शक्कर मंहगी होना पर...
दोहा गजल
आचार्य संजीव 'सलिल'
शक्कर मंहगी हो रही, कडुवा हुआ चुनाव.
क्या जाने आगे कहाँ, कितना रहे अभाव?
नेता को निज जीत की, करना फ़िक्र-स्वभाव.
भुगतेगी जनता'सलिल',बेबस करे निभाव.
व्यापारी को है महज, धन से रहा लगाव.
क्या मतलब किस पर पड़े कैसा कहाँ प्रभाव?
कम ज़रूरतें कर 'सलिल',कर मत तल्ख़ स्वभाव.
मीठी बातें मिटतीं, शक्कर बिन अलगाव.
कभी नाव में नदी है, कभी नदी में नाव.
डूब,उबर, तरना'सलिल',नर का रहा स्वभाव.
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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सोमवार, 20 अप्रैल 2009
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1 टिप्पणी:
पहले तो मै आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी !
बहुत बढिया!! इसी तरह से लिखते रहिए !
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