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गुरुवार, 26 अक्तूबर 2017

नवगीत

नवगीत 
तुमने जो कुछ दिया 
*
तुमने जो कुछ दिया
उसे ही ओढ़ा मैंने.
सीधा मारग धरा,
न तोड़-मरोड़ा मैंने.
*
हो लहना, चन्दर, सुधा,
रत्ना-तुलसीदास.
चाहा, अनचाहा जिया,
माना खासमखास.
अगिन परिच्छा बाद भी,
नियति रही वनवास.
अश्वमेध का अश्व
न कोई, छोड़ा मैंने.
*
साँसों का संतूर ले,
इकतारे सी आस.
करम चदरिया कुसुम्बी,
ओढी पा सुख-त्रास.
प्रिय का प्रिय होकर जिया,
भले कहे जग दास.
था तो मैं रणछोड़,
नहीं मुख मोड़ा मैंने.
.
चमरौधा सीता रहा,
ले होंठों पर हास.
ज्यों की त्यों चादर रखी,
भले हुआ उपहास.
आम आदमी सा जिया,
जुमला कहा न खास.
छप्पन इंची सीना,
किया न चौड़ा मैंने.
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