ अन्य कलाएँ भारत और चीन को प्रतिस्पर्धी बनाना , अपनी ही अवाम को कुचलना और भूखे रहकर भी एटमी युद्ध करने का ख्वाब देखना है।

पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में पाकिस्तान के हुक्मरान कश्मीर पर हाय तोबा मचाते देखे गए। पाककला का यह अध्याय हमेशा की तरह बेनतीजा और उसे ही नीचा दिखाने वाला रहा। अभी कल ही आतंकवाद को नियंत्रित करने में असफल होने पर पाकिस्तान को फरवरी तक के लिए भूरी सूची में रखा गया है। पाकिस्तान का दूरदर्शनी खबरिया और सरकार इसे अपनी बहुत बड़ी सफलता मानकर अपने अनाम की आँखों में धूल झोंकने की कोशिश करेगा। पूरी संभावना थी कि दहशत गर्ग दहशतगर्दी को नियंत्रित करने के स्थान पर, लगातार बढ़ाने के लिए पाकिस्तान को गहरी भूरी सूची या काली सूची में डाल दिया जाएगा। पाकिस्तान को चीन द्वारा मिल रहे समर्थन का परिणाम उसे कुछ माह के लिए भूरी सूची में रखे जाने के रूप में हुआ है।

पाककला मैं निपुण हर व्यक्ति जानता है कि जलने पर हर खाद्य पदार्थ काला हो जाता है। अपने जन्म के बाद से ही भारत के प्रति जलन की भावना रखता पाकिस्तान अपने कर्मों की वजह से श्याम सूची में जाने की कगार पर है। बलि का बकरा कब तक जान की खैर मनाएगा? पाककला का सर्वाधिक खतरनाक और भारत के लिए चिंताजनक पहलू यह है कि वह अपनी जमीन चीन को देकर भारत- चीन के बीच संघर्ष की स्थिति बना रहा है। कच्छ के रण में सरहद के उस पार चीन को जमीन देना भारत के लिए चिंता का विषय है। इसके पहले पाक अधिकृत कश्मीर जो मूलतः भारत का अभिन्न हिस्सा है में भी कॉरिडोर के नाम पर पाकिस्तान ने चीन को जमीन दी है। पाककला का यह पक्ष भविष्य में युद्धों की भूमिका तैयार कर सकता है।

चीन की महत्वाकांक्षा और स्वार्थपरक दृष्टि भारतीय राजनेताओं और सरकारों के लिए चिंतनीय है। लोकतंत्र को दलतंत्र बना देने का दुष्परिणाम राजनीति में सक्रिय विविध वैचारिक पक्षों के नायकों के मध्य संवाद हीनता की स्थिति बना रहा है। यह देश के लिए अच्छा नहीं है। सत्ता पक्ष और उसके अंध भक्तों की आक्रामकता तथा विपक्ष को समाप्त कर देने की भावना, भारत में चीन की तरह एकदलीय सत्ता की शुरुआत कर सकता है। वर्तमान संविधान और लोकतांत्रिक परंपरा के लिए इससे बड़ा खतरा अन्य नहीं हो सकता। पाक कला भारत को उस रास्ते पर जाने के लिए विवश कर सकती है जो अभीष्ट नहीं है। निकट पड़ोसियों में नेपाल, बांग्लादेश और लंका तीनों के अतिरिक्त मालदीव जैसे क्षेत्रों में भारत विरोधी भावनाएँ भड़काकर चीन रिश्तों की चाशनी में चीनी नहीं, गरल घोल रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में भारत की सुरक्षा और उन्नति के लिए भारत के सभी राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय हित सर्वोपरि मानते हुए अपने पारस्परिक मतभेद और सत्ता प्रेम को भुलाकर दीर्घकालिक रणनीति तैयार करनी ही होगी अन्यथा इतिहास हमें क्षमा नहीं करेगा। कांग्रेस काल में विपक्ष के नेता अटलबिहारी बाजपेई को भारतीय प्रतिनिधि मंडल का नेता बनाकर संयुक्त राष्ट्र संघ में भेजकर भारत में लोकतंत्र के सुदृढ़ता और एकता का पुष्ट प्रमाण देकर चीन-पाक को ईंट का जवाब पत्थर से दिया गया था। क्यों न वर्तमान सरकार, विपक्ष को विश्वास में लेकर फिर ऐसा हो कदम उठाए? विपक्ष को देशद्रोही कहकर, उससे मुक्त भारत की कामना करना, लोकतंत्र का गला घोंट कर चीन की तरह एकदलीय शासन व्यवस्था की डगर पर पग रखने की तरह, भारतीय जनगण को अस्वीकार्य है। अनेकता में एकता, सहिष्णुता, सहयोग, सद्भाव, साहचर्य के सोपान ही भारतीय लोकतंत्र की नींव है। 

पाककला के दुष्प्रभावों का सटीक आकलन कर उसका प्रतिकार करने के लिए भारतीय राजनेता एक साथ जुड़ सकें इसकी संभावना न्यून होते हुए भी जन कामना यही है कि देश के उज्जवल भविष्य के लिए सभी दल रक्षा विदेश नीति और अर्थनीति पर उसी एक सुविचार कर कदम बढ़ाएँ जिस तरह एक कुशल ग्रहणी रसोई में उपलब्ध सामानों से स्वादिष्ट खाद्य बनाकर अपनी पाक कला का परिचय देती है।
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