हिंदी काव्य के वर्णिक छंद और उर्दू की बहरें
- राजेन्द्र वर्मा
परिचय: जन्म १५.३.१९५५, ग्राम सधई पुरवा, तहसील फ़तेहपुर, बाराबंकी उ.प्र.। संप्रति: से.नि. मुख्य प्रबंधक भारतीय स्टेट बैंक, प्रकाशन: चुटकी भर चाँदनी -दोहे, नवसृजन के स्वर -गीत, अन्तर संधि -गीत-नवगीत, बूँद-बूँद बादल -हाइकु, लौ -ग़ज़लें, मिथ्या का सत्य -कविताएँ, भारत उसका नाम -किशोरों हेतु कविताएँ, कागज़ की नाव -नवगीत, अंक में आकाश -ग़ज़लें, जीवन है अनमोल -पद, मुझे ईमानदार मत कहो -व्यंग्य(उ.प्र. हिन्दी संस्थान का श्रीनारायण चतुर्वेदी पुरस्कार), अभिमन्यु की जीत -लघुकथाएँ, दोहा छन्दः एक अध्ययन -आलोचना, दीया और दीवट -निबंध(उ.प्र. हिन्दी संस्थान का महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार), सफलता के सात सोपान -प्रेरक साहित्य, विकल्प -लघुकथाएँ, पद पुराण व्यंग्य, मुक्ति और अन्य कहानियाँ, पेट और तोंद -व्यंग्य, सत्ता-रस -व्यंग्य, रस-छंद-अलंकार और प्रमुख काव्य-विधाएँ, Selected poems of Rajendra Verma Translation by Awadhesh K. Shrivastava, उपलब्धि: अखिल भारतीय लघुकथा सम्मान पटना, ‘कथाबिंब पत्रिका का कमलेश्वर कहानी सम्मान, भुवनेश्वर शोध संस्थान (शाहजहाँपुर) का ‘शिवांशु स्मृति सम्मान’, लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा एम्-फिल. 2005, रचनाएँ अंग्रेजी-पंजाबी में अनुवादित। संपादन: गीत शती, गीत गुंजन, अविरल मंथन १९९६-२००३। प्रसारण आकाशवाणी लखनऊ। संपर्क: ३/२९ विकास नगर, लखनऊ २२६०२२, चलभाष ८००९६ ६००९६, ईमेल: rajendrapverma@gmail.com।
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रस और लय कविता के आवश्यक तत्त्व हैं। ‘रस’ वर्णन की वस्तु है, तो ‘लय’ शब्द- योजना की। यह शब्द-योजना छंद के माध्यम से आती है। छंद को कविता के लिए उसी प्रकार आवश्यक है, जैसे नदी के प्रवाह के लिए उसके तट। तटविहीन नदी अपना वेग खोकर गन्तव्य तक नहीं पहुँचती । छंद की दृष्टि से हिंदी कविता के दो भेद हैं: (१) छंदोबद्ध और (२) मुक्तछंद। छंदोबद्ध कविता उसे कहा जाता है, जो किसी छंद विशेष में हो। जैसे: दोहा, चौपाई आदि। तुलसी की रामचरितमानस में मुख्यतः दोहे चौपाइयाँ तथा बीच-बीच में अन्य हरगीतिका, भुजंगप्रयात छंद, श्लोक आदि भी हैं। मुक्तछंद कविता में छंद तो होता है, लेकिन उसका स्वरूप निश्चित नहीं रहता। एक पंक्ति किसी छंद में हो सकती है, तो दूसरी किसी अन्य छंद में। उसकी पंक्तियाँ छोटी-बड़ी भी हो सकती हैं। उसकी लय भी अलग-अलग प्रकार की हो सकती है। कुछ लोग मुक्त छंद कविता को छंदमुक्त कविता भी कहते हैं, जो सही नहीं है। आज यद्यपि गद्य कविता भी प्रचलन में आ गयी है, जिसमें कतिपय शब्दों के दुहराव और उन पर आने वाली यति पर बल देकर लय उत्पन्न की जाती है; जबकि छंदोंबद्ध कविता में लय की स्थापना स्वमेव हो जाती है। छंदोबद्ध कविता दो प्रकार के छंदों से बनती है: मात्रिक और वर्णिक।
मात्रिक छंद: मात्रिक छंद मात्राओं के आधार पर बनते हैं अर्थात् लघु या गुरु स्वर के उच्चारण में जो समय लगता है, उसी के अनुसार लघु या गुरु मात्राएँ गिनी जाती हैं। जैसे- राम शब्द में तीन मात्राएँ हैं- ‘रा’ में २ और ‘म’ में १ । दीर्घ स्वर को इंगित करने के लिए अंग्रेजी के 'एस' अक्षर (S) का निशान और लघु को 'आई' (I) से। इस प्रकार ‘राम’ शब्द की मात्राओं को SI चिह्नों से व्यक्त किया जाता है।
(१). दोहा, चौपाई आदि मात्रिक छंद के उदाहरण हैं। दोहे में चार चरण होते हैं। पहला और तीसरा चरण १३-१३ मात्राओं का होता है, जबकि दूसरा और चौथा चरण ११-११ मात्राओं का। पहले और तीसरे चरण के अंत में लघु-दीर्घ स्वर आते हैं जबकि दूसरे और चौथे में दीर्घ-लघु। इस प्रकार, पहले और दूसरे चरण को मिलाकर २४ मात्राएँ होती हैं। मात्राओं की गणना की दृष्टि से कबीर के एक दोहे को लेते हैं: साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप । / जाके हिरदय साँच है, ताके हिरदय आप ।।
पहले चरण की मात्रा-गणना : साँच २+१=३, बराबर १+२+१+१=- ५, तप १+१= २, नहीं १+२= ३ (कुल तेरह)। दूसरे चरण में : झूठ-३, बराबर-५, पाप-३ (कुल ग्यारह)। चूँकि दोहे के सभी चरणों में मात्राएँ समान नहीं होती हैं, दो-दो चरणों में समान होती हैं; इसलिए, यह अर्धसम मात्रिक छंद कहलाता है । अगर सभी चरणों में मात्राएँ समान होतीं, तो यह सम-मात्रिक छंद कहलाता, जैसे चौपाई।
(२). चौपाई चार पंक्तियों का छंद है, जिसकी प्रत्येक पंक्ति में १६-१६ मात्राएँ होती हैं और उसके अंत में दो दीर्घ स्वर (SS) आते हैं। सभी पंक्तियों में तुकांत होता है। पंक्ति को पद या पाद भी कहते हैं; चरण नहीं। चौपाई का एक उदाहरण देखिए:
रामकथा सुंदर करतारी। संसय विहग उड़ावन हारी। / रामकथा कलि विटप कुठारी। सादर सुनु गिरिराजकुमारी।।
इसकी प्रत्येक पंक्ति में १६ मात्राएँ होती हैं। पहली पंक्ति जाँचते हैं: राम ३, कथा ३, सुंदर ४, (जब किसी लघु वर्ण के बाद आधा वर्ण आता है, तो वह दीर्घ माना जाता है, इसलिए ‘सुंदर’ = ‘सुं’ २, दर २), कर २, तारी ४. कुल मात्राएँ: तीन+तीन+चार+दो+चार= सोलह । सभी पंक्तियों के अंत में दो दीर्घ भी हैं: तारी, हारी, ठारी और मारी। आपस में ये तुक में भी हैं। इसी छंद में जब दो-दो पंक्तियों में तुकांत होता है, तब वह चौपाई नहीं, अर्धाली कहलाती है। रामचरितमानस में अधिकांशतः अर्धालियाँ हैं।
मात्रिक छंदों में मात्राएँ समान होती हैं, पर उनका क्रम नहीं निश्चित रहता, जबकि वर्णिक छंद में उनका क्रम भी निश्चित रहता है। मात्रिक छंदों में, विष्णुपद, सरसी, ताटंक, आल्हा आदि अधिक प्रचलित छंद हैं। विष्णुपद में २६, सरसी में २७, ताटंक में ३० और आल्हा में ३१ मात्राएँ होती हैं। ये सभी छंद दो-दो चरणों से बने हैं: पहले चरण में सोलह मात्राएँ, शेष दूसरे चरण में। उदाहरण के लिए बच्चन की मधुशाला का एक छंद लेते हैं जो ताटंक छंद में है। १६-१४ मात्राओं में विभक्त ३० मात्राओं का चार पंक्तियों में निबद्ध यह छंद मनोहारी है:
मदिरालय जाने को घर से, चलता है पीनेवाला, / किस पथ से जाऊँ असमंजस, में है वह भोला-भाला।
अलग-अलग पथ बतलाते सब, पर मैं यह बतलाता हूँ, / राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला ।।
वर्णिक छंद: वर्णिक छंद उन्हें कहा जाता है जो वर्णों की गणना के आधार पर बनते हैं। इनमें वर्णों की गणना की विधि वही है, जो मात्रिक छंद की है, अर्थात् जिस वर्ण के उच्चारण में कम समय लगता है, वह लघु वर्ण और जिसमें अधिक समय लगता है, वह दीर्घ। मात्रिक छंद की किसी काव्य-पंक्ति में मात्राएँ समान होती है, पर उनका क्रम नहीं निश्चित रहता; जबकि वर्णिक छंद में उनका क्रम भी निश्चित रहता है। वर्णिक छंद के अंतर्गत सवैया और घनाक्षरी (कवित्त) भी आते हैं। सवैया में वर्ण के नीचे वर्ण आते हैं, लेकिन घनाक्षरी में केवल वर्णों की गणना की जाती है : इसकी एक पंक्ति में प्रायः ३१ वर्ण होते हैं और १६ पर यति होती है। जैसे: १ से १६ / १७ से ३१। उदाहरण:
(३). भेजे मनभावन के, ऊधव के आवन के, सुधि ब्रज गाँवन में पावन जबै लगीं।
कहैं ‘रत्नाकर’ गुवारिनि की झौरि-झौरि, दौरि-दौरि नंद-पौरि आवन तबै लगीं।
उझकि-उझकि पद-कंजनि के पंजनि पै, पेखि-पेखि पाती, छाती छोहनि छबै लगीं।
हमकौ लिख्यो है कहा, हमकौ लिख्यो है कहा, हमकौ लिख्यो है कहा, पूछन सबै लगीं । (रत्नाकर)
वर्णिक छंदों की लय लघु और गुरु वर्णों के मिश्रण से बनती है, लेकिन किसी पंक्ति में जो वर्णों आते हैं, उन्हीं की पुनरावृत्ति से अगली पंक्तियाँ लयबद्ध होती हैं। इस प्रकार वर्णिक छंदों में वर्णों का क्रम निर्धारित रहता है। जब उनका क्रम बदलता है, तो लय भी बदल जाती है। दूसरे शब्दों में वर्ण के नीचे वर्ण आता है- लघु के नीचे लघु और दीर्घ के नीचे दीर्घ। हाँ, दो लघु मिलकर एक दीर्घ बन सकते हैं। इसी प्रकार, एक दीर्घ को दो लघु में विभाजित कर लिखा जा सकता है, पर यह नियम वहाँ नहीं लागू होता है जहाँ कोई अनिवार्य लघु हो, जैसे: ‘न’, अथवा कमल शब्द में- ‘क’। कमल को हम क+मल (IS) ही बोल सकते हैं, कम+ल (SI) नहीं । किसी शब्द में वर्णों की अपेक्षा मात्राएँ अधिक हो सकती है, जैसे: ‘आकाश’ शब्द में पाँच मात्राएँ हैं, लेकिन तीन वर्ण हैं- दो दीर्घ और एक लघु: आ-का-श (SSI)। इसी प्रकार, वाणी में चार मात्राएँ हैं, पर दो दीर्घ वर्ण हैं: वा-णी (SS)। इस प्रकार, आकाशवाणी शब्द में नौ मात्राएँ हैं और वर्ण हैं: पाँच । जिस प्रकार मात्राएँ लघु और गुरु होती हैं, उसी प्रकार वर्ण भी लघु और दीर्घ कहलाते हैं। इन्हें क्रमशः ह्रस्व और गुरु भी कहा जाता है। आठ वर्णिक छंदों की गणना को आचार्य भरत के गणसूत्र 'यमाताराजभानसलगा' ने बहुत आसान कर दिया है। पहले तीन अक्षरों से युग्म बना 'यमाता' (ISS) अर्थात् यगण । दूसरे अक्षर से प्रारंभ कर तीन अक्षरों से बना 'मातारा' (SSS) अर्थात् मगण। इसी क्रम में कुल ८ गण बनते गए।
उर्दू छंद-विधान में गण को ' रुक्न' (बहुवचन अरकान) और छंद को 'बह्र' कहते हैं। इन आठों गणों को हिंदी के तीन अक्षरों से बने युग्म और उर्दू के अरकान की मदद से समझते हैं:
१. यगण: यमाता (ISS) फ़ईलुन्/फ़ऊलुन्/मफ़ेलुन्, २. मगण: मातारा (SSS) फ़ाईलुन्/मफ़ऊलुन्/फ़इलातुन्, ३. तगण: ताराज (SSI) मफ़ऊल, ४. रगण: राजभा (SIS) फ़ाइलुन्, ५. जगण: जभान (ISI) फ़ईल/फ़ऊल, ६. भगण: भानस (SII) फ़ाइल, ७. नगण: नसल (III) फ़इल/फ़उल, ८.सगण: सलगा (IIS) फ़इलुन्/फ़उलुन्।
(४). विभिन्न वर्णों के युग्म:
गणसूत्र की सीमा यह है कि इसमें हर युग्म तीन वर्णों का है, जबकि उर्दू छंद-विधान में, दो से लेकर पाँच वर्णों तक के युग्म हैं।
(१) दो वर्णों के युग्म: दो दीर्घ वर्णों को फ़ेलुन्; दीर्घ-लघु को फ़ाइ या फ़ात; लघु-दीर्घ को फ़ई या फ़ऊ; और दो लघु वर्णों को फ़इ या फ़उ।
(२) तीन वर्णों के युग्म: तीनों दीर्घ हों तो- मफ़ऊलुन् या, फ़ाईलुन्, तीनों लघु- फ़इल या, फ़उल; दीर्घ-लघु-लघु को-फ़ाइल। अन्य वर्णयुग्म उपर्युक्त तालिका के अनुसार।
(३) चार वर्णों के युग्म: IISS- फ़इलातुन्, ISSS- मुफाईलुन् या, फ़ऊलातुन्, SISS- फाइलातुन्, SSIS- मुस्तफ्-इलुन् या, हरगीतिका।
(४) पंचवर्णीय युग्म: IISIS- मुत-फ़ाइलुन्, SIISS- मुत-फइलातु ISIIS- मुफ़ा-इलतुन्, न, SISSS- मुत- फ़ईलातुन, ISISI- मुफाइलात, SSSSS को मुस्तफ़-ईलातुन, अथवा इसे दो हिस्सों में विभक्त कर ‘फेलुन-फ़इलातुन’ अथवा इसका उल्टा, ‘फ़इलातुन-फेलुन’ कहा जा सकता है। इसे तीन हिस्सों में विभक्त कर ‘फेलुन-फेलुन-फ़इ/फ़ा’ अथवा ‘फेलुन- फ़इ-फेलुन’ भी कहा जा सकता है।
वर्णिक छंदों की निर्मिति:
वर्णिक छंद दो प्रकार से निर्मित होते हैं। किसी वर्ण-समूह (गण) या अरकान की आवृत्ति अथवा, कतिपय वर्ण-समूहों के मिश्रण से। दोनों ही स्थितियों में लय स्वतः उत्पन्न हो जाती है।
१. एक ही गण या कतिपय वर्ण-युग्म (अरकान) की आवृत्ति से बने छंद: उर्दू में ऐसे छंदों को 'मुफ़रद बह्र' कहा जाता है। उदाहरण:
१.१ यह गण विशेष या अरकान को दुहराने से बन जाता है, जैसे ‘यगण’ (यमाता) या ‘फ़ऊलुन’ यानी, लघु-दीर्घ-दीर्घ (ISS) को चार बार दुहराकर। इससे भुजंगप्रयात नामक छंद उर्दू में 'बहरे-मुतक़ारिब' बन जाता है, ISS ISS ISS ISS / यमाता-यमाता-यमाता-यमाता अथवा, फ़ऊलुन्-फ़ऊलुन्-फ़ऊलुन्-फ़ऊलुन्
भला भी कहा है, बुरा भी कहा है, / जो देखा सुना है, वही तो कहा है । -स्वरचित
न छूटा तुम्हारा बहाना बनाना / न छूटा हमारा तुम्हें यूँ बुलाना। -संजीव वर्मा 'सलिल'
१.२ यगण में एक गुरु वर्ण जोड़कर यदि उसे चार बार दुहरा दिया जाए, तो एक नया छंद बन हो जाएगा। जैसे: यमातारा-यमातारा-यमतारा-यमातारा। इस अति प्रचलित छंद का नाम 'विधाता' है। उर्दू में इस वर्णयुग्म को मफाईलुन (ISSS) कहते हैं। इसे चार बार दुहराने अथवा, फ़ऊलुन, फ़ाइलुन, फेलुन को दुहराकर समझा जा सकता है। उर्दू में इसे 'बहरे-हज़ज' कहते हैं। एक उदाहरण: ISSS ISSS, ISSS ISSS / यमातारा-यमातारा-यमातारा-यमातारा अथवा, मफ़ाईलुन, मफ़ाईलुन, मफ़ाईलुन, मफाईलुन
हमन हैं इश्क़ मस्ताना, हमन को होशियारी क्या? / रहें आज़ाद या जग में, हमन दुनिया से यारी क्या? -कबीर
दियों में तेल या बाती नहीं हो, तो करोगे क्या? / लिखोगे प्रेम में पाती नहीं भी, तो मरोगे क्या? -सलिल
१.३ इसी प्रकार, ‘रगण’ (राजभा) या ‘फ़ाइलुन्’, अर्थात् दीर्घ-लघु-दीर्घ (SIS) को चार बार दुहराने पर 'स्रग्विणी छंद' बन जाता है। उर्दू में इसे 'बहरे-मुतदारिक' कहा जाता है। उदाहरण: फ़िल्म हकीक़त के एक गाने का मुखड़ा— SIS SIS SIS SIS / राजभा-राजभा-राजभा-राजभा अथवा, फ़ाइलुन्-फ़ाइलुन्-फ़ाइलुन्-फ़ाइलुन्
कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियो! / अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो! -क़ैफ़ी आज़मी
बोलिए तो सही बात ही बोलिए / राज की बात या झूठ ना बोलिए -सलिल
१.४ यदि ‘रगण’ या ‘फाइलुन्’ (SIS) में एक दीर्घ (S) और जोड़ दिया जाए, तो उससे ‘फ़ाइलातुन्’ (SISS) अरकान बन जायेगा और इसे यदि चार बार रख दिया जाए, तो उससे एक अन्य (२८ मात्रिक यौगिक जातीय- सं.) छंद बन जाएगा जिसे उर्दू में बहरे-रमल कहते हैं। उदाहरण: SISS SISS SISS SISS / फ़ाइलातुन्- फ़ाइलातुन्- फ़ाइलातुन्- फ़ाइलातुन्
मुद्दतों से चल रहा यह सिलसिला है, / शिव को पीने को हमेशा विष मिला है। -स्वरचित
साधना ने साध्य को पूजा हमेशा, हास पाया / कामना ने काम्य को चाहा हमेशा त्रास पाया -सलिल
(इस छंद में १६-१२ पर यति और पदांत में SS हो तो सार, १४-१४ पर यति और पदांत में ISS हो तो विद्या छंद बन जायेंगे- सं.)
(इस छंद में १६-१२ पर यति और पदांत में SS हो तो सार, १४-१४ पर यति और पदांत में ISS हो तो विद्या छंद बन जायेंगे- सं.)
१.५ यदि ‘तगण’ (ताराज, SSI) में एक गुरु वर्ण जोड़ दिया जाए, अर्थात् दीर्घ-दीर्घ-लघु-दीर्घ (SSIS) को चार बार दुहरा दिया जाए, तो वह हरगीतिका छंद होगा। ‘हरगीतिका’ शब्द की चार आवृत्तियों (हरगीतिका-हरगीतिका-हरगीतिका-हरगीतिका) से भी यह छंद बन जाता है । उर्दू में इस अरकान को ‘मुस्तफ्इलुन्’ कहते हैं और इससे बनी बहर को 'बहरे-रजज़' SSIS SSIS SSIS SSIS मुस्तफ़इलुन्-मुस्तफ़इलुन्- मुस्तफ़इलुन्-मुस्तफ़इलुन् । ( भनु जी ने छंद प्रभाकर में हरिगीतिका की बह्र आदि गुरु होने पर ४ x मुस्तफ़अलन तथा आदि दो लघु होने पर ४ x मुतफ़ायलुन् बताई है -सं.)। तुलसी का प्रसिद्ध राम-स्तवन इसी छंद में है:
श्री रामचंद्र कृपाल भज मन हरण भव भय दारुणम्। / नव कंज लोचन, कंज मुख कर, कंज पद कंजारुणम् ।। -तुलसी
पहली पंक्ति में ‘हरण’ (IS) आया है, जिसके कारण छंद-दोष उत्पन्न हो गया है। यहाँ दीर्घ-लघु (SI) आना चाहिए था, न कि लघु-दीर्घ (IS), परंतु ‘हरण’ का कोई अच्छा विकल्प न होने के कारण इसे इसी रूप में ग्रहण करना श्रेयस्कर है। (स्पष्ट है कि शिल्प अथवा विधान पर पर कथ्य को वरीयता दी जानी चाहिए किंतु इसका आशय यह कदापि नहीं है कि शिल्प अथवा विधान की अनदेखी की जाए। -सं.)
चंदा न जागा चाँदनी की बाँह में सोया रहा / थे ख्वाब देखे जो न पूरे हो सके खोया रहा। -सलिल
चंदा न जागा चाँदनी की बाँह में सोया रहा / थे ख्वाब देखे जो न पूरे हो सके खोया रहा। -सलिल
२. मिश्रित गणों अथवा वर्ण-समूहों से निर्मित कुछ छंद (उर्दू में मिश्रित छंदों को मुरक्कब बह्र कहा जाता है।)
२.१. भुजंगप्रयात छंद के अंत में आने वाले एक दीर्घ को यदि हटा दें, तो इससे हिंदी का भुजंगी छंद बन जाएगा। जैसे: ISS ISS ISS IS / यमाता-यमाता-यमाता-यमा अथवा, फ़ऊलुन्-फ़ऊलुन्-फ़ऊलुन्-फ़ऊ
बजे नाद अनहद, सुनायी न दे, / है कण-कण में लेकिन, दिखायी न दे। -स्वरचित
पुजा है हमेशा यहाँ सत्य ही / रहा सत्य सापेक्ष ही धर्म भी। -सलिल
पुजा है हमेशा यहाँ सत्य ही / रहा सत्य सापेक्ष ही धर्म भी। -सलिल
२.२ यदि रगण (SIS) फ़ाइलुन यानी, दीर्घ-लघु-दीर्घ, में एक गुरु वर्ण और जोड़ दें, तो हिंदी छंद-विधान के अनुसार इसे रगण और एक दीर्घ कहेंगे, लेकिन उर्दू छंदविधान में इसे फ़ाइलातुन कहेंगे। 'फाइलातुन'को तीन बार दुहरायें और उसके बाद एक फ़ाइलुन (रगण) रख दें, तो हिंदी कविता का प्रसिद्ध २६ मात्रिक छंद, गीतिका बन जाएगा। उर्दू में इसे रमल कहते हैं, भले ही उसमें चारों फ़ाइलातुन् हों। गीतिका छंद का एक उदाहरण देखें: SISS SISS SISS SIS / फ़ाइलातुन्-फ़ाइलातुन्, फ़ाइलातुन्-फ़ाइलुन्
हे प्रभो! आनंददाता, ज्ञान हमको दीजिए, शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए। -मैथिलीशरण गुप्त
काट डाले वृक्ष सारे पूर दी तूने नदी / खोद डाला है पहाड़ों को हुई गूंगी सदी। -सलिल
काट डाले वृक्ष सारे पूर दी तूने नदी / खोद डाला है पहाड़ों को हुई गूंगी सदी। -सलिल
२.३ गीतिका छंद में से यदि हम एक फाइलातुन निकाल दें, तो यह हिंदी का पीयूषवर्ष छंद बन जाएगा, जैसे— SISS SISS SIS /फ़ाइलातुन्-फ़ाइलातुन्, फ़ाइलुन्
अंक में आकाश भरने के लिए, / उड़ चले हैं हम बिखरने के लिए । -स्वरचित
वायदा पूरा कभी होता नहीं / देश मेरा चाहतें खोता नहीं -सलिल
वायदा पूरा कभी होता नहीं / देश मेरा चाहतें खोता नहीं -सलिल
२.४ पीयूषवर्ष छंद में अगर एक फ़ाइलुन (दीर्घ-लघु-दीर्घ) जोड़ दें, तो वह राधा छंद बन जाएगा, जैसे: SISS SISS SIS SS / फ़ाइलातुन्-फ़ाइलातुन्, फ़ाइलुन्-फेलुन्
बीन भी हूँ; मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ, / कूल भी हूँ; कूलहीन प्रवाहिनी भी हूँ। -महादेवी
देश पे जो जान देता है हमेशा से / देश से वो मान पाता है हमेशा से -सलिल
देश पे जो जान देता है हमेशा से / देश से वो मान पाता है हमेशा से -सलिल
२.५ ISIS IISS ISIS IIS / जगण-भगण-तगण-रगण-सगण अथवा, मफ़ाइलुन्-फ़इलातुन्, मफ़ाइलुन्-फ़इलुन्
कहाँ तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए, / कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए। -दुष्यन्त कुमार
कहा, कहा-न कहा, बात तो कही तुमने / सुना, सुना-न सुना, बात तो तही तुमने -सलिल
कहा, कहा-न कहा, बात तो कही तुमने / सुना, सुना-न सुना, बात तो तही तुमने -सलिल
२.६ SSI SIS IIS SIS IS / तगण-रगण- सगण-रगण, लघु-गुरु अथवा, फ़ेलुन्-मफ़ाइलात, मफ़ेलुन्-मफ़ाइलुन्। उर्दू में इस बहर का संक्षिप्त नाम है- मुज़ारे-अख़रब ।
दिल चीज़ क्या है, आप मेरी जान लीजिए, /बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए। -शहरयार
क्या-क्या, कहाँ-कहाँ न सहा आपके लिए / मारा कहाँ-कहाँ न फिरा आपके लिए -सलिल-
क्या-क्या, कहाँ-कहाँ न सहा आपके लिए / मारा कहाँ-कहाँ न फिरा आपके लिए -सलिल-
२.७ SIS SIS ISI IS / रगण-रगण-जगण, लघु-गुरु अथवा, / फ़ाइलातुन्-मफ़ाइलुन्-फ़इलुन्। उर्दू में इस बहर का संक्षिप्त नाम है- खफ़ीफ़ । विस्तृत नाम आगे दिया गया है।
ज़िंदगी से बड़ी सजा ही नहीं, / और क्या जुर्म है, पता ही नहीं। -नूर लखनवी
सत्य को सत्य ही कहा जिसने / आदमी आदमी रहा उसमें -सलिल
सत्य को सत्य ही कहा जिसने / आदमी आदमी रहा उसमें -सलिल
३. उर्दू छंद विधान की बहरें और उनके उदाहरण:
३.१ किसी वर्ण-युग्म (अरकान) की आवृत्ति से बने छंदों, अथवा मुफ़रद बहरों के निम्नलिखित / सात भेद होते हैं:-
३.१ किसी वर्ण-युग्म (अरकान) की आवृत्ति से बने छंदों, अथवा मुफ़रद बहरों के निम्नलिखित / सात भेद होते हैं:-
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क्र. बहर हिंदी में सम- आवृत्त अरकान गण-नाम उदाहरण S= II; वक्र
तुल्य छंद का नाम अक्षर मात्रा पतन, गुरु
को लघु पढ़ें, अन्यथा लयभंग
क्र. बहर हिंदी में सम- आवृत्त अरकान गण-नाम उदाहरण S= II; वक्र
तुल्य छंद का नाम अक्षर मात्रा पतन, गुरु
को लघु पढ़ें, अन्यथा लयभंग
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१. मुतक़ारिब भुजंगप्रयात फ़ऊलुन् (ISS) यगण ISS ISS ISS ISS
किनारा वो हमसे किये जा रहे हैं, / दिखाने को दर्शन दिये जा रहे हैं। -निराला
१. मुतक़ारिब भुजंगप्रयात फ़ऊलुन् (ISS) यगण ISS ISS ISS ISS
किनारा वो हमसे किये जा रहे हैं, / दिखाने को दर्शन दिये जा रहे हैं। -निराला
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२. मुतदारिक स्रिग्वणी फ़ाइलुन् (SIS) रगण SIS SIS SIS SIS
मेरी मुट्ठी में सूखे हुए फूल हैं, / ख़ुशबुओं को उड़ाकर हवा ले गयी। -बशीर बद्र
२. मुतदारिक स्रिग्वणी फ़ाइलुन् (SIS) रगण SIS SIS SIS SIS
मेरी मुट्ठी में सूखे हुए फूल हैं, / ख़ुशबुओं को उड़ाकर हवा ले गयी। -बशीर बद्र
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३. हज़ज विधाता मुफ़ाईलुन्(ISSS) यगण गुरु ISSS ISSS ISSSI SSS
हज़ारों ख्व़ाहिशें ऐसी कि हर ख्व़ाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मिरे अरमान, लेकिन फिर कम निकले। -ग़ालिब
३. हज़ज विधाता मुफ़ाईलुन्(ISSS) यगण गुरु ISSS ISSS ISSSI SSS
हज़ारों ख्व़ाहिशें ऐसी कि हर ख्व़ाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मिरे अरमान, लेकिन फिर कम निकले। -ग़ालिब
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४. रजज़ हरिगीतिका मुस्तफ़्इलुन् तगण गुरु SSIS SSIS SSIS
(SSIS) SSIS
वह पूर्व की सम्पन्नता, यह वर्तमान विपन्नता,
अब तो प्रसन्न भविष्य की आशा यहाँ उपजाइए। -मैथिलीशरण गुप्त
४. रजज़ हरिगीतिका मुस्तफ़्इलुन् तगण गुरु SSIS SSIS SSIS
(SSIS) SSIS
वह पूर्व की सम्पन्नता, यह वर्तमान विपन्नता,
अब तो प्रसन्न भविष्य की आशा यहाँ उपजाइए। -मैथिलीशरण गुप्त
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५. रमल गीतिका फ़ाइलातुन् रगण, गुरु SISS SISS SISS
(SISS) SISS
बीन की झंकार कैसी बस गयी मन में हमारे,
धुल गयीं आँखें जगत की, खुल गये रवि-चन्द्र-तारे -निराला
५. रमल गीतिका फ़ाइलातुन् रगण, गुरु SISS SISS SISS
(SISS) SISS
बीन की झंकार कैसी बस गयी मन में हमारे,
धुल गयीं आँखें जगत की, खुल गये रवि-चन्द्र-तारे -निराला
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६. कामिल मुतफ़ाइलुन् सगण,लघु-गुरु IISIS IISIS IISIS
(IISIS) IISIS
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से,
ये नये मिज़ाज का शह्’र है, ज़रा फ़ासले से मिला करो।-बशीर बद्र
६. कामिल मुतफ़ाइलुन् सगण,लघु-गुरु IISIS IISIS IISIS
(IISIS) IISIS
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से,
ये नये मिज़ाज का शह्’र है, ज़रा फ़ासले से मिला करो।-बशीर बद्र
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७. वाफ़िर मुफ़ाइलतुन् जगण, लघु- गुरु ISIIS ISIIS ISIIS
(ISIIS) ISIIS
ज़माने में कोई ऐसा नहीं कि जैसा वो ख़ूबरू है मेरा,
न ऐसी अदा जहां में कहीं, न ऐसी हया जहां में कहीं। -कमाल अहमद सिद्दीक़ी
७. वाफ़िर मुफ़ाइलतुन् जगण, लघु- गुरु ISIIS ISIIS ISIIS
(ISIIS) ISIIS
ज़माने में कोई ऐसा नहीं कि जैसा वो ख़ूबरू है मेरा,
न ऐसी अदा जहां में कहीं, न ऐसी हया जहां में कहीं। -कमाल अहमद सिद्दीक़ी
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नोट: (१) अपनी-अपनी श्रेणी की सभी बह्रें (उर्दू में बहूर) ‘मुसम्मन सालिम’ हैं। अतः, पहली बह्र का नाम हुआ ‘बह्रे-मुतक़ारिब-मुसम्मन-सालिम।’ अब इस पूरे पद का अर्थ समझते हैं: बह्रे= (....) की बहर (छंद)। मुतक़ारिब= अरकान (वर्ण-युग्म) का नाम। मुसम्मन= अष्टकोणीय या आठ बार, शे’र में ‘मुतक़ारिब’ अरकान (ISS) आठ बार आया है: चार बार पहली पंक्ति में और चार बार दूसरी में। सालिम= समूचा, अखंडित। ‘सालिम’ विशेषण है, जिसकी संज्ञा है- मुसल्लम; यानी, पूरा-का-पूरा, जैसे- मुर्ग़-मुसल्लम।
नोट: (१) अपनी-अपनी श्रेणी की सभी बह्रें (उर्दू में बहूर) ‘मुसम्मन सालिम’ हैं। अतः, पहली बह्र का नाम हुआ ‘बह्रे-मुतक़ारिब-मुसम्मन-सालिम।’ अब इस पूरे पद का अर्थ समझते हैं: बह्रे= (....) की बहर (छंद)। मुतक़ारिब= अरकान (वर्ण-युग्म) का नाम। मुसम्मन= अष्टकोणीय या आठ बार, शे’र में ‘मुतक़ारिब’ अरकान (ISS) आठ बार आया है: चार बार पहली पंक्ति में और चार बार दूसरी में। सालिम= समूचा, अखंडित। ‘सालिम’ विशेषण है, जिसकी संज्ञा है- मुसल्लम; यानी, पूरा-का-पूरा, जैसे- मुर्ग़-मुसल्लम।
(२) उपर्युक्त तालिका की सभी बह्रें या बहूर ‘सालिम’ कहलाती हैं।
(३) उपर्युक्त तालिका की अगली बह्र का पूरा नाम होगा ‘बह्रे-मुतदारिक-मुसम्मन-सालिम। इसी क्रम में हर बह्र का नाम बदलता जाएगा।
(४) यदि किसी शे’र में किसी अरकान की आवृत्ति आठ बार से कम, अर्थात् चार अथवा, छः बार हुई हो तो, उसकी बहर ‘मुसम्मन’ के स्थान पर क्रमशः ‘मुरब्बा सालिम’ और ‘मुसद्दस सालिम’ के रूप में जानी जाएगी, जैसे- निम्न शे’र में ‘मुतक़ारिब’ रुक्न (ISS) चार बार (दोनों पंक्तियों में) आए हैं। अतः इसकी बहर का नाम होगा 'बह्रे-मुतदारिक-मुरब्बा-सालिम'। ISS ISS वही तो कहा है, / जो देखा-सुना है।
(५) निम्नलिखित शे’र बह्रे-मुतदारिक-मुसद्दस-सालिम कहलाएगा, क्योंकि इसमें छः बार मुतदारिक रुक्न आया है: ISS ISS ISS अगर जान जाती है जाए, / मगर सच को सच हम कहेंगे ।
(६)यदि किसी अरकान की दस आवृत्तियाँ हों, तो वह ‘दुहुम सालिम’ कहलायेगा। ग़ज़ल के शे’र में ऐसी सोलह आवृत्तियाँ मान्य हैं।
३.२ विभिन्न वर्ण-युग्मों से बने मिश्रित छंद या ‘मुरक्कब’ बह्रें: मिश्रित वर्ण-युग्म या, विभिन्न अरकान से जो बह्रें बनती है,। उर्दू अरूज़ में इन्हें ‘मुरक्कब’ बह्र कहा जाता है। अरूज़ के लिहाज से निम्नलिखित ‘मुरक्कब बह्रें’ निम्नलिखित १२ प्रकार की होती हैं। इनसे संबंधित अश'आर भी दिये जा रहे हैं। ये अश'आर बहर में प्रयुक्त अरकान को दर्शाने की दृष्टि से ही देखे जाने चाहिए, शेरियत के लिहाज से नहीं। इन बह्रों में अश'आर कम ही मिलते हैं, क्योंकि इनमें ज़िहाफ लगी बह्रों की अपेक्षा लय कम होती है।
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क्र. बहर का नाम अरकान उदाहरण: दो लघु II=एक गुरु S
जिन वर्णों की मात्राएँ गिरी हैं, वे वक्र (itallic) दर्शित हैं
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१. तबील फ़ऊलुन्-मुफ़ाईलुन् ISS ISSS, ISS ISSS, तुम्हारी जुदाई
२x(मुतक़ारिब+हज़ज) में लबों पर दम आया है / कोई से यों
मसीहा कब आया है। - सफ़ी अमरोही
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२. क़रीब मुफ़ाईलुन्-मुफ़ाईलुन्- ISSS ISSS SISS, न यह समझो
फ़ाइलातुन् (२ हज़ज+रमल) रहा हूँ केवल घरों में, / उड़ानें भी
रही हैं टूटे परों में।- कुँअर बेचैन
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३. मुज़ारिअ मुफ़ाईलुन्-फ़ाइलातुन् ISSS SISS, ISSS SISS, कभी आती
(मुज़ारे) २ x (हज़ज+रमल) याद उनकी, कभी आती ही नहीं है,/इलाही,
क्या याद भी ख़्वाब-सी होती बेवफ़ा है?-राज पाराशर
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४. मदीद फ़ाइलातुन्-फ़ाइलुन्* SISS SIS, पूजता हूँ बस उसे, / अब
(रमल+मुत-दारिक) वो पत्थर है तो है। - विज्ञान व्रत
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५. जदीद फ़ाइलातुन्-फ़ाइलातुन्- SISS SISS SSIS, ले गया वो बेमुरव्वत
मुस्तफ़्इलुन(२रमल+रजज) आरामे-दिल,/कुछ नहीं बाक़ी रहा अब
जुज़नामे-दिल।- राज पाराशर
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६. ख़फ़ीफ़ फ़ाइलातुन्-मुस्तफ्इलुन्-फ़ाइलातुन् SISS SSIS SISS, जल गयी
(रमल+रजज़+ रमल) निःसंदेह अँगुली हमारी,/दीप
को लेकिन ज्योतित कर दिया है। - स्वरचित
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७. मुशाकिल फ़ाइलातुन्-मुफाईलुन्- SISS ISSS ISSS, इश्क़ क्या है,
मुफाईलुन् (रमल+2हज़ज) नहीं मालूम ये यारो, गो कटी इश्क़
में ही ज़िन्दगी मेरी।- राज पाराशर
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८. मुज़ास मुस्तफ्इलुन-फाइलातुन् SSIS SISS, उसको भला कौन मारे,
(मुज़्तस) (रजज़+रमल) / जीना जिसे आ गया हो।-स्वरचित
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९. वसीत मुस्तफ्इलुन्-फाइलुन्* SSIS SIS, SSIS SIS, जाने-जिगर,
(ख़सीत) रजज़+मुतदारिक जाने-मन, तुझको है मेरी क़सम, / तू
जो न मुझको मिला, मर जाऊँगा मैं सनम।– समीर
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१०. मुक्तज़िब मफ़ऊलातु-मुस्तफ्इलुन् SSSI SSIS, SSSI SSIS,जो भी ठानिये
दोस्तो! वह कर गुज़रिये आज ही, कल
का क्या ठिकाना, समय की अनुकूलता हो न हो! -स्वरचित
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११. मुंसरिह मुस्तफ्इलुन्-मफ़ऊलातु SSIS SSSI, SSIS SSSI, मिलकर
(मुंसरिज) गले रो लो मीत, अपने नयन धो लो मीत, कितने गिरे
आँसू आज, उनको ज़रा तोलो मीत। -कुँअर बेचैन
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१२. सरीअ मुस्तफ्इलुन्- SSIS SSIS SSSI, मैं भी सुनूँ, तू भी
(सरीअ:) मुस्तफ्इलुन्-मफ़ऊलातु सुने ऐसा गीत, / यदि हो सके मुझको
सुना मेरे मीत। -कुँअर बेचैन
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* इन अरकान की भी प्रायः दो आवृत्तियाँ होती हैं। उदाहरण के शे’र में केवल मुरब्बा (चार अर्कान) ही प्रयुक्त हैं।
३.३ ज़िहाफ़ लगी (परिवर्तित अरकान से बनी) बह्रें और उनके भेद उपर्युक्त मुफ़रद बह्रों में जब किसी अरकान को परिवर्तित रूप में रखा जाता है, तो उसे ‘मुज़ाहिफ़’ बह्र (ज़िहाफ़ लगी बह्र) कहते हैं। जैसे: उपर्युक्त ‘मुतक़ारिब’ नामक मुफ़रद बहर के ‘फ़ऊलुन्’ (ISS) के लघु-गुरु-गुरु को बदलकर ‘लघु-गुरु-लघु’ अथवा ‘गुरु-लघु-लघु’ कर दिया जाए तो वे क्रमशः नए अरकान बन जाएँगे। जैसे: ‘फ़ऊल’ (ISI) या ‘फेलन’ (SII). परिवर्तन की इस व्यवस्था को उर्दू में ‘ज़िहाफ़’ कहते हैं। हिंदी के वर्णिक छंदों में इस प्रकार के परिवर्तन संस्कृत-काल से चले आ रहे हैं। ज़िहाफ यों तो ४८ प्रकार के हैं किंतु निम्न १५-२० ज़िहाफ़ ही प्रचलित हैं:
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क्रमांक मूल अरकान परिवर्तित अरकान ज़िहाफ मुजाहिफ़ अरकान
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१. फ़ऊलुन् (ISS) १-फ़ऊल (ISI) क़ब्ज़ मक्बूज़
(बह्रे- मुतक़ारिब) २-फ़ेलन (SII) सलम अस्लम
३-फ़ऊ (IS) क़स्र मक्सूर
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३. मुफ़ाईलुन् (ISSS) १-मफ़ऊल (SSI) १. ख़र्ब अख़रब
. (बह्रे-हज़ज) २-फ़ऊलुन् (ISS) २. हज्फ़ महज़ूफ़
३-मफ़ाईल (ISSI) ३. क़फ़ मक़फ़ूफ़
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४. मुस्तफ्इलुन (SSIS) १. मुफ़ाइलुन् (ISIS) ख़ब्न मख़्बून
(बह्रे-रजज़)
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५. फ़ाइलातुन् (SISS) १-फ़ाइलुन् (SIS) हज्फ़ महज़ूफ़
(बह्रे-रमल) २-फ़ाइलातु (SISI) क़फ़ मक़फ़ूफ़
३-फ़इलातु (IISI) शक्ल मश्कूल
४-फ़इलातुन्(IISS) ख़ब्न मख़बून
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६. मुतफ़ाइलुन्(IISIS) मुस्तफ्इलुन् (SSIS) इज़्मार मुज़्मर
(बह्रे-कामिल)
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७ मुफ़ाइलतुन् (ISIIS) मुफ़ाईलुन् (ISSS) अस्ब मासूब
(बह्रे-वाफ़िर)
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८ मफ़ऊलातु (SSSI)* मफ़ऊल (SSI) रफ़अ मरफ़ूअ
(बह्रे-मुक्तज़िब)
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* यह ‘मुफ़रद’ बह्र का हिस्सा नहीं हैं, क्योंकि इसके अंत में हरकत वाला अक्षर ‘तु’ (I) आया है। इसे अगर शेर के ‘अरूज़’ या जर्ब पर, अर्थात् शेर के आख़िरी अरकान में रख देंगे, तो प्रवाह-भंग हो जायेगा। शेष सभी के ‘अंत में साकिन’ हैं।
३.४ ज़िहाफ़ लगी बह्र के उदाहरण: अब ज़िहाफ़ लगी बहूर में कुछ अशआर देखें। जिन वर्णों की मात्रा गिरी है, वे वक्र (itallic) दर्शित हैं:
(१) फ़ऊलुन्-फ़ऊलुन्-फ़ऊलुन्-फ़ऊ ISS ISS ISS IS दिखाई दिये यूँ कि बेख़ुद किया, / हमें आपसे भी ज़ुदा कर चले। - मीर
इस बह्र में तीन ‘फ़ऊलुन्’ और एक ‘फ़ऊ’ है, यदि चारों ‘फ़ऊलुन्’ होते तो इसका नाम होता ‘बहरे-मुतक़ारिब- मुसम्मन-सालिम’। अंतिम ‘फ़ऊलुन्’ की जगह ‘फ़ऊ’ है क्योंकि इसमें ‘क़स्र’ नामक जिहाफ़ लगा है। इससे ‘फ़ऊलुन्’ अपने मूल रूप से बदलकर ‘फ़ऊ’ हो गया है। इस परिवर्तित अरकान को ‘मक्सूर’ कहा गया है। इस प्रकार, इस बह्र का नाम हुआ मुतक़ारिब-मुसम्मन-मक्सूर। ‘मुतक़ारिब’ मूल बह्र का नाम; ‘मुसम्मन’ माने शेर में आठ अरकान, और ‘मक्सूर’, अर्थात् ‘मुज़ाहिफ़’ नामक अरकान। हिंदी में इसे ‘भुजंगी’ छंद कहते हैं।
(२) मुफ़ाईलुन्-मुफाईलुन्-फ़ऊलुन् ISSS ISSS ISS ये माना जिंदगी है चार दिन की, / बहुत होते हैं यारो! चार दिन भी। -फ़िराक़ गोरखपुरी
इस बह्र में दो ‘मुफाईलुन्’ और एक ‘फ़ऊलुन्’ है। यदि तीनों ‘मुफ़ाईलुन्’ होते, तो इसका नाम होता- बह्रे-हज़ज- मुसद्दस-सालिम लेकिन, अंतिम ‘मुफाईलुन्’ की जगह ‘फ़ऊलुन्’ आया है, क्योंकि इसमें ‘हज्फ़’ नामक जिहाफ़ लगा है। इससे ‘मुफाईलुन्’ बदलकर ‘फ़ऊलुन्’ हो गया है। इसका परिवर्तित अरकान ‘महज़ूफ़’ है। इसलिए, बह्र का नाम हुआ: हजज-मुसद्दस-महज़ूफ़।
(३) फ़ाइलातुन्-फ़ाइलातुन्-फ़ाइलातुन्-फ़ाइलुन् SISS SISS SISS SIS चुपके-चुपके रात-दिन आँसू बहाना याद है, / हमको अपनी आशिक़ी का वो ज़माना याद है। - हसरत मोहानी
* * *
हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है, / देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है। - रामप्रसाद ‘बिस्मिल’
इस बह्र में क्रमशः तीन ‘फ़ाइलातुन्’ हैं और एक ‘फ़ाइलुन्’ है। अतः यह मुजाहिफ़ (परिवर्तित) बह्र हुई। इसमें भी ‘हज्फ़’ नामक ज़िहाफ लगा है, जिसका नाम है- महज़ूफ़ । अतः, इस बह्र का नाम हुआ- ‘रमल-मुसम्मन-महज़ूफ़’। हिंदी में इसे ‘गीतिका’ छंद कहा जाता है। इसमें यदि एक ‘फ़ाइलातुन्’ कम हो जाए, तो यह ‘पीयूषवर्ष’हो जाएगा। उर्दू में ‘गीतिका’ छंद का नाम होगा- ‘बह्रे-रमल-मुसद्दस-महज़ूफ़’, क्योंकि इसमें कहे गये शे’र में छः अरकान हैं।
(४) मफ़ऊल-मफ़ाईलुन्, मफ़ऊल-मफ़ाईलुन् SSI ISSS SSI ISSS इक लफ़्ज़े-मुहब्बत है, अदना ये फ़साना है, / सिमटे तो दिले आशिक़, फैले तो ज़माना है। - जिगर मुरादाबादी इस बहर का नाम है- हज़ज-मुसम्मन-अख़रब। हज़ज में आठ अरकान है। हज़ज-मुसम्मन- सालिम में चार ‘मफ़ाईलुन्’ होते हैं, मगर यहाँ दो ‘मफ़ाईलुन्’ की जगह, ‘मफ़ऊल’ आये हैं, जो ‘खर्ब’ ज़िहाफ से ‘अखरब’ के रूप में हैं ।
(५) फ़ाइलातुन्-मुफ़ाइलुन्-फ़ेलुन् SISS ISIS SS दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है, / आख़िर इस दर्द की दवा क्या है! - ग़ालिब
(‘आखिर इस’ को बह्र में लाने के लिए ‘आखिरिस’ पढना पड़ेगा, लेकिन यह अनुमन्य है।)
अथवा, कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी, / यों कोई बेवफ़ा नहीं होता। - बशीर बद्र
यह अति-प्रचलित बह्र है। इसके मिसरे में तीन अरकान होते हैं ‘फ़ाइलातुन्- मुफ़ाइलुन्-फ़ेलुन्’, जो मिश्रित (मुरक्कब) बहूर में से एक है। इसका नाम है ‘खफीफ़’। बह्र में ‘ख़ब्न’ नामक ज़िहाफ़ लगने से इसका नाम पड़ा बह्रे-खफीफ़-मुसद्दस-‘मखबून।’
(६) अब तक केवल एक ज़िहाफ और उससे बने अरकान की बात की गयी है। निम्न बह्र में दो जिहाफ़ लगे हैं-- ‘ख़ब्न’ और ‘कफ्फ़’। इसे ‘सकल’ ज़िहाफ कहा जाता है और इससे ‘मस्कूल’ नामक मुज़ाहिफ़ अरकान बनता है, जैसे: फ़ऊल-फ़ेलुन्, फ़ऊल-फ़ेलुन् ISS SS ISS SS तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, / क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो! -क़ैफ़ी आज़मी (‘तुम इतना’ को ‘तुमितना’ (ISS) पढ़ा या बोला जाएगा।)
(७) फ़ेलुन्-मफाइलात-मफैलुन्-मफ़ाइलुन् SS ISISI ISS ISIS दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिए, / बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए। / इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार, / दीवारो-दर को ग़ौर से पहचान लीजिए। - शहरयार
(छंद की दृष्टि से दूसरे शेर के मिसरे में प्रयुक्त शब्दांश- ‘बार-बार’ में एक मात्रा बढ़ी हुई है। प्रयुक्त बह्र के यहाँ, ‘बारबा’ आना चाहिए, लेकिन पहले मिसरे के अंत में एक मात्रा अधिक लगाने की छूट है।)
(८) मफाइलात-मफैलुन्, मफ़ाइलात फ़ऊ ISISI ISS ISIS IIS कहाँ तो तय था चिराग़ां हरेक घर के लिए, / कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए। - दुष्यंत कुमार
(९) मफ़ऊल-फ़ाइलातु-मफ़ाईल-फ़ाइलुन् SSI SISI ISSI SIS मिलती है ज़िंदगी में मुहब्बत कभी-कभी, / होती है दिलबरों की इनायत कभी-कभी। - साहिर लुधियानवी
* * *
दो-चार बार हम जो ज़रा हँस-हँसा लिये, सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिये। - कुंअर बेचैन
(१०) मफ़ाइलातु-मफ़ैलुन्-मफ़ाइलुन्-फेलुन् ISISI ISS ISIS SS मिले न फूल तो काँटों से दोस्ती कर ली, / इसी तरह से बसर हमने ज़िंदगी कर ली। - इन्दीवर
नोट : (१) दोनों (मुरक्कब और मुजाहिफ़) बह्रों में प्रमुख अंतर यह है कि मुरक्कब में अरकान का मिश्रण रहता है, जबकि मुजाहिफ़ में अरकान की सूरत बदल जाती है।
(२) किसी बह्र का नाम जानना उतना ज़रूरी नहीं है, जितना कि उसके अर्कानों से बनी लय को जानना-समझना।
४. मुक्तछंद कविता में भी छंद की उपस्थिति: मुक्तछन्द काव्य कोई नया नहीं है। वह तो संस्कृत और वैदिक साहित्य में मिलता है। कविता किसी नदी की भाँति अनवरत बहती रहती है। जिस प्रकार बड़ी नदी छोटी-छोटी नदियाँ मिलती रहती हैं, उसी प्रकार कविता की मुख्य धारा में छोटी-छोटी काव्य-धाराएँ मिलती रहती हैं और उसका कथ्य और शिल्प बदलता और समृद्ध होता रहता है। कबीर के यहाँ यदि सधुक्कड़ी भाषा है, तो सूरदास के यहाँ ब्रज और तुलसी के यहाँ अवधी । रीतिकाल की ब्रज भाषा थोड़े-बहुत परिवर्तन के बाद भारतेंदु युग में खड़ी बोली बनी। वस्तु की दृष्टि से भक्ति, अध्यात्म, और राष्ट्रीय चेतना, छायावाद, मानव की मुक्ति-चेतना और फिर जनचेतना, कितने ही रूप दिखायी पड़ते हैं।... अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का ‘प्रियप्रवास’ १९१४ में रचा गया। यह खड़ी बोली का पहला महाकाव्य माना जाता है, जिसमें अतुकांत छंदों का प्रयोग हुआ है:
अधिक और हुई नभ-लालिमा, / दश दिशा अनुरंजित हो गयी;
सकल पादप-पुंज-हरीतिमा / अरुणिमा-विनिमज्जित-सी हुई।
उक्त कविता बारह वर्णीय ‘द्रुत बिलंबित (जगती)’ छंद में हैं । छंद हेतु निर्धारित गणों का पालन भी हुआ है, क्योंकि सभी चारों पंक्तियों में क्रमशः ‘नगण, भगण, भगण’ और ‘रगण’ (III, SII, SII, SIS) आये हैं; केवल तुकांत की छूट ली गयी है। तुकांत का आग्रह न तो संस्कृत काव्य (श्लोक, अनुष्टप आदि) में है और न ही वैदिक छंदों (ऋचाओं) में। इस प्रसंग में एक श्लोक देखिए, जो तुलसी के रामचरितमानस के प्रारंभ में दिया गया है । श्लोक चार चरणों का छंद होता है, जिसके प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं, पर वे अगली पंक्ति में सवैया या ग़ज़ल की भाँति अपने स्थान पर अडिग नहीं रहते। घनाक्षरी की भाँति केवल उनके वर्ण गिने जाते हैं।
वर्णानामर्थसंघानां, रसानां छन्दसामपि। / मंगलानां च कर्त्तारौ, वन्दे वाणीविनायकौ।।
जयशंकर ‘प्रसाद’ ने भी १९१८ में ‘झरना’ नामक रचना में खड़ी बोली में तुकांत से मुक्ति पा ली, यद्यपि छंद का पालन उन्होंने अवश्य किया, पर वह मुक्त छंद में है, अर्थात् एक पंक्ति के गण कुछ हैं, तो दूसरी की कुछ, पर उनमें लय है। उदाहरण के लिए दो पंक्तियों की तक्तीअ
(गणना) कर दी गई है। प्रस्तुत है झरना के प्रथम प्रभात का एक अंश:
SS SS ISISS SIS (मगण, रगण, यगण, रगण = फ़ेलुन्-फ़ेलुन्-मुफ़ाइलातुन्-फ़ाइलुन्) वर्षा होने लगी कुसुम मकरंद की,
SII SS SII SS SIS (भगण, मगण, सगण, तगण, दीर्घ = फ़ाइल, फ़ेलुन्, फ़ाइल, फ़ेलुन्, फ़ाइलुन्) प्राण पपीहा बोल उठा आनंद में,
कैसी छवि ने बाल अरुण-सी प्रकट हो / शून्य हृदय को नवल राग रंजित किया।
सद्यस्नात हुआ मैं प्रेम सुतीर्थ में, / मन पवित्र उत्साहपूर्ण-सा हो गया,
विश्व, विमल आनंदभवन-सा हो गया, / मेरे जीवन का वह प्रथम प्रभात था।
‘परिमल’ की भूमिका में निराला कहते हैं, “मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है। मनुष्यों की मुक्ति कर्मों के बंधन से छुटकारा है, और कविता की मुक्ति छंदों के शासन से अलग हो जाना। जिस तरह मुक्त मनुष्य कभी किसी तरह भी दूसरे के प्रतिकूल आचरण नहीं करता, उसके तमाम कार्य औरों को प्रसन्न करने के लिए होते हैं: फिर भी स्वतन्त्र, इसी तरह कविता का भी हाल है। जैसे बाग़ की बँधी और वन की खुली हुई प्रकृति- दोनों ही सुंदर हैं पर दोनों के आनंद तथा दृश्य दूसरे-दूसरे हैं।”
अपनी बात के समर्थन में वे ऋग्वेद और यजुर्वेद की ऋचाओं का उल्लेख करते हैं, जो मुक्त छंद में हैं और उनकी पंक्तियों में न तो वर्ण समान हैं और न ही उनका क्रम! उनके अनुसार, “मुक्तछंद तो वह है, जो छंद की भूमि में रहकर भी मुक्त है।” उनके ‘परिमल’ के तीसरे खंड में इसी प्रकार की कविताएँ हैं। उसकी भूमिका में वे स्वयं कहते हैं, “...मुक्तछंद का समर्थक उसका प्रवाह ही है। वही उसे छंद-सिद्ध करता है, और उसका नियम-राहित्य उसकी मुक्ति।” समर्थन में वे अपनी कविता, ‘जुही की कली’ की कुछ पंक्तियाँ उद्धृत करते हैं। उद्धरण को उर्दू के अरकान के ज़रिये आसानी से समझा जा सकता है—
विजन-वन-वल्लरी पर (ISS SISS - फ़ऊलन् फ़ाइलातुन् ) / सोती थी सुहाग-भरी (SS SIS IIS - फेलुन फ़ाइलुन् फ़इलुन्)
स्नेह-स्वप्न-मग्न अमल-कोमल-तन-तरुणी (SISI SII SSSS SS - फ़ाइलात फ़ाइल मफ़ईलातुन् फेलुन्)
जुही की कली (ISS IS - फ़ऊलुन् फ़ऊ ) दृग बन्द किये- शिथिल पत्रांक में। (SSI ISIS ISIS - मफ़ऊल मफ़ाइलुन्म फ़ाइलुन्)
४.१ मुक्तछंद क्यों?
कभी-कभी वेदना, विसंगति या त्रासदी की अभिव्यक्ति में पारम्परिक छंद का बंधन आड़े आने लगता है, तो कवि उससे मुक्ति चाहता है। वह स्वच्छंद होकर कुछ रचना चाहता है। इसलिए पारंपरिक छंदों को तोड़ने में कुछ बुराई नहीं। लेकिन छंद से कविता का नाता नहीं टूट सकता। उसका स्वरुप कुछ भी हो सकता है। कल्पना कीजिए कि निराला, ‘तोड़ती पत्थर’ या ‘कुकुरमुत्ता’ को यदि दोहा, चौपाई, सवैया-कवित्त जैसे छंद में रचते, तो क्या उसमें वही आस्वाद होता, जो उनके मुक्तछंद रूप में है! मुक्तछंद होने के बावज़ूद ये कविताएँ कतिपय वर्ण-युग्मों पर आधारित हैं और यति-गति से बद्ध हैं।
तोड़ती पत्थर
वह तोड़ती पत्थर। SSIS SS मुस्तफ्-इलुन, फ़ेलुन
देखा उसे मैंने/ इलाहाबाद के पथ पर SSIS SS/ ISSS ISSS मुस्तफ्-इलुन, फ़ेलुन, मफ़ाईलुन, मफ़ाईलुन
वह तोड़ती पत्थर । SSIS SS मुस्तफ्-इलुन, फ़ेलुन
कोई न छायादार SSIS SSI मुस्तफ्-इलुन, मफ़ऊल
पेड़ वह जिसके तले/ बैठी हुई स्वीकार, SISS SISS SIS SSI फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन, फ़ाइलुन, मफ़ऊल
श्याम तन, भर बँधा यौवन, SISS ISSS फ़ाइलातुन, मफ़ाईलुन
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन, SISS SISS फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन,
गुरु हथौड़ा हाथ, SISS SI फ़ाइलातुन, फ़ातु
करती बार-बार प्रहार : SS SIS IISI फेलुन, फ़ाइलुन, फ़इलातु
सामने तरु मालिका अट्टालिका, प्राकार। SISS SISS SISS SI फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन, फ़ातु
इसी क्रम में एक रचना और सुनिए, जो नई कविता के प्रसिद्ध कवि, शमशेर बहादुर सिंह की है—
बात बोलेगी
बात बोलेगी, हम नहीं SISS SSIS फ़ाइलातुन, मुस्तफ्इलुन्
भेद खोलेगी, बात ही। SISS SSIS वही
सत्य का मुख SISS फ़ाइलातुन् / झूठ की आँखें SIS SS फ़ाइलुन्, फ़ेलुन्
क्या देखें! SSS मफ़ऊलुन् / सत्य का रुख़ SISS फ़ाइलातुन्
समय का रुख़ है : ISS SS फ़ऊलुन्, फ़ेलुन् / अभय जनता को ISS SS वही
सत्य ही सुख है, SIS SS फ़ाइलुन्, फ़ेलुन् / सत्य ही सुख। SISS फ़ाइलातुन् ।
३.२ विभिन्न वर्ण-युग्मों से बने मिश्रित छंद या ‘मुरक्कब’ बह्रें: मिश्रित वर्ण-युग्म या, विभिन्न अरकान से जो बह्रें बनती है,। उर्दू अरूज़ में इन्हें ‘मुरक्कब’ बह्र कहा जाता है। अरूज़ के लिहाज से निम्नलिखित ‘मुरक्कब बह्रें’ निम्नलिखित १२ प्रकार की होती हैं। इनसे संबंधित अश'आर भी दिये जा रहे हैं। ये अश'आर बहर में प्रयुक्त अरकान को दर्शाने की दृष्टि से ही देखे जाने चाहिए, शेरियत के लिहाज से नहीं। इन बह्रों में अश'आर कम ही मिलते हैं, क्योंकि इनमें ज़िहाफ लगी बह्रों की अपेक्षा लय कम होती है।
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क्र. बहर का नाम अरकान उदाहरण: दो लघु II=एक गुरु S
जिन वर्णों की मात्राएँ गिरी हैं, वे वक्र (itallic) दर्शित हैं
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१. तबील फ़ऊलुन्-मुफ़ाईलुन् ISS ISSS, ISS ISSS, तुम्हारी जुदाई
२x(मुतक़ारिब+हज़ज) में लबों पर दम आया है / कोई से यों
मसीहा कब आया है। - सफ़ी अमरोही
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२. क़रीब मुफ़ाईलुन्-मुफ़ाईलुन्- ISSS ISSS SISS, न यह समझो
फ़ाइलातुन् (२ हज़ज+रमल) रहा हूँ केवल घरों में, / उड़ानें भी
रही हैं टूटे परों में।- कुँअर बेचैन
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३. मुज़ारिअ मुफ़ाईलुन्-फ़ाइलातुन् ISSS SISS, ISSS SISS, कभी आती
(मुज़ारे) २ x (हज़ज+रमल) याद उनकी, कभी आती ही नहीं है,/इलाही,
क्या याद भी ख़्वाब-सी होती बेवफ़ा है?-राज पाराशर
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४. मदीद फ़ाइलातुन्-फ़ाइलुन्* SISS SIS, पूजता हूँ बस उसे, / अब
(रमल+मुत-दारिक) वो पत्थर है तो है। - विज्ञान व्रत
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५. जदीद फ़ाइलातुन्-फ़ाइलातुन्- SISS SISS SSIS, ले गया वो बेमुरव्वत
मुस्तफ़्इलुन(२रमल+रजज) आरामे-दिल,/कुछ नहीं बाक़ी रहा अब
जुज़नामे-दिल।- राज पाराशर
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६. ख़फ़ीफ़ फ़ाइलातुन्-मुस्तफ्इलुन्-फ़ाइलातुन् SISS SSIS SISS, जल गयी
(रमल+रजज़+ रमल) निःसंदेह अँगुली हमारी,/दीप
को लेकिन ज्योतित कर दिया है। - स्वरचित
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७. मुशाकिल फ़ाइलातुन्-मुफाईलुन्- SISS ISSS ISSS, इश्क़ क्या है,
मुफाईलुन् (रमल+2हज़ज) नहीं मालूम ये यारो, गो कटी इश्क़
में ही ज़िन्दगी मेरी।- राज पाराशर
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८. मुज़ास मुस्तफ्इलुन-फाइलातुन् SSIS SISS, उसको भला कौन मारे,
(मुज़्तस) (रजज़+रमल) / जीना जिसे आ गया हो।-स्वरचित
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९. वसीत मुस्तफ्इलुन्-फाइलुन्* SSIS SIS, SSIS SIS, जाने-जिगर,
(ख़सीत) रजज़+मुतदारिक जाने-मन, तुझको है मेरी क़सम, / तू
जो न मुझको मिला, मर जाऊँगा मैं सनम।– समीर
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१०. मुक्तज़िब मफ़ऊलातु-मुस्तफ्इलुन् SSSI SSIS, SSSI SSIS,जो भी ठानिये
दोस्तो! वह कर गुज़रिये आज ही, कल
का क्या ठिकाना, समय की अनुकूलता हो न हो! -स्वरचित
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११. मुंसरिह मुस्तफ्इलुन्-मफ़ऊलातु SSIS SSSI, SSIS SSSI, मिलकर
(मुंसरिज) गले रो लो मीत, अपने नयन धो लो मीत, कितने गिरे
आँसू आज, उनको ज़रा तोलो मीत। -कुँअर बेचैन
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१२. सरीअ मुस्तफ्इलुन्- SSIS SSIS SSSI, मैं भी सुनूँ, तू भी
(सरीअ:) मुस्तफ्इलुन्-मफ़ऊलातु सुने ऐसा गीत, / यदि हो सके मुझको
सुना मेरे मीत। -कुँअर बेचैन
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* इन अरकान की भी प्रायः दो आवृत्तियाँ होती हैं। उदाहरण के शे’र में केवल मुरब्बा (चार अर्कान) ही प्रयुक्त हैं।
३.३ ज़िहाफ़ लगी (परिवर्तित अरकान से बनी) बह्रें और उनके भेद उपर्युक्त मुफ़रद बह्रों में जब किसी अरकान को परिवर्तित रूप में रखा जाता है, तो उसे ‘मुज़ाहिफ़’ बह्र (ज़िहाफ़ लगी बह्र) कहते हैं। जैसे: उपर्युक्त ‘मुतक़ारिब’ नामक मुफ़रद बहर के ‘फ़ऊलुन्’ (ISS) के लघु-गुरु-गुरु को बदलकर ‘लघु-गुरु-लघु’ अथवा ‘गुरु-लघु-लघु’ कर दिया जाए तो वे क्रमशः नए अरकान बन जाएँगे। जैसे: ‘फ़ऊल’ (ISI) या ‘फेलन’ (SII). परिवर्तन की इस व्यवस्था को उर्दू में ‘ज़िहाफ़’ कहते हैं। हिंदी के वर्णिक छंदों में इस प्रकार के परिवर्तन संस्कृत-काल से चले आ रहे हैं। ज़िहाफ यों तो ४८ प्रकार के हैं किंतु निम्न १५-२० ज़िहाफ़ ही प्रचलित हैं:
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क्रमांक मूल अरकान परिवर्तित अरकान ज़िहाफ मुजाहिफ़ अरकान
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१. फ़ऊलुन् (ISS) १-फ़ऊल (ISI) क़ब्ज़ मक्बूज़
(बह्रे- मुतक़ारिब) २-फ़ेलन (SII) सलम अस्लम
३-फ़ऊ (IS) क़स्र मक्सूर
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२. फ़ाइलुन् (SIS) १-फ़ेलुन् (SS) १. कत्अ मक्तूअ
(बह्रे-मुतदारिक) २-फ़े (S) २. हज़ज महज़ूज----------------------------------------------------------------------------------------
३. मुफ़ाईलुन् (ISSS) १-मफ़ऊल (SSI) १. ख़र्ब अख़रब
. (बह्रे-हज़ज) २-फ़ऊलुन् (ISS) २. हज्फ़ महज़ूफ़
३-मफ़ाईल (ISSI) ३. क़फ़ मक़फ़ूफ़
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४. मुस्तफ्इलुन (SSIS) १. मुफ़ाइलुन् (ISIS) ख़ब्न मख़्बून
(बह्रे-रजज़)
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५. फ़ाइलातुन् (SISS) १-फ़ाइलुन् (SIS) हज्फ़ महज़ूफ़
(बह्रे-रमल) २-फ़ाइलातु (SISI) क़फ़ मक़फ़ूफ़
३-फ़इलातु (IISI) शक्ल मश्कूल
४-फ़इलातुन्(IISS) ख़ब्न मख़बून
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६. मुतफ़ाइलुन्(IISIS) मुस्तफ्इलुन् (SSIS) इज़्मार मुज़्मर
(बह्रे-कामिल)
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७ मुफ़ाइलतुन् (ISIIS) मुफ़ाईलुन् (ISSS) अस्ब मासूब
(बह्रे-वाफ़िर)
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८ मफ़ऊलातु (SSSI)* मफ़ऊल (SSI) रफ़अ मरफ़ूअ
(बह्रे-मुक्तज़िब)
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* यह ‘मुफ़रद’ बह्र का हिस्सा नहीं हैं, क्योंकि इसके अंत में हरकत वाला अक्षर ‘तु’ (I) आया है। इसे अगर शेर के ‘अरूज़’ या जर्ब पर, अर्थात् शेर के आख़िरी अरकान में रख देंगे, तो प्रवाह-भंग हो जायेगा। शेष सभी के ‘अंत में साकिन’ हैं।
३.४ ज़िहाफ़ लगी बह्र के उदाहरण: अब ज़िहाफ़ लगी बहूर में कुछ अशआर देखें। जिन वर्णों की मात्रा गिरी है, वे वक्र (itallic) दर्शित हैं:
(१) फ़ऊलुन्-फ़ऊलुन्-फ़ऊलुन्-फ़ऊ ISS ISS ISS IS दिखाई दिये यूँ कि बेख़ुद किया, / हमें आपसे भी ज़ुदा कर चले। - मीर
इस बह्र में तीन ‘फ़ऊलुन्’ और एक ‘फ़ऊ’ है, यदि चारों ‘फ़ऊलुन्’ होते तो इसका नाम होता ‘बहरे-मुतक़ारिब- मुसम्मन-सालिम’। अंतिम ‘फ़ऊलुन्’ की जगह ‘फ़ऊ’ है क्योंकि इसमें ‘क़स्र’ नामक जिहाफ़ लगा है। इससे ‘फ़ऊलुन्’ अपने मूल रूप से बदलकर ‘फ़ऊ’ हो गया है। इस परिवर्तित अरकान को ‘मक्सूर’ कहा गया है। इस प्रकार, इस बह्र का नाम हुआ मुतक़ारिब-मुसम्मन-मक्सूर। ‘मुतक़ारिब’ मूल बह्र का नाम; ‘मुसम्मन’ माने शेर में आठ अरकान, और ‘मक्सूर’, अर्थात् ‘मुज़ाहिफ़’ नामक अरकान। हिंदी में इसे ‘भुजंगी’ छंद कहते हैं।
(२) मुफ़ाईलुन्-मुफाईलुन्-फ़ऊलुन् ISSS ISSS ISS ये माना जिंदगी है चार दिन की, / बहुत होते हैं यारो! चार दिन भी। -फ़िराक़ गोरखपुरी
इस बह्र में दो ‘मुफाईलुन्’ और एक ‘फ़ऊलुन्’ है। यदि तीनों ‘मुफ़ाईलुन्’ होते, तो इसका नाम होता- बह्रे-हज़ज- मुसद्दस-सालिम लेकिन, अंतिम ‘मुफाईलुन्’ की जगह ‘फ़ऊलुन्’ आया है, क्योंकि इसमें ‘हज्फ़’ नामक जिहाफ़ लगा है। इससे ‘मुफाईलुन्’ बदलकर ‘फ़ऊलुन्’ हो गया है। इसका परिवर्तित अरकान ‘महज़ूफ़’ है। इसलिए, बह्र का नाम हुआ: हजज-मुसद्दस-महज़ूफ़।
(३) फ़ाइलातुन्-फ़ाइलातुन्-फ़ाइलातुन्-फ़ाइलुन् SISS SISS SISS SIS चुपके-चुपके रात-दिन आँसू बहाना याद है, / हमको अपनी आशिक़ी का वो ज़माना याद है। - हसरत मोहानी
* * *
हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है, / देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है। - रामप्रसाद ‘बिस्मिल’
इस बह्र में क्रमशः तीन ‘फ़ाइलातुन्’ हैं और एक ‘फ़ाइलुन्’ है। अतः यह मुजाहिफ़ (परिवर्तित) बह्र हुई। इसमें भी ‘हज्फ़’ नामक ज़िहाफ लगा है, जिसका नाम है- महज़ूफ़ । अतः, इस बह्र का नाम हुआ- ‘रमल-मुसम्मन-महज़ूफ़’। हिंदी में इसे ‘गीतिका’ छंद कहा जाता है। इसमें यदि एक ‘फ़ाइलातुन्’ कम हो जाए, तो यह ‘पीयूषवर्ष’हो जाएगा। उर्दू में ‘गीतिका’ छंद का नाम होगा- ‘बह्रे-रमल-मुसद्दस-महज़ूफ़’, क्योंकि इसमें कहे गये शे’र में छः अरकान हैं।
(४) मफ़ऊल-मफ़ाईलुन्, मफ़ऊल-मफ़ाईलुन् SSI ISSS SSI ISSS इक लफ़्ज़े-मुहब्बत है, अदना ये फ़साना है, / सिमटे तो दिले आशिक़, फैले तो ज़माना है। - जिगर मुरादाबादी इस बहर का नाम है- हज़ज-मुसम्मन-अख़रब। हज़ज में आठ अरकान है। हज़ज-मुसम्मन- सालिम में चार ‘मफ़ाईलुन्’ होते हैं, मगर यहाँ दो ‘मफ़ाईलुन्’ की जगह, ‘मफ़ऊल’ आये हैं, जो ‘खर्ब’ ज़िहाफ से ‘अखरब’ के रूप में हैं ।
(५) फ़ाइलातुन्-मुफ़ाइलुन्-फ़ेलुन् SISS ISIS SS दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है, / आख़िर इस दर्द की दवा क्या है! - ग़ालिब
(‘आखिर इस’ को बह्र में लाने के लिए ‘आखिरिस’ पढना पड़ेगा, लेकिन यह अनुमन्य है।)
अथवा, कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी, / यों कोई बेवफ़ा नहीं होता। - बशीर बद्र
यह अति-प्रचलित बह्र है। इसके मिसरे में तीन अरकान होते हैं ‘फ़ाइलातुन्- मुफ़ाइलुन्-फ़ेलुन्’, जो मिश्रित (मुरक्कब) बहूर में से एक है। इसका नाम है ‘खफीफ़’। बह्र में ‘ख़ब्न’ नामक ज़िहाफ़ लगने से इसका नाम पड़ा बह्रे-खफीफ़-मुसद्दस-‘मखबून।’
(६) अब तक केवल एक ज़िहाफ और उससे बने अरकान की बात की गयी है। निम्न बह्र में दो जिहाफ़ लगे हैं-- ‘ख़ब्न’ और ‘कफ्फ़’। इसे ‘सकल’ ज़िहाफ कहा जाता है और इससे ‘मस्कूल’ नामक मुज़ाहिफ़ अरकान बनता है, जैसे: फ़ऊल-फ़ेलुन्, फ़ऊल-फ़ेलुन् ISS SS ISS SS तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, / क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो! -क़ैफ़ी आज़मी (‘तुम इतना’ को ‘तुमितना’ (ISS) पढ़ा या बोला जाएगा।)
(७) फ़ेलुन्-मफाइलात-मफैलुन्-मफ़ाइलुन् SS ISISI ISS ISIS दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिए, / बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए। / इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार, / दीवारो-दर को ग़ौर से पहचान लीजिए। - शहरयार
(छंद की दृष्टि से दूसरे शेर के मिसरे में प्रयुक्त शब्दांश- ‘बार-बार’ में एक मात्रा बढ़ी हुई है। प्रयुक्त बह्र के यहाँ, ‘बारबा’ आना चाहिए, लेकिन पहले मिसरे के अंत में एक मात्रा अधिक लगाने की छूट है।)
(८) मफाइलात-मफैलुन्, मफ़ाइलात फ़ऊ ISISI ISS ISIS IIS कहाँ तो तय था चिराग़ां हरेक घर के लिए, / कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए। - दुष्यंत कुमार
(९) मफ़ऊल-फ़ाइलातु-मफ़ाईल-फ़ाइलुन् SSI SISI ISSI SIS मिलती है ज़िंदगी में मुहब्बत कभी-कभी, / होती है दिलबरों की इनायत कभी-कभी। - साहिर लुधियानवी
* * *
दो-चार बार हम जो ज़रा हँस-हँसा लिये, सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिये। - कुंअर बेचैन
(१०) मफ़ाइलातु-मफ़ैलुन्-मफ़ाइलुन्-फेलुन् ISISI ISS ISIS SS मिले न फूल तो काँटों से दोस्ती कर ली, / इसी तरह से बसर हमने ज़िंदगी कर ली। - इन्दीवर
नोट : (१) दोनों (मुरक्कब और मुजाहिफ़) बह्रों में प्रमुख अंतर यह है कि मुरक्कब में अरकान का मिश्रण रहता है, जबकि मुजाहिफ़ में अरकान की सूरत बदल जाती है।
(२) किसी बह्र का नाम जानना उतना ज़रूरी नहीं है, जितना कि उसके अर्कानों से बनी लय को जानना-समझना।
४. मुक्तछंद कविता में भी छंद की उपस्थिति: मुक्तछन्द काव्य कोई नया नहीं है। वह तो संस्कृत और वैदिक साहित्य में मिलता है। कविता किसी नदी की भाँति अनवरत बहती रहती है। जिस प्रकार बड़ी नदी छोटी-छोटी नदियाँ मिलती रहती हैं, उसी प्रकार कविता की मुख्य धारा में छोटी-छोटी काव्य-धाराएँ मिलती रहती हैं और उसका कथ्य और शिल्प बदलता और समृद्ध होता रहता है। कबीर के यहाँ यदि सधुक्कड़ी भाषा है, तो सूरदास के यहाँ ब्रज और तुलसी के यहाँ अवधी । रीतिकाल की ब्रज भाषा थोड़े-बहुत परिवर्तन के बाद भारतेंदु युग में खड़ी बोली बनी। वस्तु की दृष्टि से भक्ति, अध्यात्म, और राष्ट्रीय चेतना, छायावाद, मानव की मुक्ति-चेतना और फिर जनचेतना, कितने ही रूप दिखायी पड़ते हैं।... अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का ‘प्रियप्रवास’ १९१४ में रचा गया। यह खड़ी बोली का पहला महाकाव्य माना जाता है, जिसमें अतुकांत छंदों का प्रयोग हुआ है:
अधिक और हुई नभ-लालिमा, / दश दिशा अनुरंजित हो गयी;
सकल पादप-पुंज-हरीतिमा / अरुणिमा-विनिमज्जित-सी हुई।
उक्त कविता बारह वर्णीय ‘द्रुत बिलंबित (जगती)’ छंद में हैं । छंद हेतु निर्धारित गणों का पालन भी हुआ है, क्योंकि सभी चारों पंक्तियों में क्रमशः ‘नगण, भगण, भगण’ और ‘रगण’ (III, SII, SII, SIS) आये हैं; केवल तुकांत की छूट ली गयी है। तुकांत का आग्रह न तो संस्कृत काव्य (श्लोक, अनुष्टप आदि) में है और न ही वैदिक छंदों (ऋचाओं) में। इस प्रसंग में एक श्लोक देखिए, जो तुलसी के रामचरितमानस के प्रारंभ में दिया गया है । श्लोक चार चरणों का छंद होता है, जिसके प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं, पर वे अगली पंक्ति में सवैया या ग़ज़ल की भाँति अपने स्थान पर अडिग नहीं रहते। घनाक्षरी की भाँति केवल उनके वर्ण गिने जाते हैं।
वर्णानामर्थसंघानां, रसानां छन्दसामपि। / मंगलानां च कर्त्तारौ, वन्दे वाणीविनायकौ।।
जयशंकर ‘प्रसाद’ ने भी १९१८ में ‘झरना’ नामक रचना में खड़ी बोली में तुकांत से मुक्ति पा ली, यद्यपि छंद का पालन उन्होंने अवश्य किया, पर वह मुक्त छंद में है, अर्थात् एक पंक्ति के गण कुछ हैं, तो दूसरी की कुछ, पर उनमें लय है। उदाहरण के लिए दो पंक्तियों की तक्तीअ
(गणना) कर दी गई है। प्रस्तुत है झरना के प्रथम प्रभात का एक अंश:
SS SS ISISS SIS (मगण, रगण, यगण, रगण = फ़ेलुन्-फ़ेलुन्-मुफ़ाइलातुन्-फ़ाइलुन्) वर्षा होने लगी कुसुम मकरंद की,
SII SS SII SS SIS (भगण, मगण, सगण, तगण, दीर्घ = फ़ाइल, फ़ेलुन्, फ़ाइल, फ़ेलुन्, फ़ाइलुन्) प्राण पपीहा बोल उठा आनंद में,
कैसी छवि ने बाल अरुण-सी प्रकट हो / शून्य हृदय को नवल राग रंजित किया।
सद्यस्नात हुआ मैं प्रेम सुतीर्थ में, / मन पवित्र उत्साहपूर्ण-सा हो गया,
विश्व, विमल आनंदभवन-सा हो गया, / मेरे जीवन का वह प्रथम प्रभात था।
‘परिमल’ की भूमिका में निराला कहते हैं, “मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है। मनुष्यों की मुक्ति कर्मों के बंधन से छुटकारा है, और कविता की मुक्ति छंदों के शासन से अलग हो जाना। जिस तरह मुक्त मनुष्य कभी किसी तरह भी दूसरे के प्रतिकूल आचरण नहीं करता, उसके तमाम कार्य औरों को प्रसन्न करने के लिए होते हैं: फिर भी स्वतन्त्र, इसी तरह कविता का भी हाल है। जैसे बाग़ की बँधी और वन की खुली हुई प्रकृति- दोनों ही सुंदर हैं पर दोनों के आनंद तथा दृश्य दूसरे-दूसरे हैं।”
अपनी बात के समर्थन में वे ऋग्वेद और यजुर्वेद की ऋचाओं का उल्लेख करते हैं, जो मुक्त छंद में हैं और उनकी पंक्तियों में न तो वर्ण समान हैं और न ही उनका क्रम! उनके अनुसार, “मुक्तछंद तो वह है, जो छंद की भूमि में रहकर भी मुक्त है।” उनके ‘परिमल’ के तीसरे खंड में इसी प्रकार की कविताएँ हैं। उसकी भूमिका में वे स्वयं कहते हैं, “...मुक्तछंद का समर्थक उसका प्रवाह ही है। वही उसे छंद-सिद्ध करता है, और उसका नियम-राहित्य उसकी मुक्ति।” समर्थन में वे अपनी कविता, ‘जुही की कली’ की कुछ पंक्तियाँ उद्धृत करते हैं। उद्धरण को उर्दू के अरकान के ज़रिये आसानी से समझा जा सकता है—
विजन-वन-वल्लरी पर (ISS SISS - फ़ऊलन् फ़ाइलातुन् ) / सोती थी सुहाग-भरी (SS SIS IIS - फेलुन फ़ाइलुन् फ़इलुन्)
स्नेह-स्वप्न-मग्न अमल-कोमल-तन-तरुणी (SISI SII SSSS SS - फ़ाइलात फ़ाइल मफ़ईलातुन् फेलुन्)
जुही की कली (ISS IS - फ़ऊलुन् फ़ऊ ) दृग बन्द किये- शिथिल पत्रांक में। (SSI ISIS ISIS - मफ़ऊल मफ़ाइलुन्म फ़ाइलुन्)
४.१ मुक्तछंद क्यों?
कभी-कभी वेदना, विसंगति या त्रासदी की अभिव्यक्ति में पारम्परिक छंद का बंधन आड़े आने लगता है, तो कवि उससे मुक्ति चाहता है। वह स्वच्छंद होकर कुछ रचना चाहता है। इसलिए पारंपरिक छंदों को तोड़ने में कुछ बुराई नहीं। लेकिन छंद से कविता का नाता नहीं टूट सकता। उसका स्वरुप कुछ भी हो सकता है। कल्पना कीजिए कि निराला, ‘तोड़ती पत्थर’ या ‘कुकुरमुत्ता’ को यदि दोहा, चौपाई, सवैया-कवित्त जैसे छंद में रचते, तो क्या उसमें वही आस्वाद होता, जो उनके मुक्तछंद रूप में है! मुक्तछंद होने के बावज़ूद ये कविताएँ कतिपय वर्ण-युग्मों पर आधारित हैं और यति-गति से बद्ध हैं।
तोड़ती पत्थर
वह तोड़ती पत्थर। SSIS SS मुस्तफ्-इलुन, फ़ेलुन
देखा उसे मैंने/ इलाहाबाद के पथ पर SSIS SS/ ISSS ISSS मुस्तफ्-इलुन, फ़ेलुन, मफ़ाईलुन, मफ़ाईलुन
वह तोड़ती पत्थर । SSIS SS मुस्तफ्-इलुन, फ़ेलुन
कोई न छायादार SSIS SSI मुस्तफ्-इलुन, मफ़ऊल
पेड़ वह जिसके तले/ बैठी हुई स्वीकार, SISS SISS SIS SSI फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन, फ़ाइलुन, मफ़ऊल
श्याम तन, भर बँधा यौवन, SISS ISSS फ़ाइलातुन, मफ़ाईलुन
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन, SISS SISS फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन,
गुरु हथौड़ा हाथ, SISS SI फ़ाइलातुन, फ़ातु
करती बार-बार प्रहार : SS SIS IISI फेलुन, फ़ाइलुन, फ़इलातु
सामने तरु मालिका अट्टालिका, प्राकार। SISS SISS SISS SI फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन, फ़ातु
इसी क्रम में एक रचना और सुनिए, जो नई कविता के प्रसिद्ध कवि, शमशेर बहादुर सिंह की है—
बात बोलेगी
बात बोलेगी, हम नहीं SISS SSIS फ़ाइलातुन, मुस्तफ्इलुन्
भेद खोलेगी, बात ही। SISS SSIS वही
सत्य का मुख SISS फ़ाइलातुन् / झूठ की आँखें SIS SS फ़ाइलुन्, फ़ेलुन्
क्या देखें! SSS मफ़ऊलुन् / सत्य का रुख़ SISS फ़ाइलातुन्
समय का रुख़ है : ISS SS फ़ऊलुन्, फ़ेलुन् / अभय जनता को ISS SS वही
सत्य ही सुख है, SIS SS फ़ाइलुन्, फ़ेलुन् / सत्य ही सुख। SISS फ़ाइलातुन् ।
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