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शनिवार, 16 जून 2018

कार्यशाला

कार्यशाला:
कुछ अपनी, कुछ आपकी
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मिला था ईद पे उससे गले हुलसकर मैं
किसे पता था वो पल में हलाल कर देगा
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ये मेरी तिश्नगी, लेकर कहाँ चली आई?
यहाँ तो दूर तक सहरा दिखाई देता है.
- डॉ.अम्बर प्रियदर्शी
चला था तोड़ के बंधन मिलेगी आजादी
यहाँ तो सरहदी पहरा दिखाई देता है.
-संजीव वर्मा 'सलिल'
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तिश्नगी का न पूछिए आलम
मैं जहाँ हूँ, वहाँ समंदर है.
- अम्बर प्रियदर्शी
राह बारिश की रहे देखते सूने नैना
क्या पता था कि गया रीत सारा अम्बर है.
-संजीव वर्मा 'सलिल'
salil.sanjiv@gmail.com
७९९९५५९६१८

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