गीत
कागा आया है
जयकार करो,
जीवन के हर दिन
सौ बार मरो...
राजहंस को
बगुले सिखा रहे
मानसरोवर तज
पोखर उतरो...
सेवा पर
मेवा को वरीयता
नित उपदेशो
मत आचरण करो...
तुलसी त्यागो
कैक्टस अपनाओ
बोनसाई बन
अपनी जड़ कुतरो...
स्वार्थ पूर्ति हित
कहो गधे को बाप
निज थूका चाटो
नेता चतुरों...
कंकर में शंकर
हमने देखा
शंकर को कंकर
कर दो ससुरों...
मात-पिता मांगे
प्रभु से लडके
भूल फ़र्ज़, हक
लड़के लो पुतरों...
*****
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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बुधवार, 29 अप्रैल 2009
गीत: मानसरोवर तज... संजीव 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
कागा,
गीत: मानसरोवर तज... संजीव 'सलिल',
नेता,
बगुले
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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2 टिप्पणियां:
AACHAARYA SANJEEV JEE,
AAPKE DIVYA NARMADA BLOG PAR PAHLEE
BAAR AAYAA HOON.BAHUT HEE ACHCHHA LAGAA HAI,
NETRON KO BHEE AUR MUN KO BHEE.SAHITYIK DIVYATA
KEE CHAANDNI CHAHUN AUR CHHITKEE HUEE HAI.BLOG
PREMIYON KO YAHAN AVASHYA AANAA CHAHIYE.
उर्दू के अदब के श्रेष्ठ-ज्येष्ठ गज़लकार श्री प्राण, लन्दन ने दिव्यनर्मदा को शुभाशेष भेजकर हमारा उत्साहवर्धन किय. हम आपके आभारी हैं. सं.
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