हिंदी के नए छंद १०
पाँच मात्रिक याज्ञिक जातीय सतपुडा छंद
*
हिंदी में पहली बार पञ्च मात्रिक छंदों का सृजन कर विधान और उदहारण सहित प्रस्तुत किया गया है। आप भी इन छंदों के आधार पर रचना करें । शीघ्र ही हिंदी छंद कोष प्रकाशित करने का प्रयास है जिसमें सभी पूर्व प्रचलित छंद और नए छंद एक साथ रचनाविधान सहित उपलब्ध होंगे।
छंद रचना सीखने के इच्छुक रचनाकार इन्हें रचते चलें तो सहज ही कठिन छंदों को रचने की सामर्थ्य पा सकेंगे। भवानी, राजीव, साधना, हिमालय, आचमन, ककहरा, तुहिनकण, अभियान व नर्मदा छंद के पश्चात प्रस्तुत है-
सतपुडा छंद
*
विधान:
प्रति पद ५ मात्राएँ।
पदादि, पदांत, गति, यति संबंधी बंधन नहीं। पूर्व में वर्णित पाँच मात्रिक आठों छंदों में से किसी भी छंद की पंक्तियों का बिना निश्चित क्रम के उपयोग।
उदाहरण:
एक रचना -
हर कदम
सँग उठा।
मंजिलें
कर वरण।
काफिले
क्यों थमे?
थक न रुक
चुक न झुक।
सतत बढ़
भाग्य गढ़।
रोकतीं
रीतियाँ।
टोंकतीं
प्रीत भी।
भूलकर
भय 'सलिल'
कर चलो
प्रेम भी।
वर चलो
जीत भी
*************************
salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४
http://divyanarmada.blogspot.com
#हिंदी_ब्लॉगर
पाँच मात्रिक याज्ञिक जातीय सतपुडा छंद
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हिंदी में पहली बार पञ्च मात्रिक छंदों का सृजन कर विधान और उदहारण सहित प्रस्तुत किया गया है। आप भी इन छंदों के आधार पर रचना करें । शीघ्र ही हिंदी छंद कोष प्रकाशित करने का प्रयास है जिसमें सभी पूर्व प्रचलित छंद और नए छंद एक साथ रचनाविधान सहित उपलब्ध होंगे।
छंद रचना सीखने के इच्छुक रचनाकार इन्हें रचते चलें तो सहज ही कठिन छंदों को रचने की सामर्थ्य पा सकेंगे। भवानी, राजीव, साधना, हिमालय, आचमन, ककहरा, तुहिनकण, अभियान व नर्मदा छंद के पश्चात प्रस्तुत है-
सतपुडा छंद
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विधान:
प्रति पद ५ मात्राएँ।
पदादि, पदांत, गति, यति संबंधी बंधन नहीं। पूर्व में वर्णित पाँच मात्रिक आठों छंदों में से किसी भी छंद की पंक्तियों का बिना निश्चित क्रम के उपयोग।
उदाहरण:
एक रचना -
हर कदम
सँग उठा।
मंजिलें
कर वरण।
काफिले
क्यों थमे?
थक न रुक
चुक न झुक।
सतत बढ़
भाग्य गढ़।
रोकतीं
रीतियाँ।
टोंकतीं
प्रीत भी।
भूलकर
भय 'सलिल'
कर चलो
प्रेम भी।
वर चलो
जीत भी
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