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शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

दोहे सोनिया वर्मा

[प्रस्तुत हैं सोनिया वर्मा जी के दोहे। एक बार फिर याद दिला दें १. दोहा ४८ मात्रिक (१३-११ मात्रिक दो पंक्तियों का अर्ध सम मात्रिक छंद है। २. दोहा के सम (दूसरे, चौथे) चरण के अंत में गुरु लघु आवश्यक है। ३. दोहा के विषम (पहले, तीसरे) चरण के आदि में एक शब्द में जगण (१२१) वर्जित है। ४. विषम चरण की ११ वीं मात्रा लघु हो तो माधुर्य वृद्धि होती है। ५. दोहे के कथ्य में पाँच तत्व संक्षिप्तता, सारगर्भितता, लाक्षणिकता, मर्मबेधकता और सम्प्रेषणीयता होना आवश्यक है। ६. दोहे का कोई भी शब्द ऐसा न हो जिसे हटाया जा सके। ७. संयोजक शब्दों और, तथा आदि से तथा अमानक शब्द रूपों से बचिए।] 
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गुरू ज्ञान के देखिए, होते है भंडार
इक बार जो कृपा मिले, कर दे बेडा पार 
होते हैं गुरु ज्ञान के, सचमुच ही भंडार 
कृपा-दृष्टि पल भर मिले, कर दे बेड़ा पार
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करते इक दिन के लिए ,शिक्षक का सम्मान,
बिना स्वार्थ देते रहे, जो हम सबको ज्ञान..।। 
मात्र एक दिन कर रहे,  
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कच्ची मिट्टी को वही, दे पाए आकार,
मन में कोमल भाव हो, हाथों में हथियार।।
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सच्चा नायक कौन है ,कैसे लूँ  पहचान,
चहरे पर चहरा लगा, घूमें हर इंसान।।
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फिल्मी है ये जिंदगी, तरह-तरह के मोड़
अपना जिनको कह रहे, पहले जाए छोड़।।
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धीरे धीरे  सोनिया, जमा रहा है पाँव,
अच्छाई के नाम पर, बसा अहम का गाँव।।
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होनी-अनहोनी सदा, देती पूर्वाभास।
समझ गये तो जीत है, ना समझे तो ह्रास।।
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सोच-समझ करते नहीं, जो भी अपना काम।
जीवन में उनको नहीं, मिलता है आराम।।
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मुख पर वैसे भाव हों, दिल में ज्यों जज़्बात।
रुक कर सब देखे पढ़े, दिन हो चाहे रात।।
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मौन प्रिये समझे नहीं, बनते हैं नादान।
शब्द बयां कैसे करूँ, दीवारों के कान।।
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राहें छोड़ी सत्य की, छोड़ दिया परमार्थ।
करे न मानव देखिये, कलयुग में पुरुषार्थ।।
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आँखों पर पट्टी बँधी, बुद्धि न देती साथ।
तिल-तिल मानवता मरे, मानव हुआ अनाथ।।
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लालच की गठरी रहीं, जिस मानव के पास।
पल में वो हँसता रहा, पल में हुआ उदास।।
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आँखें मूँदे सब यहाँ, निभा रहे हैं रीत।
चुप रहकर होती नहीं, मानवता की जीत।।
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पदवी पाकर हो गया, इतना उसे गुमान।
अपनी ही औकात को, भूल गया इंसान।।
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प्रेमभाव बिसरा रहे, आख़िर क्यों नादान।
छोटी-छोटी बात पर , क्यों देते हैं जान।।
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खाकसार हैं हम सभी, मानव या सामान।
फिर भी हम सब कर रहे, आख़िर क्यों अभिमान।।
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मंदिर है ये ज्ञान का, स्वागत है श्रीमान।
बाहर रखकर आइये, सब अपने अभिमान।।
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नारी तू नारायणी, करते सभी प्रणाम।
बिकती तेरी आबरू, क्यूं होते ही शाम।।
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दिल को दिल से जोड़ता, होता नाजुक प्यार।
लाख घात कोई करे, पड़ती नहीं दरार।।
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- सोनिया वर्मा, रायपुर 

5 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

अति सुंदर

बेनामी ने कहा…

Bhut sundar...GOD bless you

प्रवीण परिमल ने कहा…

सुंदर दोहे!बधाई!!

brijesh ने कहा…

बहुत सुन्दर दोहे हुए..बधाइयाँ

Santosh singh ने कहा…

अपनी टिप्पणी लिखें...बहुत ही सुन्दर दोहे