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शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

नमन नर्मदा :

नमन नर्मदा

सुशीला शुक्ला

गुलों स्व खेलती
पहाडों पर उछलती
चंचल बाला सी
खिलखिलाती बहती हो।

सुबह सूरज से खेल
रात तारों को ओढ़
चन्द्र तकिया लगा
परी बन लुभाती हो

फूलों को अपने
आगोश में समेटकर
नेह नर धरती पर
अपने बिखेर कर

लहराती फसलों में
झूम रहे जंगल में
हरियाली से झाँक रहा
तेरा अस्तित्व माँ

लहरों में तैरती
इतिहास की परछाइयाँ
मं को डुबोती हैं
तेरी गहराइयां

वायु के झकोरे जब
छेदते तरंगों को
जल तरंग सी बजकर
कानों को छलती हो

मंगलाय मन्त्र ऐसे
वाणी से झरते हैं
सदियों से जाप करें
जैसे तपस्विनी

धरती को परस रही
परस सा नीर निज
मेरे शब्दों में ढली
बनीं कविता कामिनी।
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