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रविवार, 3 जून 2018

लघुकथा: लक्ष्यवेध

लघुकथा: लक्ष्यवेध

आयकर विभाग में जमकर कमाई करने के बाद,  सेवानिवृत्ति पश्चात उसी विभाग में वकालत कर,  कभी मातहत रहे और अब निर्णायक पदों पर आसीन मित्रों के भरोसे वकालत करने लगे वे। धनपतियों को कर-चोरी के तरीके सुझाने, मन-मुताबिक फैसले कराने और इसकी एवज में येन-केन-प्रकारेण आदान-प्रदान के बाद मनचाहे फैसले कराकर कमाने-बाँटने का खेल खुल्लमखुल्ला होने लगा।
दो नंबर के धन से जेब भरी हो तो दो के चार खर्च करने में अपने बाप का क्या जाता है? अपनी इस दूरदर्शी सोच से पड़ोसियों को उपकृत कर वे अपने अपार्टमेंट की सोसायटी के अध्यक्ष बन बैठे। कुछ साल बाद कार खरीदी तो खुली जमीन के एक भाग पर शेड तान लिया। कुछ साल निकले, धन बड़ी मात्रा में एकत्र हो गया। कर देने के बजाय फ्लैट के मूल्य से अधिक धन उसकी मरम्मत में खर्च कर छाती फैलाकर घूमते रहे। लगा हुए हर सामान को सबसे अधिक मंहगा बताते समय उनकी छाती फूल और फैल जाती। पड़ोसियों को शहर के महँगे होटल में रात्रिभोज देकर, अगले ही दिन अपार्टमेंट के पीछे की जमीन पर एक शेड तानकर कर लिया उन्होंने लक्ष्यवेध ।
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3.6.2018, 7999559618

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