सड़गोड़ासनी 3
श्री श्री आइए
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श्री श्री आइए मन-द्वारे,
चित पल-पल मनुहारे।
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सब जग को देते प्रकाश नित,
हर लेते अँधियारे।
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मृदु मुसकान अधर की शोभा,
मीठा वचन उचारे।
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नयनों में है नेह-नर्मदा,
नहा-नहा तर जा रे!
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मेघ घटा सम छाओ-बरसो,
चातक प्राण पुकारे।
़
अंतर्मन निर्मल करते प्रभु,
जै-जैकार गुँजा रे।
़
श्री-चरणों की रज पाना तो,
खुद को धरा बना रे।
़
कल खोकर कल सम है जीवन,
व्याकुल पार लगा रे।
़
लोभ मोह माया तृष्णा तज
गुरु का पथ अपना रे!
़
श्री-वचनों का अमिय पानकर
जीवन सफल बना रे!
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6.6.2018, 7999559618
salil.sanjiv@gmail.com
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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बुधवार, 6 जून 2018
सड़गोड़ासनी 3 श्री श्री आइए
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