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सोमवार, 16 अक्तूबर 2017

muktak

मुक्तक:
कुसुम कली जब भी खिली विहँस बिखेरी गंध
रश्मिरथी तम हर हँसा दूर हट गयी धुंध
मधुकर नतमस्तक करे पा परिमल गुणगान 
आँख मूँद संजीव मत सोना होकर अंध
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salil.sanjiv@gmail.com 
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