पान पन्हैया की रही, भारत में पहचान।
पान बन गया लबों की, युगों-युगों से शान।
रही पन्हैया शेष थी, पग तज आयी हाथ।
'सलिल' मिसाइल बन चली, छूने सीधे माथ।
जब-जब भारत भूमि में होंगें आम चुनाव।
तब-तब बढ़ जायेंगे अब जूतों के भाव।
- आचार्य संजीव 'सलिल' सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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सोमवार, 13 अप्रैल 2009
पान-पन्हैया और आम चुनाव- संजीव 'सलिल'
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संजीव 'सलिल'
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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1 टिप्पणी:
हेहेहेहेह | सही कहा
अवनीश तिवारी
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