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शनिवार, 25 अप्रैल 2009

अश'आर : दोस्त -सलिल

दोस्त जब मेहरबां हुए हम पर.
दुश्मनी में न फिर कसर छोडी.

ए 'सलिल'! दिल को कर मजबूत ले.
आ रहे हैं दोस्त मिलने के लिए.

शिकवा न दुश्मनों से मुझको रहा 'सलिल'.
हैरत है दोस्तों ने ही प्यार से मारा..

संबंधों के अनुबंधों में प्रतिबंधों की.
दम टूटी, जब मिला दोस्त सच्चा कोई भी..

जिस्म दो इक जां रहे जो.
दोस्त उनको जानिए.

दोस्त ने दोस्त से न कुछ चाहा.
हुई चाहत तो दोस्ती न रही.

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