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मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

ग़ज़ल, मनु 'बेतख्ल्लुस

ग़ज़ल

-मनु 'बेतख्ल्लुस', दिल्ली

गमे-हस्ती के सौ बहाने हैं,

ख़ुद ही अपने पे आजमाने हैं।

सर्द रातें गुजारने के लिए,

धूप के गीत गुनगुनाने हैं।

कैद सौ आफ़ताब तो कर लूँ,

क्या मुहल्ले के घर जलाने हैं।

आ ही जायेंगे वो चराग ढले,

और उनके कहाँ ठिकाने हैं।

फ़िक्र पर बंदिशें हजारों हैं,

सोचिये, क्या हसीं जमाने हैं।

तुझ सा मशहूर हो नहीं सकता,

तुझ से हटकर, मेरे फ़साने हैं।

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