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सोमवार, 27 अप्रैल 2009

शब्द-यात्रा : चाट -अजित वडनेरकर

चा टवाले खोमचों पर सबसे ज्यादा खपत पानीपूरी की होती है जिसे गोलगप्पा भी कहते हैं। मैदे की लोई को जब छोटे आकार में बेला जाता है तो तलने पर ये फूल कर कुप्पा हो जाती हैं इसीलिए इन्हें गोलगप्पा भी कहते हैं। इन्हें पानी पताशा, पानी पतासा भी कहते हैं जो शुद्ध रूप में पानी बताशा है मगर मुख-सुख के सिद्धांत पर पानी के साथ पताशा शब्द चल पड़ा। मुंबई की चौपाटी पर भेलपुरी प्रसिद्ध है। मज़े की बात यह कि भेलपूरी में खस्ता पूरी को कुचल कर परोसा जाता है। मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड अंचल में इन्हें फुलकियां भी कहा जाता है।
पूरने की क्रिया से बनी कचौरी और पूरी ही पानीपूरी में भी समायी है, अलबत्ता पानीपूरी का आकार काफी छोटा होता है। कचौरी और पूरी बने हैं संस्कृत के पूरिका से। यह शब्द बना है पूर् धातु से जिसमें कुछ भरने, समाने और संतुष्टि का भाव है। कचौरी और पूरी दोनों में ही दाल भरी जाती है। यहां पानीपूरी के साथ थोड़ा उलटा मामला है। पानी पूरी को भी पूरा जाता है अर्थात इसमें भी स्टफिंग होती है मगर पकाने से पहले नहीं बल्कि इसे खाने के वक्त। इसकी खास स्टफिंग है पानी। इसे फोड़ कर इसमें पानी भरा जाता है। कुछ उबले आलू-बूंदी का नाम मात्र का मसाला भी साथ में होता है। असल भरावन पानी की होती है जो खट्टा-तीखा, खट्ठा-मीठा या सिर्फ मीठा हो सकता है। इसीलिए इसे पानीपूरी कहा जाता है। पानी पूरी के लिए सबसे मुफीद नाम गोलगप्पा ही है और काफी मशहूर भी।
पानीपूरी, फुलकी या पानी पताशा जैसे नाम इलाकाई पहचान रखते हैं मगर इस स्वादिष्ट खोमचा पक्वान्न के गोलगप्पा नाम को अखिल भारतीय सर्वस्वीकार्यता मिली हुई है। इसकी छोटी छोटी पूरियों के गोल-मटोल आकार की वजह से गोल शब्द तो एकदम सार्थक है। संस्कृत की गुडः धातु का अर्थ होता है पिंड। गोलः शब्द इससे ही बना है जिसका अर्थ होता है गोल, मंडलाकार वस्तु। मगर गप्पा का क्या अर्थ हुआ? आमतौर पर मुंह के रास्ते किसी चीज़ को निगलने के लिए गप् शब्द का प्रयोग होता है। इसे देशज शब्द बता कर इसकी व्युत्पत्ति को अज्ञात खाते में डाला जाता रहा है। मगर ऐसा नहीं है।
गप् शब्द पर गौर करें तो किसी स्वादिष्ट पदार्थ को समूचा या मीठे बताशेऔर ये पानी बताशे…पानी पूरी की छोटी छोटी फुलकियों को हवा से भरी पूरी के अर्थ में बताशा कहना तार्किक है… निवाले में एकबारगी उदरस्थ करने का भाव है। मराठी में एक मुहावरा है ‘गप्प’ यानी एकदम खामोश। हिन्दी में गुपचुप शब्द का जो भाव है वही मराठी के गप्प में है। खामोशी का अर्थ है अस्तित्व का पता न चलना। अस्तित्व का बोध करानेवाला महत्वपूर्ण तत्व ध्वनि है। यह गप्प या गुपचुप दरअसल संस्कृत की गुप् धातु से आ रहा है जिससे ही हिन्दी का गुप्त शब्द बना है जिसका अभिप्राय होता है छुपना, छुपाना, ढकना। पसंदीदा खाद्यपदार्थ को झटपट रसना का स्पर्श कराए बिना सीधे पेट में उतारने की प्रक्रिया पर गौर करें तो पता चलेगा कि किस तरह देखते ही देखते एक स्वाद-लोलुप स्वादिष्ट पदार्थ को ‘गुप्त’ कर देता है। गुप्त से ही बना है गुप शब्द जिसका चुप के साथ मेल होकर गुपचुप जैसा समास बनता है। साफ़ है कि गुप्त के ग़ायबाना अंदाज़ में ही छुपा है गोलगप्पा के गप्पा का राज़। एक स्वादिष्ट गोल पूरी को गप से खा जाने का भाव ही इसमें प्रमुख है। य़ूं भी हिन्दुस्तानी समाज में नाज़नीनों और पर्दानशीनों के गुपचुप गोलगप्पे खाने की अदाओं और तरीकों से कौन वाकिफ नहीं है। गोलगप्पे गुपचुप खाने की चीज़ ही तो हैं!!!
अब आते हैं पानी पताशा पर। यह बना है बताशा शब्द से जिससे सब परिचित है। बताशा एक ऐसी खुश्क मिठाई है जो शकर से बनती है। जॉन प्लैट्स के कोश में बताशा की व्युत्पत्ति वात+आस+कः बताई गई है। स्पष्ट है कि वाताशकः>वाताशअ>वाताशा होते हुए बताशा शब्द बन गया। इसका अर्थ हुआ ऐसा पदार्थ जिसके अंदर वात यानी हवा भरी गई हो। इसे बनाने की प्रक्रिया के तहत इसमें हवा रखी जाती है। बताशा अंदर से खोखला होता है और चारों और शकर की गोल पतली परत होती है। बताशा मुंह में रखते ही घुल जाता है इसलिए बताशा सा घुलना एक मुहावरा भी बन गया है। सबमें जल्दी घुलने-मिलने के अर्थ में इसका प्रयोग होता है। प्रायः हर भारतीय तीज-त्योहार-पर्व पर भोग सामग्री का महत्वपूर्ण अंग है इसीलिए रोज उत्सवी ठाठ दिखाने वाले लोगों के लिए बताशे फोड़ना जैसा मुहावरा भी चल पड़ा है। इस तरह से पानी पूरी की छोटी छोटी फुलकियों को हवा से भरी पूरी के अर्थ में बताशा कहना तार्किक है। इसके लिए फुलकी शब्द इसीलिए प्रचलित हुआ क्योंकि ये फूली रहती हैं। गोलमटोल फूली हुई रोटी फुलका कहलाती है तो उसका छोटा रूप हुआ फुलकी।

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