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गुरुवार, 7 जून 2018

श्री श्री चिंतन

श्री श्री चिंतन: दोहा गुंजन 
जो पाया वह खो दिया, मिला न उसकी आस। जो न मिला वह भूलकर, देख उसे जो पास*हर शंका का हो रहा, समाधान तत्काल।  जिस पर गुरु की हो कृपा, फल पाए हर हालधन-समृद्धि से ही नहीं, मिल पाता संतोष। काम आ सकें अन्य के, घटे न सेवा कोष*गुरु जी से जो भी मिला, उसका कहीं न अंत गुरु में ही मिल जायेंगे, तुझको आप अनंत*जीवन यात्रा शुरू की, आकर खाली हाथ जोड़-तोड़ तज चला चल, गुरु-पग पर रख माथ*लेखन में संतुलन हो, सत्य-कल्पना-मेल लिखो सकारात्मक सदा, शब्दों से मत खेल*गुरु से पाकर प्रेरणा, कर खुद पर विश्वास। अपने अनुभव से बढ़ो, पूरी होगी आस.*गुरु चरणों का ध्यान कर, हो जा भव से पार गुरु ही जग में सार है, बाकी जगत असार*मन से मन का मिलन ही, संबंधों की नींव।  मन न मिले तो, गुरु-कृपा, दे दें करुणासींव*वाणी में अपनत्व है, शब्दों में है सत्य दृष्टि अमिय बरसा रही, बन जा गुरु का भृत्य*नस्ल, धर्म या लिंग का, भेद नहीं स्वीकार उस प्रभु को जिसने किया, जीवन को साकार*है अनंत भी शून्य भी, अहं ईश का अंश डूब जाओ या लीन हो, लक्ष्य वही अवतंश*शब्द-शब्द में भाव है, भाव समाहित अर्थ।  गुरु से यह शिक्षा मिली, शब्द न करिए व्यर्थ*बिंदु सिंधु में समाहित, सिंधु बिंदु में लीन गुरु का मानस पुत्र बन, रह न सकेगा दीन*सद्विचार जो दे जगा, वह लेखन है श्रेष्ठ। लेखक सत्यासत्य को, साध बन सके ज्येष्ठ
७.६.२०१८, ७९९९५५९६१८

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