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मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

मुक्तिका: सो जाइए -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

सो जाइए

संजीव 'सलिल'
*
'सलिल' को दे दर्द अपने, चैन से सो जाइए।
नर्मदा है नेह की, फसलें यहाँ बो जाइए।

चंद्रमा में चांदनी भी और धब्बे-दाग भी।
चन्दनी अनुभूतियों से पीर सब धो जाइए।

होश में जब तक रहे, मैं-तुम न हम हो पाए थे।
भुला दुनिया मस्त हो, मस्ती में खुद खो जाइए।

खुदा बनने था चला, इंसां न बन पाया 'सलिल'।
खुदाया अब आप ही, इंसान बन दिखलाइए।

एक उँगली उठाता है जब भी गैरों पर 'सलिल'
तीन उँगली चीखती हैं, खुद सुधर कर आइए।

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