डॉ. महेश चन्द्र शर्मा
एक नदी इठलाती,
बलखाती,
गुनगुनाती।
सूर्य की रश्मियों में,
धवल ज्योत्सना में।
अपनी चुनरी में
गोटा सजाती
एक नदी।
एक नदी
अपने रूप पर
अपने यौवन पर
आत्ममुग्धा सी।
एक नदी
पाषाणों को भेदती
तीरों को सींचती
तटबंधों को तोड़ती
नित नए रूप संजोती।
एक नदी
बिखेरती सुगंध
देती पुलक
सुनाती संगीत।
एक सामान्य सी
असामान्य
एक बूझी सी
अबूझ नदी।
बिंदु से
सिन्धु तक प्रवाहित
अन्य नदियों सी
एक नदी।
मन को,
तन को,
ज्ञान को,
विज्ञान को,
राग को,
विराग को,
भेदती, तोड़ती,
सींचती एक नदी।
सभी शिल्पों को
आकारों को
विगलित कर
रसधारा में
डुबाती-तिराती
भिगाती-उतराती
अव्यक्त अचल रूप
संजोती एक नदी।
मरू में
उगाती दूर्वा शांति,
सुख-जीवन
एक नदी।
घने तम् में
दीप जलाती
आलोक बिखराती
एक नदी।
आलोक जो करता
परावृत्त
शिखर, गव्हर,
वन-प्रांतर,
तन-मन।
तभी कहलाती
सुखदा-शांतिदा,
मुक्तिदा-मोक्षदा
एक नदी।
आस्था के भाल पर
दैदीप्यमान तिलक
एक नदी।
एक नदी
बनी नारी।
जप-तप कर
सोपान चढ़
वात्सल्य उडेल
बन गयी माँ।
सिन्धु से बिंदु तक
प्रवाहित होती हुई
एक नदी.
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6 टिप्पणियां:
आचार्य,
ये दोनों स्थान यदि आपके घर के आस पास हैं तो यही कहूंगा के ,
मुझे आपसे इर्ष्या हो रही है,,,,,,,,,,,,
सलिल जी
मनु जी को ईर्ष्या हो रही है और हमें अभिमान। हमारे आचार्य जी इतने मनोरम स्थान के पास रहते हैं यह हमारे लिए अभिमान की बात है, क्योंकि हमें भी तो वहाँ जाने का अवसर मिलेगा और साथ में घर भी। आचार्य जी क्यों न एक दोहा गोष्ठी वहीं कर ली जाए जिससे सभी से मिलना हो जाए।
सलिल जी मुझे ईर्ष्या तो नही हो रही मगर इसकी सुन्दरता ने मन मोह लिया यदि ये आपके घर के पास है तो फिर हमे आना पडेगा। यहाँ के पानी के प्रसाद मे आपका भी स्नेह जरूर होगा। शुभकामनायें।
नर्मदा है निर्मला... कपिला भी इसका नाम है... फिर भी आप अब तक दूर हैं? सलिल नर्मदा तटवासी है... घर आपका ही है... पधारें...
achary ji
apne aap me anokhi nadi ka darshan karane ke liye bahut bahut dhanyawaad
▬● आपकी रचनाओं को मैंने काफी आकर्षक पाया है... शुभकामनायें...
दोस्त अगर समय मिले तो मेरी पोस्ट पर भ्रमन्तु हो जाइये...
● Meri Lekhani, Mere Vichar..
● http://jogendrasingh.blogspot.in/2012/02/blog-post_3902.html
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