दोहा सलिला 
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कलकल सुन कर कल मिले. कल बनकर कल नष्ट। 
कल बिसरा बेकल न हो, अकल मिटाए कष्ट।। 
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शब्द शब्द में भाव हो, भाव-भाव में अर्थ। 
पाठक पढ़ सुख पा सके, वरना दोहा व्यर्थ।।
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मेरा नाम अनाम हो, या हो वह गुमनाम। 
देव कृपा इतनी करें, हो न सके बदनाम।।
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चेले तो चंचल रहें, गुरु होते गंभीर। 
गुरु गंगा बहते रहे, चेले बैठे तीर।।
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चेला गुरु का गुरु बने, पल में रचकर स्वांग।
हँस न करता शोरगुल, मुर्गा देता बांग।।
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१६.६.२०१८ -, ७९९९५५९६१८
 
 
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