सोन बाई सोन बाई
नीचे तो आ।
झाडों के ऊपर
तू सोना झरा॥
बदल के पीछे से
सोनेरी तीर छोड़।
घास फूल पत्तों में
जान तो जगा॥
मन्दिर में सोते जो
राम, कृष्ण, शंकर,
खिड़की से झांक-झांक
उन्हें तो जगा॥
भोर हुई, रात गयी
नभ से सोना बरसे,
सोने की घंटी का,
गीत तो सुना॥
चिडियों की तिहुर-तिहुर,
कौवों की कांव-कांव,
पीपल के पत्तों में
नीचे की धूप-छाँव॥
सड़कों पर, बागों पर
नगर के तालाबों पर,
सूखऐ और खिले हुए
मोगरा गुलाबों पर॥
रोते पर, हंसते पर
भूख से बिलखते पर,
कोमल से ममतामय
हाथों से सोनबाई
मरहम सी, सोने की,
परत तो चढा॥
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 14 अप्रैल 2009
बाल गीत: भोर की धूप - पुष्पलता शर्मा, अहमदाबाद
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गीत: भोर की धूप - पुष्पलता शर्मा
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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