कुल पेज दृश्य

रविवार, 24 अक्तूबर 2021

कायस्थ स्वतंत्रता सेनानी, कायस्थ सत्याग्रही

कायस्थ स्वतंत्रता सेनानी
स्वतंत्रता सत्याग्रह में कायस्थों का योगदान
(वर्णमाला क्रमानुसार) 
*
छत्तीसगढ़ 

पंडित सुंदरलाल कायस्थ 

पंडित सुंदरलाल कायस्थ  (२६ सितम्बर सन १८८५ - ९ मई १९८१) भारत के पत्रकार, इतिहासकार तथा स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी थे। वे 'कर्मयोगी' नामक हिन्दी साप्ताहिक पत्र के सम्पादक थे। उनकी महान कृति 'भारत में अंग्रेज़ी राज' है।

पं. सुंदर लाल कायस्थ का जन्म गाँव खितौली (मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश ) के कायस्थ परिवार में  सितम्बर सन  को तोताराम के घर में हुआ था।  बचपन से ही देश को पराधीनता की बेड़ियों में जकड़े देख कर उनके दिल में भारत को आजादी दिलाने का जज्बा पैदा हुआ। वह कम आयु में ही परिवार को छोड़ प्रयाग चले गए आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। पं॰ सुंदरलाल कायस्थ एक सशस्त्र क्रांतिकारी के रूप में गदर पार्टी से बनारस में संबद्ध हुए थे। लाला लाजपत राय, अरविन्द घोष, लोकमान्य तिलक  आदि के निकट संपर्क उनका हौसला बढ़ता गया और कलम से माध्यम से देशवासियों को आजाद भारत के सपने को साकार करने की हिम्मत दी। लाला हरदयाल के साथ पं॰ सुंदरलाल कायस्थ ने समस्त उत्तर भारत का दौरा किया था। १९१४ में शचींद्रनाथ सान्याल और पं॰ सुंदरलाल कायस्थ एक बम परीक्षण में गंभीर रूप से जख्मी हुए थे। वह लार्ड कर्जन की सभा में बम कांड करनेवालों में 'पंडित सोमेश्वरानंद' बन कर शामिल हुए थे, सन १९२१ से १९४२ के दौरान वह गाँधी जी के सत्याग्रह में भाग लेकर ८ बार जेल गए।

अपने अध्ययन एवं लेखन के दौरान पंडित गणेश शंकर की भेंट पंडित सुन्दरलाल कायस्थ जी से हुई। पंडित सुन्दर लाल ने ही पंडित गणेश शंकर को 'विद्यार्थी' उपनाम तथा हिंदी में लिखने की प्रेरणा दी । उनकी पुस्तक 'भारत में अंग्रेज़ी राज' के दो खंडों में सन १६६१ ई. से लेकर १८५७ ई. तक के भारत का इतिहास संकलित है। उनकी प्रखर लेखनी ने १९१४-१५ में भारत की सरजमीं पर गदर पार्टी के सशस्त्र क्रांति के प्रयास और भारत की आजादी के लिए गदर पार्टी के क्रांतिकारियों के अनुपम बलिदानों का सजीव वर्णन किया है जो १८ मार्च १९२८ को प्रकाशित होते ही २२  मार्च को अंग्रेज सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दी गई। यह अंग्रेजों की कूटनीति और काले कारनामों का खुला दस्तावेज है, जिसकी प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए लेखक ने अंग्रेज अधिकारियों के स्वयं के लिखे डायरी के पन्नों का शब्दश: उद्धरण दिया है। पंडित सुंदरलाल पत्रकार, साहित्यकार, स्तंभकार के साथ ही साथ स्वतंत्रता सेनानी थे। वह कर्मयोगी एवं स्वराज्य हिंदी साप्ताहिक पत्र के संपादक भी रहे। उन्होंने ५० से अधिक पुस्तकों की रचना की। स्वाधीनता के उपरांत उन्होंने अपना जीवन सांप्रदायिक सदभाव को समर्पित कर दिया। वह अखिल भारतीय शांति परिषद् के अध्यक्ष एवं भारत-चीन मैत्री संघ के संस्थापक भी रहे। प्रधानमंत्री पं॰ जवाहरलाल नेहरु ने उन्हें अनेक बार शांति मिशनों में विदेश भेजा। पं. सुंदरलाल की प्रमुख कृतियाँ भारत में अंग्रेज़ी राज, How India Lost Her Freedom, The Gita and the Quran, विश्व संघ की ओर तथा भारत चीन विवाद आदि हैं। 

***
  




जबलपुर 
००१. स्व.गणेश प्रसाद श्रीवास्तव - जबलपुर 

जन्म - १९११, जबलपुर।
आत्मज स्व. शंभु प्रसाद श्रीवास्तव।
शिक्षा - माध्यमिक।
वर्ष १९२३ से राजनैतिक गतिविधियाँ। १९३२ के आंदोलन में गिरफ्तार ६ माह कैद, २५/- अर्थदंड।
नेशनल बॉय स्काउट संस्था के संस्थापक सदस्य। १९३३ तथा १९३५ में राष्ट्रीय स्काउट प्रदर्शनी का सफल आयोजन किया।
१९३९ में कांग्रेस अधिवेशन त्रिपुरी, जबलपुर में स्वयं सेवकों के प्लाटून कमांडर। सराहनीय प्रदर्शन कर प्रशंसा पाई।
महाकौशल युवक कांफ्रेंस को सफल बनाने हेतु अथक परिश्रम किया।
व्यक्तिगत सत्याग्रह १९४१ में ४ माह की सजा हुई।
'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन १९४२ में २ वर्ष तक नज़रबंद।
सत्याग्रही साथियों के बीच 'लाला जी' संबोधन से लोकप्रिय।
स्वास्थ्य बिगड़ने के बावजूद स्वतंत्रता संबंधी गतिविधियों में अंतिम सांस तक सक्रिय रहे।
(संदर्भ - स्वतंत्रता संग्राम और जबलपुर नगर, रामेश्वर प्रसाद गुरु, पृष्ठ ९५) 
*

नरसिंहपुर 
श्री लक्ष्मीप्रसाद सक्सेना - नरसिंहपुर 

'भारत छोड़ो' आंदोलन १९४२ की चिंगारी नरसिंहपुर में मशाल बन कर भभक उठी। श्री लक्ष्मीप्रसाद सक्सेना ने अपने पत्नी श्रीमती बइयोबाई  सक्सेना के साथ मिलकर क्रांतिकारियों के संदेश तथा उनके समर्थन में अपील के पर्चे हाथ से नकल कर प्रतियाँ तैयार कीं तथा आम लोगों में वितरण कर नगर की दीवारों पर चस्पा किया।१ / ७४ 







रतलाम 
श्रीमती दुर्गा देवी निगम - रतलाम  

स्वतंत्रता आंदोलन के तेजस्वी प्रणेता स्वामी ज्ञानानंद की प्रेरणा से १९२० में रतलाम में जिला कांग्रेस समिति तथा १९३१ में महिला सेवा दल की स्थापना हुई। रतलाम निवासी श्रीमती दुर्गा देवी निगम ने १९३१ में स्वतंत्रता सत्याग्रह में सक्रियता से भाग लिया। उन्होंने बापू के आह्वान पर पर्दा और घूँघट का त्याग किया। २३ मार्च १९३१ को लाहौर में स्वतंत्रता सेनानी  सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव को फाँसी दिए जाने का समाचार मिलते हो दुर्गा देवी ने महिलाओं को जाग्रत कर नगर में स्त्रियों-पुरुषों तथा विद्यार्थियों के विशाल जुलूस का देवचंद भाट के साथ सफल नेतृत्व किया तथा पूर्ण हड़ताल कराई। 'भगत सिंह-राजगुरु-सुखदेव ज़िंदाबाद', 'अन्याय नहीं चलेगा', 'नेताओं को रिहा करो' आदि गगनभेदी नारे लगते हुए जुलुस रानी के मंदिर के सामने पहुँचकर विशाल जनसभा में परिवर्तित हो गया। दुर्गा देवी, देव चंद तथा अन्य नेताओं ने उग्र भाषण दिए, पुलिस ने बिना चेतावनी दिए बेरहमी से भारी लाठी चार्ज किया। सैंकड़ों स्त्री-पुरुष, किशोर-युवा-वृद्ध घायल हुए। नृशंस प्रशासन ने सभा बंदी आदेश लागू कर दुर्गा देवी तथा अन्य १२-१३ महिलाओं तथा अनेक पुरुषों को गिरफ्तार  कर लिया,  घायलों की  चिकित्सा तक नहीं होने दी। पुलिस ने स्त्रियों और किशोरों तक को सार्वजनिक  रूप से हण्टरों से पीटा तथा गाली-गलौज की। जनाक्रोश की गंभीरता को देखते हुए रतलाम के महाराज ने जनता की कुछ माँगें माँग लीं। १   
*
स्व. फूलमती देवी भटनागर - कटनी

कटनी निवासी फूलमती देवी भटनागर ने प्राथमिक शिक्षा के बाद से ही स्वतंत्रता सत्याग्रहों में भाग लेना आरंभ कर दिया तथा १९४२ के 'भारत छोड़ो' आंदोलन में ओजस्वी नेतृत्व किया। फलत:, जुलूसों में भाग लेने, नारेबाजी करने तथा सरकार का विरोध करने के जुर्म में इन्हें १६ दिन कारावास की सजा सुनाई गई।१ / ७१    

श्रीमती बईयोबाई सक्सेना - नरसिंहपुर 

'भारत छोड़ो' आंदोलन १९४२ की चिंगारी नरसिंहपुर में मशाल बन कर भभक उठी। श्रीमती बईयोबाई ने अपने पति श्री लक्ष्मीप्रसाद सक्सेना का हाथ बँटाते हुए क्रांतिकारियों के संदेश तथा उनके समर्थन में अपील के पर्चे हाथ से नकल कर प्रतियाँ तैयार कीं तथा आम लोगों में वितरण किया और नगर की दीवारों पर चस्पा किया।१ / ७४ 



महिला क्रांतिकारी / सत्याग्रही 

१९२१ के असहयोग आंदोलन में गाँधी ने स्वतंत्रता आंदोलनों में महिलाओं द्वारा सी मित भूमिका निभाने की अपेक्षा की ताकि वे सुरंक्षित रहें किंतु महिलाओं ने सामाजिक बंधनों और पारिवारिक प्रतिबंधों से जूझते हुए भी आजादी के हवन में समिधा समर्पित की। 


बंगाल 

बंगाली कायस्थ - अध्य, एच, इंद्र, कर, कुंडू, गुहा, गुहाठाकुरदा, घोष, चंदा, चंद्रा, चाकी, चौधरी/चौधुरी, डे, दत्त/दत्ता, दाम, दास, देब/देव, धर,  नंदी, नाग, नाथ, पालित, पुरकैत/पुरकायस्थ, बख्शी, बसु/बोस, बर्धन/वर्धन, बिस्वास/विश्वास, पाल, भद्र, मजुमदार, मित्र/ मित्रा, राय/रे, राहा, शील, सरकार, सिन्हा, सुर, सेन। 
 
श्रीमती वासन्ती देवी, उर्मिला देवी, सुकीर्ति देवी कोलकाता 
 
नवंबर १९२१ में प्रिंस ऑफ़ वेल्स के भारत आगमन पर १००० स्त्रियों ने देशबंधु चितरंजन दास की पत्नी वासंती देवी के नेतृत्व में प्रदर्शन किया। देशबंधु की बहिन उर्मिला देवी तथा भतीजी सिकीर्ति देवी ने उनका सहयोग किया।  


तेलंगाना 
हैदराबाद 
बी. सत्य नारायण रेड्डी


बी. सत्य नारायण रेड्डी (२१ अगस्त १९२७ - ६ अक्टूबर २०१२)  का जन्म अन्नाराम गाँव के कृषक परिवार में शादनगर (महबूबनगर जिला, तेलंगाना) में हुआ। उन्होंने हैदराबाद के निज़ाम कॉलेज में शिक्षा प्राप्त कर उस्मानिया विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक किया। उन्होंने केवल १४ वर्ष की आयु में, १९४२ में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। उन्हें गाँधी जी की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे छात्रों के जुलूस का नेतृत्व करने के लिए गिरफ्तार किया गया। बाद में उन्होंने १९४७ में हैदराबाद पीपुल्स मूवमेंट में भाग लेकर निज़ाम के नियम के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन किया। उन्हें ६ माह की सजा देकर चंचलगुडा जेल में डाल दिया गया। जेल में उन्होंने 'पायम-ए-नव' साप्ताहिक का संपादन कर जेल के साथियों के बीच प्रसारित किया।

राजनीतिक कैरियर
आचार्य नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया से प्रेरित होर रेड्डी समाजवादी आंदोलन का हिस्सा बने। वह विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में भी भागीदार थे । कांग्रेस से अलग रहकर, वह समाजवादी पार्टी, जनता पार्टी और लोकदल के साथ विभिन्न रूप से जुड़े रहे । जनता पार्टी के एक उम्मीदवार के रूप में उन्हें १९७८ में राज्यसभा के लिए चुना गया। १९८३ में वे तेलुगु देशम पार्टी में शामिल हो गए और १९८४ में राज्यसभा के लिए अपने उम्मीदवार के रूप में फिर से चुने गए। वे  उत्तर प्रदेश (१२-२-१९९० से २५-५-१९९३), ओडिशा (१-६-१९९३ से १७ जून १९९५) और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल भी रहे। १४ अगस्त १९९३ को बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के समय वह उत्तर प्रदेश के राज्यपाल थे ।
***




कोई टिप्पणी नहीं: