दोहा गीत
*
जब-जब मिला कबीर से, काबिल पूत कमाल।
तब-तब लोई हँस पड़ी, होगा बहुत धमाल...
*
ज्यों की त्यों चादर रखे, बाप सहेज-सहेज।
त्यों की त्यों क्यों चाहिए, पूत बिछाता सेज।।
यह चुप वह भी मौन; लख, मुँह दोनों के लाल।
छुपकर लोई हँस पड़ी, बन दोनों की ढाल...
*
बाँट-बटोरो खेलते, दोनों मिलकर खेल।
ठिठक कमाली हँस रही, देख मेल बेमेल।।
भिन्न-अभिन्न समझ रही, नहीं बजाती गाल।
कभी-कभी दे रही है, इस-उस के सँग ताल...
*
यह दो पाटों बीच है, वह कीली के साथ।
झुका-उठा बेदाग ही, है दोनों का माथ।।
इसीलिए तो है नहीं, मन में तनिक मलाल।
किसका उत्तर कौन दे, दोनों हुए सवाल...
*
लुटा-सम्हाला; सार है, किसमें कौन असार।
माँ-बेटी सच जानतीं, इस बिन वह निस्सार।।
उस बिन इसका भी हुआ, आप हाल-बेहाल।
दोनों ही सच जानते, किंतु न कहते टाल...
*
पीठ फेर सो; जब जगे, अधरों पाया हास।
भुज-भर हँसते ठठाकर, पल में भागा त्रास।।
सूत कातकर बुन रहे, ताना-बाना-शाल।
जिएँ आज में आज को, कल की जाने काल...
***
20.6.2018, 7999559618
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
बुधवार, 20 जून 2018
दोहा गीत
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें