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रविवार, 22 अक्तूबर 2017

mukatak

तीन मुक्तक- 
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मौजे रवां रंगीं सितारे, वादियाँ पुरनूर हैं
आफ़ताबों सी चमकती, हक़ाइक क्यों दूर हैं
माहपारे५ ज़िंदगी की बज्म में आशुफ्ता क्यों?
फिक्रे-फ़र्दा सागरो-मीना फ़िशानी१० सूर हैं

१. लहरें, २. प्रकाशित, ३. सूरजों, ४. सचाई (हक़ का बहुवचन), 
५. चाँद का टुकड़ा, ६. सभा, ७. विकल, ८. अगले कल की चिंता, 
९. शराब का प्याला-सुराही, १०. बर्बाद करना, बहाना।
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कशमकश मासूम सी, रुखसार, लब, जुल्फें कमाल 
ख्वाब ख़ालिक का हुआ आमद, ले उम्मीदो-वसाल१०
फ़खुर्दा११ सरगोशियाँ१२, आगाज़१३ से अंजाम१४ तक
माजी-ए-बर्बाद१५ हो आबाद१६ है इतना सवाल१७ 

१. उलझन, २. भोली, ३. गाल, ४. होंठ, ५. लटें, ६. चमत्कार, ७. स्वप्न, 
८. उपयोगकर्ता, ९. साकार, १०. मिलन की आशा, ११. कल्याणकारी, 
१२. अफवाहें, १३. आरम्भ, १४. अंत, १५. नष्ट अतीत, १६. हरा-भरा, १७. माँग। 
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गर्द आलूदा मुजस्सम जिंदगी के जलजले३
मुन्जमिद सुरखाब को बेआब कहते दिलजले
हुस्न के गिर्दाब में जा कूदता है इश्क़१० खुद
टूटते बेताब११ होकर दिल, न मिटते वलवले१२ 

१. धुल धूसरित, २. साकार, ३. भूकंप, ४. बेखर, ५. दुर्लभ पक्षी, 
६. आभाहीन, ७. ईर्ष्यालु, ८. सौन्दर्य, ९. भँवर, १०. प्रेम, ११. बेकाबू, 
१२. अरमान। 
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salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४ 
http://divayanarmada@blogspot.com 
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