स्वरूप संपत रोज़गार के लिए बहुत घूमा। कई जोड़े जूते-चप्पलें घिस गयीं। मायूस होकर उसने आत्महत्या की बात सोचना प्रारम्भ कर दी।
मरने से पहले उसने अपने इष्ट की याद कर लेना उचित समझा। प्रार्थना करते हुए वह मन ही मन में बुदबुदाया: 'हे इष्ट देव! अगली बार यदि जन्म देना तो किसी आरक्षित वर्ग में ही देना, नहीं तो इस मनुष्य तन का फायदा ही क्या है?' ऐसे ही चप्पलें तब भी घिसनी पड़ेंगी और ऐसी ही कायरता तब भी करना पड़ेगी। मैं बार-बार ऐसा नहीं करना चाहता हूँ। भगवान जी! मेरी लाज रखना।
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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बुधवार, 29 अप्रैल 2009
लघु कथा सलिला: प्रार्थना -कुँवर प्रेमिल
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लघु कथा सलिला: प्रार्थना -कुँवर प्रेमिल
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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1 टिप्पणी:
मर्मस्पर्शी लघुकथा.
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