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रविवार, 10 जून 2018

कार्यशाला: रचना एक रचनाकार दो

कार्यशाला: 
रचना एक रचनाकार दो 
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पथरीले थे रास्ते, दुख का नहीं हिसाब ।
अनुभव अनुभव जोड़कर, छाया बनी किताब ।। -छाया शुक्ला

छाया बनी किताब, धूप हँस पढ़ने बैठी।  
छोड़ न पाई चाह, ह्रदय में छाया पैठी।।  
देखें दर्पण सलिल, न टिकते बिंब हठीले।  
लिख कविता संजीव, स्वप्न पाए नखरीले।।  -संजीव 
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१०.६.२०१८  

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