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रविवार, 24 अक्तूबर 2021

बाल एकांकी : एक चवन्नी चाँदी की

बाल एकांकी :
एक चवन्नी चाँदी की
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
पात्र परिचय :
रामरती - सात-आठ वर्षीय बालिका।
वीरेंद्र, महेंद्र, ऊषा, प्रभा, उमा आदि हम उम्र बच्चे। लड़के पेंट-कमीज, कुरता-पायजामा, लड़कियाँ फ्रॉक, शलवार-कुर्ती पहने हैं।
ज्वाला प्रसाद वर्मा - गठीके कद के प्रौढ़ व्यक्ति, मध्यम ऊँचाई, सूती धोती, खादी का कुरता, सूती कोट, गाँधी टोपी, पैरों में चप्पल, कंधे पर एक थैला जिसमें कुछ कागज और किताबें हैं।
शिव प्रसाद वर्मा - छोटा कद, युवा, क्लीन शेव, पैंट-कमीज, जूते पहने हुए।
छेदीलाल उसरेठे - पायजामा, कुरता, प्रौढ़, चमरौधा,उमेंठी हुई मूँछें।
गणेश प्रसाद श्रीवास्तव - तरुण, इकहरा शरीर, पायजामा-कमीज, लंबे बाल।
कन्हैया लाल पंडा - किशोर, हाफ पैंट, कमीज, जूते। 
*
सूत्रधार :
दर्शकों! वंदे भारत भारती। इतिहास के पन्ने पलटते हुए साक्षी बन रहे हैं एक घटना के और मिल रहे हैं उसका हिस्सा रहे कुछ गुमनाम लोगों से। जिस इमारत की भव्यता जग जाहिर हो, उसकी और उसके मालिक की तारीफ होती है किन्तु उसको बनाने में पसीना बहानेवालों का नाम गुमनाम रहा आता है। भारतीय स्वतंत्रता सत्याग्रहों में भी ऐसा ही हुआ। नेतृत्व कर रहे चंद नेताओं को प्रशस्ति और सत्ता में भागीदारी मिली किन्तु आंदोलनों में प्राण फूँकनेवाले सत्याग्रही, उनके परिवार जन आदि का योगदान अनदेखा ही रह गया। इस एकांकी में ऐसे ही कुछ सत्याग्रहियों और बच्चों से मिलने जा रहे हैं हम।
पर्दा उठता है
एक कमरा, एक ओर एक चारपाई पर एक चादर बिछी है, एक किनारे एक तकिया रखा है। एक मेज पर लोटा-गिलास, कलम-दावात, अखबार और कुछ कागज रखें हैं। खूँटी पर एक छड़ी और खादी का थैला टँगा है। ज्वाला प्रसाद बैठे हुए कुछ सोच रहे हैं। दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनकर पूछते हैं - 'कौन है भाई?'
शिव प्रसाद -'कक्का! मैं शिव प्रसाद' (कहते हुए एक युवक प्रवेश करता है।)
ज्वाला प्रसाद - 'आओ, भाई आओ। मैं तुम्हारी ही राह देख रहा हूँ, छेदीलाल और जमना भी आते ही होंगे। आज का अखबार देखा?'
शिव प्रसाद - 'नहीं कक्का! अभी नहीं देखा। क्या खबर है?'
ज्वाला प्रसाद - 'बापू ने २४ मई १९४२ के हरिजन में अंग्रेजों से भारत को बिना शर्त छोड़कर जाने की जो माँग की थी, उसे वर्धा में हुई कांग्रेस कार्यकारिणी बैठक में मंजूर कर लिया गया है। गाँधी जी ने 'करो या मरो' का नारा दिया है'
गणेश प्रसाद श्रीवास्तव, कन्हैया लाल पंडा आदि प्रवेश करते हैं।
शिव प्रसाद - 'अब क्या होगा?'
ज्वाला प्रसाद - 'होगा क्या? बंबई में सात अगस्त को कांग्रेस महासमिति ने 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' प्रस्ताव पारित कर आंदोलन की घोषणा कर दी है। ८ अगस्त की रात में ही बंबई में मौजूद सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया है। बंबई से लौटते समय हमारे गोविंददास जी तथा द्वारका प्रसाद मिश्र जी को रेल में ही गिरफ्तार कर लिया गया है। यह देखकर भाई हुकुमचंद नारद ने 'इंकलाब ज़िंदाबाद' का नारा लगाया तो उन्हें भी धर लिया गया।'
गणेश प्रसाद श्रीवास्तव - 'यह तो होना ही था। अब हमें भी सम्हल जाना चाहिए। यहाँ भी गिरफ्तारियाँ होंगी। हमारे पास जो भी कागजात और अन्य सामग्री है उसे तुरंत छिपाना होगा।' ज्वाला प्रसाद मेज पर रखे पर्चे उनको बाँटने लगते हैं। सभी अपने अपने थैलों में रखे पर्चे किताबें आदि रख लगते हैं।
बाहर कुछ बच्चों का शोर सुनाई देता है।
कन्हैया लाल पंडा - 'जे हल्ला कौन कर रओ आय?
छेदीलाल उसरेठे - 'बच्चे खेल रहे होंगे, भगा दो।'
कन्हैया लाल बाहर जाते हैं, नेपथ्य से आवाजें सुनाई देती हैं।
कन्हैया लाल - 'बच्चों! यहाँ हल्ला मत करो, कहीं और खेलो। अंदर आवाज सुनाई देती है तो बात नहीं कर पाते।'
रामरती - 'भैया! हमको मत भगाओ। हमको भी बताओ क्या हो रहा है? हम भी कुछ करना चाहते हैं।'
कन्हैया लाल - 'तुम बच्चे हो, बड़े हो जाओ तब कुछ करना।'
वीरेंद्र - 'क्यों बच्चे किसी काम नहीं आ सकते क्या?'
उमा - 'हम कुछ तो कर ही सकते हैं।'
महेंद्र - 'इंदिरा जी ने वानर सेना बनाई है न? बाबूजी बता रहे थे।'
ऊषा - 'हम हल्ला नहीं करेंगे।'
प्रभा - 'हमको कोई काम देकर तो देखो।'
कन्हैया लाल - 'तुम सब चुपचाप कन्नागोटी खेलो, मैं ज्वाला चच्चा से बात करता हूँ, कुछ काम होगा तो बताऊँगा।'
रामरती - 'ठीक है, हम शोर नहीं करेंगे। आप लोग अपना काम करो। हम यहाँ देखते रहेंगे। जैसे ही पुलिसवाले आते दिखेंगे, हम हल्ला करने लगेंगे।'
कन्हैया लाल - 'ठीक है।'
कन्हैया लाल कमरे में प्रवेश करता है। ज्वाला प्रसाद उसे बचे हुए पर्चे देते हैं।
ज्वाला प्रसाद - 'यह सुंदरलाल तहसीलदार का बाड़ा और सिमरिया वाली रानी की कोठी तो पहले से पुलिस की निगाह में है। भाई गणेश प्रसाद नायक ने बुलेटिन भेजे थे, आप सब इन्हें अपने-अपने क्षेत्र में बाँट दो। कोई भी अपने पास ज्यादा देर तक न रखे।'
शिव प्रसाद - 'देर-सबेर पुलिस हम सब तक पहुँच ही जाएगी, इसके पहले ही सारे बुलेटिन और पर्चे बाँट देना है।'
कन्हैया लाल पंडा - 'जमना भैया अब लौं नई आए? का मालूम कितै बिलम गए ?'
गणेश प्रसाद श्रीवास्तव - 'मैं बद्रीनाथ गुप्ता के घर से आ रहा हूँ। वे भी गिरफ्तारी की तैयारी से हैं। आज की रात भर मिल जाए हम लोगों को, सब कार्यकर्ता बुलेटिन और पर्चे पाते ही आगे बढ़ाते जाएँगे। सर फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है।'
छेदीलाल उसरेठे - कदम कदम बढ़ाए जा ख़ुशी के गीत गाए जा, ये ज़िंदगी है कौम की तू कौम पे लुटाए जा। 
ज्वाला प्रसाद - 'कन्हैया लाल! तुम्हारी बालक सेना की क्या तैयारी है?'
कन्हैया लाल पंडा - 'हम तैयार हैं। बड़ों के कैद किये जाने के बाद हम महिलाओं के साथ मिलकर काम जारी रखेंगे। गलियों और नुक्कड़ों पर नारे लगाएँगे और पुलिस के आने के पहले ही घरों में घुस जाया करेंगे।'
तभी बाहर से बच्चों का शोर फिर सुनाई देता है।
'एक चवन्नी चाँदी की, जय बोलो महात्मा गाँधी की।
'झंडा ऊँचा रहे हमारा, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा'
'वंदे मातरम, वंदे मातरम।'
शिव प्रसाद झुंझलाते हुए - 'ये बच्चे ऐसे नहीं मानेंगे, मैं देखता हूँ...'
कन्हैया लाल उन्हें रोकते हुए- 'नाराज न हो। ये बच्चों का हल्ला नहीं, हमारे लिए अलार्म है, पुलिस आ रही है। बच्चों का हल्ला बाड़े के दरवाजे की तरफ से हो रहा है, इसका मतलब पुलिस उसी तरफ से आ रही है।'
ज्वाला प्रसाद - 'गणेश भैया मौलाना की कुलिया की तरफ से निकल जाओ। कन्हैया तुम पंडितों की गली में दौड़ जाओ। शिव प्रसाद तुम पन्ना नाऊ की टपरिया की बगल से छिपते हुए भागो। मैं यही रुकता हूँ। मेरे पास कोई कागजात न छोड़ना, सब लेते जाओ।'
सभी लोग एक-एक कर शीघ्रता से निकल जाते हैं।
'ऐ बच्चों! क्यों गड़बड़ कर रहे हो। भागो, अपने घरों में जाओ' एक सिपाही की रोबीली आवाज सुनाई देती है।
रामरती - 'चच्चा! हम बच्चे कहाँ जाएँ? घर में खेलो तो अम्मा भगाती हैं कि सर मत खाओ बाहर जाओ। बाहर आते तो आप भगाते हो तो फिर हम जाएँ तो जाएँ कहाँ?'
महेंद्र - 'बताइए न कहाँ खेलें हम बच्चे??
उमा - 'कल सड़क पर खेल रहे थे तो ज्वाला चच्चा ने डाँटा 'सड़क पर मत खेलो। रिक्शा, साइकिल से टकरा जाओगी।'
प्रभा - 'मंदिर पर पंडित जी नहीं खेलने देते।'
ऊषा - 'स्कूल में भी खेलने नहीं मिलता।'
वीरेंद्र - 'ये बड़े भी अजीब हैं, खुद तो खेलते नहीं और बच्चों को तंग करते हैं।'
रामरती - 'पुलिस चच्चा ! आप ही बताओ बिना खेले हम बच्चे कैसे रहें?'
प्रभा - 'आप जब बच्चे थे तो नहीं खेलते थे क्या?'
उमा - 'आप कहो तो हम आपके साथ थाना चलें वहीं खेल लेंगे।'
दूसरा सिपाही डपटते हुए - 'थाना कोई खेलने की जगह है? वहाँ मुजरिम रखे जाते हैं। तुम लोग कहीं और खेलो।
पहला सिपाही - 'बच्चो! एक बात बताओ यहाँ कोई गड़बड़ी तो नहीं है? कोई कॉँग्रेसवाले तो नहीं आए? पूरी बात बताओगे तो ईनाम मिलेगा।'
रामरती - 'नहीं नहीं, पुलिस चच्चा यहाँ कोई नहीं आता।हम बच्चे किसी को यहाँ आने ही नहीं देते, हमारा खेल ख़राब हो जाता है न?
दूसरा सिपाही - 'इन बच्चों से मत उलझो। चलो, ज्वाला प्रसाद के यहाँ चलो। वहीं जुड़ते हैं सारे बदमाश।'
रामरती- उच्च स्वर से 'जाओ पुलिस चच्चा, ज्वाला चच्चा इसी तरफ रहते हैं, बायें हाथ पे दूसरा मकान है।'
सिपाही आगे बढ़ते हैं, बच्चे फिर गाने लगते हैं 'एक चवन्नी चाँदी की, जय बोलो महात्मा गाँधी की।'
सिपाही ज्वाला प्रसाद वर्मा के घर का दरवाजा खटखटाते हैं। कुछ देर बाद ज्वाला प्रसाद की आवाज सुनाई देती है - 'कौन है भाई? क्यों तंग करते हो? सोने भी नहीं देते।'
सिपाही फिर दरवाजा खटखटाते हैं। दरवाजा खुलता है, सिपाही झपट कर अंदर घुसते हैं, ज्वाला प्रसाद को धकेल कर एक तरफ करते हैं और तलाशी लेने लगते हैं। तलाशी में कुछ न मिलने पर खिसियाते हुए धमकाते हैं -
पहला सिपाही - 'कहाँ छिपाए हैं नायक जी के घर से आए बुलेटिन?'
दूसरा - 'तुम्हारे बाकी साथी कहाँ है?, क्या करनेवाले हो?
पहला - जुलूस और मीटिंग कहाँ है?
ज्वाला प्रसाद - 'जरा दम तो ले लो। मेरे पास कोई बुलेटिन वगैरा नहीं है। सिपाहियों के पीछे-पीछे बच्चे भी घुस आते हैं। सिपाही ज्वाला प्रसाद के साथ एक कमरे में जाते हैं तो बच्चे दूसरे कमरे में घुसकर एक थैला लेकर बाहर भाग आते हैं।
सिपाहियों को तलाशी में कुछ नहीं मिलता तो सर झुकाए घर से बाहर निकल आते हैं। फिर धमकाते हैं - 'कोई गड़बड़ करी तो तुरंत धर लिए जाओगे। सब नेता जेल में हैं। सठिया कुआँ वाले ब्योहार राजेंद्र सिंह अभी थोड़ी देर पहले कटनी से लौटे, हम उन्हें पकड़ने गए लेकिन वे हमारे पहुँचने से पहले ही गली के रास्ते कोतवाली पहुँच गए। डिप्टी कमिश्नर पैटरसन साहिब ने उनको भी तुरंत जेल भिजवा दिया।'
ज्वाला प्रसाद - 'भरोसा रखो हम कोई गड़बड़ी नहीं कर रहे हैं।'
सिपाही - 'भरोसा और तुम्हारा? १९३० में दमोह जेल में कैद काटने और जुरमाना भरने के बाद भी तुम कहाँ सुधरे? अपने छोटे-छोटे बच्चों का ख्याल तो रखते नहीं और जब देखो तब आंदोलनों में भाग लेते फिरते हो। धंधा नहीं करोगे तो इनको पालोगे कैसे? आज तो कुछ नहीं मिला, लेकिन हमारी नज़र है तुम पर, खबर भी थी की तुम्हीं को बुलेटिन भेजे गए हैं।
दूसरा सिपाही दरवाजे पर डंडा मारते हुए - 'सुधर जाओ, नहीं तो जेल में चक्की पीसोगे।'
सिपाही जाते हैं। ज्वाला प्रसाद उन्हें जाते देखते रहते हैं, दरवाजा बंद करने लगते है तो दूसरी और से रामरती दिखती है जो हाथ में वहीं थैला लिए है जो बच्चे उनके घर से छिपाकर ले आए थे। रामरती दूसरे बच्चों को थैला देकर पास आती है। कहती है- 'चच्चा! आज जमना कक्का नई आए थे। ये थैला उनई को देने है ना? आप फ़िक्र मत करो। हम बच्चे अपने स्कूल के बस्ते में किताबों के बीच मेंथोड़े-थोड़े परचे छिपाकर जमुना कक्का को दे देंगे। किसी को कछु पता नई चलने।
ज्वाला प्रसाद की आँखों में आँसू आ जाते हैं। वे रामरती को दुलारते हुए कहते हैं - 'अब तो अंग्रेजों को भारत से जाना ही पड़ेगा। जिस देश के बच्चे-बच्चे आजादी के सिपाही बन जाएँ, उसे गुलाम नहीं रखा जा सकता। फ़्रांस की जॉन ऑफ़ आर्क और नाना साहेब की बिटिया मैना देवी अब भारत के घर-घर में हैं। जाओ, बिटिया! सम्हाल के जाना।'
रामरती - चच्चा! हम जे गईं और जे आईं। चलो री वानर सेना, सब बच्चे अपना-अपना बस्ता लिए आते दिखते हैं। रामरती नारा लगाती है- 'एक चवन्नी चाँदी की,
'जय बोलो महात्मा गाँधी की।' कहते हुए ज्वालाप्रसाद दरवाजा बंद कर लेते हैं।
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किसी देश का इतिहास केवल बड़े ही नहीं बनाते, यथासमय बच्चे भी यथाशक्ति योगदान करते हैं किन्तु इतिहास लिखते समय केवल बड़ों का ही उल्लेख किया जाता है और बच्चों का अवदान बहुधा अनदेखा-अनलिखा रह जाता है। जॉन ऑफ़ आर्क (१४१२-३० मई १४३१) का नाम पूरी दुनिया में विख्यात है कि उसे मात्र १२ वर्ष की आयु से फ़्रांस से अंग्रेजों को खदेड़ने का सपना देखा और युद्ध हारती हुई सेना की बागडोर सम्हाल कर उसे विजय की राह पर ले गई। भारतीय स्वातंत्र्य समर में नाना साहेब की किशोरी बेटी मैना देवी के बलिदान की अमर गाथा आज की पीढ़ी नहीं जानती। महात्मा गाँधी जी के नेतृत्व में स्वतंत्रता सत्याग्रह के दौर में केवल बड़ों ने नहीं अपितु किशोरों और बच्चों ने भी महती भूमिका का निर्वहन किया था। स्वतंत्रता सत्याग्रह के इतिहास के एक ऐसे ही अछूते पृष्ठ को अनावृत्त कर रहा है यह लेख।




सनातन सलिला नर्मदा तट पर बसी संस्कारधानी जबलपुर को तब यह विशेषण मिलता तो दूर देश ने आजादी की सांस भी नहीं ली थी, जब का यह प्रसंग है। शहर कोतवाली के पास अंग्रेजों ने सागर के राजा के अंत पश्चात् परिवार की विधवाओं को रहने का स्थान दिया था कि उन पर नज़र रखी जा सके। राजा सागर के बड़े के सामने ही था (अब भी भग्न रूप में है) सुन्दरलाला तहसीलदार का बाड़ा जो पन्ना के राजा के विश्वस्त थे और अंग्रेजों द्वारा विशेष सहायक के रूप में जबलपुर में लाए गए थे। उन्हें पूर्व के भोंसला राजाओं की टकसाल (जहाँ सिक्के ढलते थे) के स्थान पर बसाया गया। वे ज़ाहिर तौर पर अंग्रेजों के लिए काम करते और खुफिया तौर पर क्रांतिकारियों और राजा सागर परिवार के सहायक होते। कालांतर में इस बाड़े के मकान में किरायेदार के रूप में रहने आए नन्हें भैया सोनी। वे सोने-चाँदी के जेवर बनानेवाले कारीगर थे, निकट ही सराफा बाजार (अब भी है) में व्यापारियों की दुकानों से काम मिलता और उनका परिवार पलता। नन्हें भैया के चार बच्चे हुए पहली दो पुत्रियाँ कृष्णा और रामरती तथा बाद में दो पुत्र मणिशंकर और गौरी शंकर।


रामरती (१५-९-१९३५-२३-५-२००२) केवल सात वर्ष की थी, जब १९४२ का स्वतंत्रता सत्याग्रह आरंभ हुआ। माता-पिता की लाड़ली बिटिया, दो भाइयों की इकलौती बहिन रामरती दूसरी कक्षा की छात्रा थी। रामरती बाड़े के मैदान और दो शिवमंदिरों के समीप अन्य बच्चों के साथ चिड़ियों की तरह फुदकती-खेलती। बच्चे ऊँच-नीच का भेद नहीं जानते। मकान मालिक धर्मनारायण वर्मा वकील की बड़ी लड़की ऊषा, लड़का बीरु, और अन्य करायेदारों के बच्चे टीपरेस, कन्ना गोटी, खर्रा, खोखो खेलते। उन्हें सबसे अधिक ख़राब लगते थे ज्वाला चच्चा (ज्वाला प्रसाद वर्मा, स्वतंत्रता सत्याग्रही जिन्हें कारावास हुआ था) जो अपने कुछ साथियों के साथ आते। सबके सिरों पर सफ़ेद टोपी और सफेद ही कपड़े होते। वे आपस में अजीब अजीब बातें करते। आस-पास खेलते-खेलते रामरती को अंग्रेज, आजादी, सत्याग्रह, अत्याचार, तिरंगा आदि शब्द सुनाई दे जाते तो उसके मन में उत्सुकता जागती कि यह क्या है? वे लोग थैलों में पभुत से पर्चे लाते, फिर आपस में बाँट लेते और उपरायणगंज, दीक्षितपुरा, सिमरियावाली रानी की कोठी की गलियों में चलेजाते। कभी-कभी पुलिस के सिपाही भी बाड़े में आते, बड़ों को डाँटते, छोटों को भगा देते लेकिन उनके आने के पहले ही ज्वाला चच्चा की मित्र मंडली दबे पाँव गलियों में गुम हो जाती।




एक दिन खेलते-खेलते बाड़े में बने पुराने कुएँ की जगत पर उसने पढ़ा 'नानक चंद'। कौन था यह नानक चंद? अपनी माँ से पूछा तो डाँट पड़ी कि फालतू बातों से दूर रहो। एक दिन वह पड़ोस के बच्चों के बाड़े के साथ बाड़े के बड़े दरवाजे के पास साथ सड़क पर खेल रही थी क्योंकि ज्वाला चच्चा अपने मित्रों के साथ मंदिर के पीछे बातचीत कर रहे थे। रामरती की नजर सड़क की तरफ पड़ी तो उसे कुछ सिपाही आते दिखे, बाकी बच्चे तो खेल में मग्न थे पर रामरती को न जाने क्या सूझा, ज्वाला चच्चा से डाँट पड़ने का भय भूलकर वह मंदिर की ओर दौड़ पड़ी चिल्लाते हुए 'पुलिस आई', जैसे ही सत्याग्रहियों ने आवाज सुनी वे बाड़े के पिछवाड़े से मुसलमानों की गली में कूद कर भाग गए। पुलिस के जवान जब तक बड़े के अंदर घुसे, चिड़िया उड़ चुकी थी, उनके हाथ कुछ न लगा। आसपास के लोगों को धमकाते-गालियाँ बकते पूछताछ करते रहे पर किसी ने कुछ न बताया। खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे, आखिरकार चले गए।




उस दिन के बाद ज्वाला चच्चा और उनके साथी बच्चों को डाँटते नहीं थे। बच्चे खेलते रहते, वे लोग अपना काम करते रहते, कभी-कभी बच्चों के हाथ पर अधेला रख देते कि सेव-जलेबी खा लेना। रामरती उनके स्नेह की विशेष पात्र थी। एक दिन ज्वाला चच्चा पर्चों का थैला लिए आए लेकिन उनके दो साथ नहीं आए। वे परेशान थे कि उनके पर्चे कैसे उन तक जाएँ? रामरती देखती थी ज्वाला चच्चा के साथ रहनेवाले जमुना कक्का नहीं थे। जमुना कक्का उसके पिता के भी मित्र थे, कई बार दोनों साथ-साथ काम करते थे। रामरती पिता के साथ जमुना कक्का के घर भी हो आई थी। उसने ज्वाला चच्चा से पूछ लिया 'जमुना कक्का नई आए?' चच्चा ने घूर कर देखा तो वह डर गई पर हिम्मत कर फिर कहा 'हमें उनको घर मालून आय, परचा पौंचा दें?' अब चच्चा ने उस की तरफ ध्यान दिया और पूछा 'डर ना लगहै?, कैसे जइहो? पुलिस बारे भी तो हैं।'




'चच्चा तनकऊ फिकिर नें करो हम बस्ता में किताबों के बीच परचा छिपा लैहें और मनी भैया साथ दे आहें। हमने बाबू (पिता) के संगै उनको घर है।' चच्चा हिचकते रहे पर और कोई चारा न देख रामरती के बस्ते में पर्चे रख दिए। रामरती दे आई। चच्चा के साथी 'एक चवन्नी चाँदी की, जय बोलो महात्मा गांधी की' बोलकर घर-घर से चवन्नी माँगते। सुन सुन कर यह नारा बच्चों को भी याद हो गया। वे झंडा ऊँचा रहे हमारा, चलो दिल्ली, जय हिन्द जैसे नारे लगते और बड़ों की नकल कर जुलुस की तरह निकलते। पुलिस के सिपाही खिसियाकर भगाते और बच्चे झट से घरों में जा छिपते। सत्याग्रहियों और बच्चों में यह तालमेल चलता रहा, पुलिस के सिपाही खिसियाते रहे। एक दिन एक सिपाही ने रामरती की पीठ पर धौल जमा दी, वह औंधे मुँह गिरी तो घुटना और माथा चोटिल हो गया। माँ ने पूछा तो उसने कहा कि एक सांड दौड़ा आ रहा था, उससे बचने के लिए दौड़ी तो गिर पड़ी। इस घटना के बाद भी पर्चे पहुँचाने, चंदा इकठ्ठा करने, पुलिस की आवागमन से सत्याग्रहियों को खबरदार करने जैसे काम करती रही।




रामरती सातवीं कक्षा में थी जब सुना कि देश आज़ाद हो गया। खूब रौनक रही। रामरती 'पुअर बॉयस फंड' से वजीफा पाकर सेंट नॉर्बट स्कूल में पढ़ रही थे। उसके भाई मणि को उनके निस्संतान रेलवेकर्मी मामा नारायणदास अवध ने गोद ले लिया था। आठवीं कक्षा पास कर रामरती अपनी ननहाल राहतगढ़ (सागर) चली गई। मैट्रिक पास कर, ट्रेनिंग कर शिक्षिका हो गयी और प्राइवेट पढ़ती भी रही। कांग्रेस सेवादल के कैंप में उसकी मुलाकात अन्य कार्यकर्ता शंकरलाल कौशिक हुई जो बेगमगंज का निवासी था। वह भोपाल रियासत के कोंग्रेसी नेता शंकर दयाल शर्मा (कालांतर में भारत के राष्ट्रपति हुए) के निकट था। प्राइवेट बस में कंडक्टरी और पढ़ाई साथ-साथ करता। कांग्रेस की गतिविधियों और बस स्कूल जाते-आते समय उनकी मुलाकातें पहले आकर्षण और फिर प्रेम में बदल गई। दोनों के घरवालों ने जातिभेद के कारण विरोध किया। शंकरलाल की मेहनत और ईमानदारी के कारण वह शर्मा जी के घर के सदस्य की तरह हो गया था। शर्मा जी के आशीर्वाद से दोनों ने शादी कर ली। दोनों का जीवट और संघर्ष लाया। शंकर लाल डिप्लोमा पास कर बी एच ई एल भोपाल में सुपरवाइज़र हो गया। रामरती शासकीय शिक्षिका हो गई। दोनों के तीन बच्चे हुए। रामरती की कलात्मक अभिरुचि ने उसे गणतंत्र दिवस व स्वाधीनता झाँकियों को बनाने दिलाया। वह भोपाल और दिल्ली में पुरस्कृत हुई, पदोन्नत होकर प्राचार्य हो गई।




शंकरलाल, शर्मा जी के साथ आंदोलन में कारावास भी जा चुका था। स्वतंत्रता सत्याग्रहियों को सम्मान और लाभ मिलने के अनेक अवसर आए पर दोनों ने इंकार कर दिया की उन्होंने जो भी किया, देश के लिए किया, यह उनका कर्तव्य था और उन्हें कोई सम्मान या लाभ की लालच नहीं है। एक ओर सुविधाओं की लालच में लोग स्वतंत्रता सत्याग्रही होने के झूठे दावे कर रहे थे, दूसरी यह सच्चा सत्याग्रही दंपत्ति किसी लाभ को लेने से इंकार कर जीवन में संघर्ष कर रहा था। इस कारण दोनों का सम्मान बढ़ा। बच्चों के विवाह में शर्मा जी उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति होते हुए भी बच्चों को आशीर्वाद देने आए। उन्होंने अपने बच्चों के विवाह बिना किसी लेन-देन के किए। रामरती का बड़ा लड़का विजय वायुसेना में ग्रुपकैप्टन पद से सेवानिवृत्त होकर अहमदाबाद में है। छोटा लड़का विनय दिल्ली में उद्योगपति है और लड़की वंदना अपनी ससुराल में कोलकाता है।
***


स्वतंत्रता सत्याग्रह में कायस्थों का योगदान
१. स्व.गणेश प्रसाद श्रीवास्तव
आत्मज स्व. शंभु प्रसाद श्रीवास्तव।
जन्म - १९११, जबलपुर।
शिक्षा - माध्यमिक।
वर्ष १९२३ से राजनैतिक गतिविधियाँ। १९३२ के आंदोलन में गिरफ्तार ६ माह कैद, २५/- अर्थदंड।
नेशनल बॉय स्काउट संस्था के संस्थापक सदस्य। १९३३ तथा १९३५ में राष्ट्रीय स्काउट प्रदर्शनी का सफल आयोजन किया।
१९३९ में कांग्रेस अधिवेशन त्रिपुरी, जबलपुर में स्वयं सेवकों के प्लाटून कमांडर। सराहनीय प्रदर्शन कर प्रशंसा पाई।
महाकौशल युवक कांफ्रेंस को सफल बनाने हेतु अथक परिश्रम किया।
व्यक्तिगत सत्याग्रह १९४१ में ४ माह की सजा हुई।
'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन १९४२ में २ वर्ष तक नज़रबंद।
सत्याग्रही साथियों के बीच 'लाला जी' संबोधन से लोकप्रिय।
स्वस्थ्य बिगड़ने के बावजूद स्वतंत्रता संबंधी गतिविधियों में अंतिम सांस तक सक्रिय रहे।
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टीप - निधन तिधि अज्ञात, चित्र अप्राप्त। परिवार जनों की जानकारी हो तो उपलब्ध कराइए।








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