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शुक्रवार, 8 जून 2018

दोहा सलिला

दोहा
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सोनपरी भू पर उतर, नाच रही; हो धूप।
उषा राजरानी मुदित, रवि नृप हेरे रूप।।
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सूर्य रश्मि शर छोड़ता, तम भागा ले प्राण।
कीर्ति-कथा कहते विहग, सुन हो जग संप्राण।।
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कोयल शहनाई बजा, गौरैया कर नृत्य।
मिट्ठू जीजा से कहें, मन भाया शुभ कृत्य।।
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कौआ पंडित पढ़ रहा, काँव-काँव कर मंत्र।
टर्र-टर्र मेंढक करे, बजा बैंड के यंत्र।।
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जुही-चमेली सरहजें, नमक चाय में घोल।
इठलातीं; जीजा विवश, पिएँ मौन बिन बोल।।
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आ देवर जासौन ने, खूब जमाया रंग।
गारी गाती भौजियाँ, हुए बराती तंग।।
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बेला-वेणी पा हुई, चंपा साली मौन।
प्रणयपत्रिका दे गया, आँख बचाकर कौन।।
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लाल गुलाबी कली के, हुए गुलाबी गाल।
छेड़े भँवरा बावरा, चंपा करे धमाल।
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झरबेरी मौसी हँसी, सुना गीत ज्यौनार।
पीपल चाचा झूमते, मन ही मन मन हार।।
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दोहा मन को मोहता, चौपाई चितचोर।
छप्पय छूता हृदय को, बाँध सवैया डोर।।
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षटपदी
चैन हर रहा त्रिभंगी, उल्लाला दिल लूट।
कुंडलिया का कर लिए, रोला करता हूट।।
रोला करता हूट, शूट कर रहा माहिया।
गिद्धा-टप्पा नचें, विकल सोरठा को किया।।
आल्हा पर स्रग्विणी, रीझकर रही न चंगी।
गया हाथ से हृदय, चैन हर रहा त्रिभंगी।।
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8.6.2018, 7999559618

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