मीना कुमारी... एक अजीम अदाकारा...एक न भुलाई जा सकनेवाली फनकार...एक मासूम शख्सियत... लोगों के दिलों पर राज करनेवाली नायिका... दर्द और तन्हाई को साँस-साँस जीनेवाली रूह जो जिस्म की क़ैद में घुट-घुटकर जीती रही..जी-जी कर मरती रही...और अब मरने के बाद भी जी रही है लोगों के दिलों में , अपने कलाम में--
चाँद तन्हा है,आस्मां तन्हा
दिल मिला है कहाँ-कहाँ तन्हा
बुझ गई आस, छुप गया तारा
thartharata रहा धुंआ तन्हा
ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं?
जिस्म तन्हा है और जां तन्हा
हमसफ़र कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे यहाँ तन्हा
जलती -बुझती -सी रौशनी के परे
सिमटा -सिमटा -सा एक मकां तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेंगे ये मकां तन्हा
मीना जी का शब्द चित्र, गुलज़ार के शब्दों में --
शहतूत की शाख़ पे बैठी मीना
बुनती है रेशम के धागे
लम्हा -लम्हा खोल रही है
पत्ता -पत्ता बीन रही है
एक एक सांस
बजाकर सुनती है सौदायन
एक-एक सांस को खोल कर
अपने तन पर लिपटाती जाती है
अपने ही तागों की कैदी
रेशम की यह शायरा एक दिन
अपने ही तागों में घुट कर मर जायेगी
मीना जिंदा हैं अपने चाहनेवालों के कलाम में --
नहीं,
वह नहीं थी
इस ज़मीन के लिए।
वह तो
कोई कशिश थी,
हर आज से दूर,
हर कल के पास,
हर मंजिल उसे
देती रही दगा,
और वह करती रही
हर दगे पर एतबार।
दगे थक गए
उससे फरेब करते-करते।
पर वह न थकी
फरेब खाते-खाते।
कौन जाने
वह आज भी
कहीं छिपी हो
शबनम की किसी बूँद में,
आफ़ताब की चमक में,
माहताब की दमक में।
न भी हो तो
मन नहीं मानता
कि वह नहीं है।
वह नहीं हो
तो तन्हाई कैसे है?
वह नहीं है
तो रुसवाई कैसे है?
वह नहीं है
तो अदाकारी कैसे है?
वह नहीं है
तो आँसू कैसे हैं?
वह तो यहीं है-
मुझमें...तुममें॥
इसमें...उसमें...सबमें...
मानो या न मानो
पर वह है। -- सलिल
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4 टिप्पणियां:
मीना कुमारी को आज फिर देखा आचार्य के ब्लॉग पर तो मन फिर खो गया,,,,,
उसके चाहने वालों के कलाम में मेरी भी आवाज शामिल हो ,,,,,
अदाकारा तो वे नायाब ही थीं लेकिन रोती बहुत थीं। हमें तो भई रोने वाले लोगों पर गुस्सा आता है। यदि हम सशक्त होकर भी रोते रहेंगे तो अशक्तों को कौन थामेगा? लेकिन आप सभी की पसंदीदा हैं और अदाकारा तो खैर वे लाजवाब ही थीं। आपके स्मरण को नमन।
मीना कुमारी की अभिनय कला आज भी मील का पत्थर है ।
salil ji ne Meena kumari ko Gulzar se behtar jana aur samjha hai ..no doubt
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