दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु
A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
बुधवार, 6 अक्टूबर 2021
मुक्तक रजनीश
मुक्तक रजनीश * साथ है रजनीश तो फिर छू सकें आकाश मुमकिन। बाँधते जो तोड़ पाएँ हम सभी वे पाश मुमकिन।। 'सलिल' हो संजीव आओ! प्रदूषण से हम बचाएँ- दीन हितकारी बने सरकार प्रभु हो काश मुमकिन।। *
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें