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शनिवार, 12 अगस्त 2017

सरस्वती स्तवन संकलन

सरस्वती स्तवन:
*

प्रबोध मिश्र हितैषी १६-५-१९४१ 
संजीव वर्मा 'सलिल'        २०-८-१९५२ 
डाॅ० अतिराज सिंह          १०-४-१९५६ 
राजकिशोर पाण्डे           १५-१०-१९६० 
गुप्ता कुमार सुशील       १४-११-१९७० 
पुनिता भारद्वाज            १७-४-१९७१ 
राजकिशोर मिश्र            १२-१२-१९७२ 
ओमप्रकाश शुक्ल            ९-५-१९७७ 

संवत १६७७ में रचित ढोला मारू दा दूहा से सरस्वती वंदना का दोहा :
सकल सुरासुर सामिनी, सुणि माता सरसत्ति.
विनय करीन इ वीनवुं, मुझ घउ अविरल मत्ति..





प्रबोध मिश्र ' हितैषी'











जन्म तिथि-16 मई 1941
स्थान -पानसेमल
जिला-बड़वानी(म.प्र.)
शिक्षा-एम.एस-सी.(रसायन)
बी.एड.(स्वर्ण पदक प्राप्त)
प्रकाशित कृतियाँ-----
1.अहिल्या गीत(1974) 2.बच्चे पग पग पर मुस्काते-3
3.प्यासी धरती प्यासे लोग15
4.परशुराम चालीसा(2017)
सम्प्रति-सेवा निवृत्त प्राचार्य
संपर्क-सुखविलास कॉलोनी
बड़वानी(म.प्र.)451551
मो. 94259-81988
विशेष-
1.म.प्र.शैक्षिक अनुसंधान प्रशिक्षण परि. भोपाल की शिक्षक पोथी हिन्दी कक्षा5में कविता " विलोम शब्द जानिए " सम्मिलित(1998)
2.आकाशवाणी इंदौर से गीत,कविता, दोहे और बाल कहानियों का प्रसारण।
3.सरस्वती वंदना, भगवान परशुराम की आरती तथा नर्मदा वृतांत की ऑडियो, वीडियो सी.डी. जारी।
4.अटल जी पर लिखी कुण्डलिया पर " दैनिक भास्कर इंदौर द्वारा 500 रु. नगद पुरस्कार।
**************************
जय हो सदा विजय हो
**********************
माँ शारदे कृपा से जय हो सदा विजय हो।
सबके लिए जिए हम ये भावना उदय हो।
सीखने की मन में
सतत भावना जगाएँ।
कर्तव्य हम करें पर
परिणाम पर न जाएँ।
जो कुछ छिपा हृदय में उसका सहज उदय हो----
खुद पक्षियों से सीखें
हर वक्त चहचहाना।
कितनी भी हो मुश्किल
रख धैर्य मुस्कुराना।
मिले जहाँ भी अच्छा,अंतर में वो विलय हो----
आलोक ज्ञान का भी
हर ओर हो प्रकाशित।
हर कंठ से सदा ही
मृदु बोल हों प्रवाहित।
हृदय का ताप हरती ,बहती पवन मलय हो----
द्वेष का पातक मिटे
हो अमिट सद्भावना।
जीव का कल्याण हो
पूर्ण हो शुभकामना।
जड़ता तम से निकलें, स्वीकार ये विनय हो------
**************************
सद्भाव का उदय हो
-----------------–---------
कांटों भरी डगर में,माँ शारदे की जय हो।
संसार के हृदय में ,सद्भाव का उदय हो।
हर सुबह हो सलोनी ,
हर शाम हो सुहानी।
मिट जाय इस धरा से,
दर्दों भरी कहानी ।
हर मन में जगे प्रीत,चाहे कठिन समय हो ----
हर हाथ को हो काम
कोई ना हो गुलाम ।
आतंक भ्रष्टाचार का
अब काम हो तमाम।
वैभव भवन भले हो,मन में सदा विनय हो----
अपना तो है ही अपना
अन्यों से प्रेम करना ।
उत्थान हो सभी का
ये भाव हृदय रखना ।
सुख शांति का चमन हो बहती पवन मलय हो----
संसाधन हैं सीमित
इच्छा न हो अपरिमित।
जरूरत मुजब लेना
हो भाव मन में सँचित।
देश हित के वास्ते ,सुख अपना भी विलय हो----
सब कुछ भला भला हो
कोई न अब छला हो।
संकट यदि जो आए
कण कण मेहरबाँ हो।
धन पूज्य प्रिय वही है,जिससे जुड़ा हृदय हो-----
**************************
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
मो.94259-81988
देवकीनंदन 'शांत'

दोहा

शब्द-शब्द में भओ प्रगट, मैया तेरो रूप.
तोरी किरपा छाँओ है, बिन तुझ तपती धूप..
शारदा वन्दना:
वीणा वादिनी तेरौ नाम, जाने मैया जग सारौ...

चार भुजी है रूप तिहारो, वेद पुरानन मन्त्र उचारो.
हाथों में वीणा अभिराम, जाने मैया जग सारौ..
वीणा वादिनी तेरौ नाम, जाने मैया जग सारौ...

हंसवाहिनी तू है माता, कवियन की तू जीवनदाता.
आशीषनो है तेरौ काम, जाने मैया जग सारौ..
वीणा वादिनी तेरौ नाम, जाने मैया जग सारौ...

माथे मुकुट श्वेत कमलासन, ममता भरो 'शांत' सुन्दर मन.
चरनन में तोरे परनाम, जाने मैया जग सारौ..
वीणा वादिनी तेरौ नाम, जाने मैया जग सारौ...
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आचर्य संजीव वर्मा 'सलिल' 

१. अम्ब  विमल मति दे.....
*
हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....

नन्दन कानन हो यह धरती।
पाप-ताप जीवन का हरती।
हरियाली विकसे.....

बहे नीर अमृत सा पावन।
मलयज शीतल शुद्ध सुहावन।
अरुण निरख विहसे.....

कंकर से शंकर गढ़ पायें।
हिमगिरि के ऊपर चढ़ जाएँ।
वह बल-विक्रम दे.....

हरा-भरा हो सावन-फागुन।
रम्य ललित त्रैलोक्य लुभावन।
सुख-समृद्धि सरसे.....

नेह-प्रेम से राष्ट्र सँवारें।
स्नेह समन्वय मन्त्र उचारें।
' सलिल' विमल प्रवहे.....

************************
२.अम्ब विमल मति दे.....
हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....

जग सिरमौर बने माँ भारत.
सुख-सौभाग्य करे नित स्वागत.
आशिष अक्षय दे.....

साहस-शील हृदय में भर दे.
जीवन त्याग तपोमय करदे.
स्वाभिमान भर दे.....

लव-कुश, ध्रुव, प्रहलाद हम बनें.
मानवता का त्रास-तम् हरें.
स्वार्थ सकल तज दे.....

दुर्गा, सीता, गार्गी, राधा,
घर-घर हों काटें भव बाधा.
नवल सृष्टि रच दे....

सद्भावों की सुरसरि पावन.
स्वर्गोपम हो राष्ट्र सुहावन.
'सलिल' निरख हरषे...
*
३.अम्ब विमल मति दे.....

हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....

नाद-ब्रम्ह की नित्य वंदना.
ताल-थापमय सलिल-साधना
सरगम कंठ सजे....,

रुन-झुन रुन-झुन नूपुर बाजे.
नटवर-नटनागर उर साजे.
रास-लास उमगे.....

अक्षर-अक्षर शब्द सजाये.
काव्य, छंद, रस-धार बहाये.
शुभ साहित्य सृजे.....

सत-शिव-सुन्दर सृजन शाश्वत.
सत-चित-आनंद भजन भागवत.
आत्मदेव पुलके.....

कंकर-कंकर प्रगटें शंकर.
निर्मल करें हृदय प्रलयंकर.
गुप्त चित्र प्रगटे.....
*
४.अम्ब विमल मति दे.....

हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....

कलकल निर्झर सम सुर-सागर.
तड़ित-ताल के हों कर आगर.
कंठ विराजे सरगम हरदम-
सदय रहें नटवर-नटनागर.
पवन-नाद प्रवहे...

विद्युत्छटा अलौकिक वर दे.
चरणों में गतिमयता भर दे.
अंग-अंग से भाव साधना-
चंचल चपल चारू चित कर दे.
तुहिन-बिंदु पुलके....

चित्र गुप्त, अक्षर संवेदन.
शब्द-ब्रम्ह का कलम निकेतन.
जियें मूल्य शाश्वत शुचि पावन-
जीवन-कर्मों का शुचि मंचन.
मन्वन्तर महके...
****************

सरस्वती वंदना 
संजीव वर्मा ''सलिल''
*
हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!! 
अम्ब विमल मति दे..... 
जग सिरमौर बनाएँ भारत.
सुख-सौभाग्य करे नित स्वागत.
आशिष अक्षय दे.....
साहस-शील हृदय में भर दे.
जीवन त्याग तपोमय करदे.
स्वाभिमान भर दे.....
लव-कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम.
मानवता का त्रास हरें हम.
स्वार्थ सकल तज दे.....
दुर्गा, सीता, गार्गी, राधा,
घर-घर हों काटें भव बाधा.
नवल सृष्टि रच दे....
सद्भावों की सुरसरि पावन.
स्वर्गोपम हो राष्ट्र सुहावन.
'सलिल'-अन्न भर दे...
*
प्रचलित रूप
सरस्वती वंदना
अम्ब  विमल मति दे.....
***
प्रचलित रूप
हे हंसवाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अंब विमल मति दे
जग सिरमौर बनायें भारत 
वह बल विक्रम दे 
अंब विमल मति दे 
साहस शील ह्रदय में भर दे 
जीवन त्याग तपोमय कर दे 
संयम सत्य स्नेह का वर दे 
स्वाभिमान भर दे 
अंब विमल मति दे
लव कुश ध्रुव प्रह्लाद बनें हम 
मानवता का त्रास हरें हम   
सीता सावित्री दुर्गा माँ 
फिर घर घर भर दे 
अंब विमल मति दे 
हे हंसवाहिनी! ज्ञानदायिनी!! 
अंब विमल मति दे 


*
स्तवन
सरस्वती शारद ब्रह्माणी!
             जय-जय वीणापाणी!!

अमल-धवल शुचि सरल सनातन मैया!
बुद्धि-ज्ञान-विज्ञानप्रदायिनी छैयां।
तिमिरहरिणी!, भयनिवारिणी!, सुखदा,
नाद-ताल, गति-यति खेलें टीवी कैंया।
अनहद सुनवा दो कल्याणी!
             जय-जय वीणापाणी!!
*
स्वर-व्यंजन, गण, शब्द-शक्तियाँ अनुपम
वार्णिक-मात्रिक छंद अनगिनत उत्तम
अलंकार-रस-भाव, बिम्ब तव चारण -
उक्ति-कहावत, रीती-निति शुभ परचम
कंठ विराजित करते प्राणी
              जय-जय वीणापाणी!!
*
कीर्ति-गानकर कलरव धन्य हुआ है
यश गुंजाता गीत अनन्य हुआ है 
कलकलनाद प्रार्थना अगणित रूपा
सनन सनन सन वंदन पवन बहा है
हिंदी हो भावी जगवाणी
              जय-जय वीणापाणी!!
*
माँ सरस्वती शत-शत वन्दन

संजीव 'सलिल' 

माँ सरस्वती! शत-शत वंदन, अर्पित अक्षत हल्दी चंदन. 
यह धरती कर हम हरी-भरी, माँ! वर दो बना सकें नंदन.
प्रकृति के पुत्र बनें हम सब, ऐसी ही मति सबको दो अब-
पर्वत नभ पवन धरा जंगल खुश हों सुन खगकुल का गुंजन.

माँ हमको सत्य-प्रकाश मिले, नित सद्भावों के सुमन खिलें.
वर ऐसा दो सत्मूल्यों के शुभ संस्कार किंचित न हिलें.
मम कलम-विचारों-वाणी को मैया! अपना आवास करो-
मेर जीवन से मिटा तिमिर हे मैया! अमर उजास भरो..
*
हम सत-शिव-सुन्दर रच पायें ,धरती पर स्वर्ग बसा पायें.
पीड़ा औरों की हर पायें, मिलकर तेरी जय-जय-जय गायें. 
गोपाल, राम, प्रहलाद बनें, सीता. गार्गी बन मुस्कायें. 
हम उठा माथ औ' मिला हाथ हिंदी का झंडा फहरायें.

माँ यह हिंदी जनवाणी है, अब तो इसको जगवाणी कर.
सम्पूर्ण धरा की भाषा हो अब ऐसा कुछ कल्याणी कर.
हिंदीद्वेषी हो नतमस्तक खुद ही हिंदी का गान करें-
हर भाषा-बोली को हिंदी की बहिना वीणापाणी कर.
*

       
घनाक्षरी 
बुन्देली  

जाके कर बीना सजेबाके दर सीस नवे, मन के विकार मिटेनित गुन गाइए 


ज्ञानबुधिभासाभावतन्नक  हो अभावबिनत रहे सुभावगुनन सराहिए|


किसी से नाता लें जोड़कब्बो जाएँ नहीं तोड़फालतू  करें होड़नेह सों निबाहिए 


हाथन तिरंगा थामकरें सदा राम-राम, 'सलिलसे हों  वामदेस-वारी जाइए||

*

डाॅ० अतिराज सिंह 












(अंतर्राष्ट्रीय साहित्यकार, से.नि. प्राचार्या, वायुसेना उच्च माध्यमिक विद्यालय बीकानेर) 
जन्म तिथि - १०-४-१९५६ 
स्नातक बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, स्नातकोत्तर पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़, पीएच. डी. वीर कुँवरसिंह विश्वविद्यालय

प्रकाशित पुस्तकें
शोध प्रबंध भगवतीचरण वर्मा के उपन्यासों में नियतिवादी चेतना।
काव्य संकलन अनुभूति, सप्त कलश। 
चलो नभ छू लें - बाल काव्य पुस्तक। 
शीघ्र प्रकाशित होने वाली पुस्तकें
1. कहानी संग्रह, 2. बाल काव्य पुस्तक, 3. संस्मरण व लेख, 4. यात्रा वृतांत
कार्यक्षेत्र
साहित्य के विभिन्न विधाओं में लेखन व अन्य गतिविधियाँ।
1. युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (न्यास) नई दिल्ली
अध्यक्ष - महाराष्ट्र इकाई /केंद्रीय उपाध्यक्ष एवं प्रभारी - पश्चिमी भारत संभाग /सदस्य - राष्ट्रीय चयन समीति
2. अन्य साहित्यिक संस्थाओं में विभिन्न पद
3. आकाशवाणी बीकानेर, महिला जगत कार्यक्रम में विगत वर्षों में प्रस्तुति
साहित्यिक सम्मान एवं प्रशस्ति पत्र (41 राष्ट्रीय व 6 अंतर्राष्ट्रीय सम्मान)
1. विभिन्न वायुसेना स्टेशन तथा महिला व बाल कल्याण संस्था से अतिरिक्त सम्मान व प्रशस्ति पत्र।
E-mail : dr.atiraj@gmail.com
Mobile no - 9150391127
9828326441
नमन, वंदन माँ शारदे!
करने नमन, वंदन तुम्हें, आयी तुम्हारे द्वार माँ!
लायी हृदय की भावना का मैं सुवासित हार माँ!
टूटे न धीरज पीर में सुख में नहीं अभिमान हो,
वर दो मुझे हरदम रहे बस एक सा व्यवहार माँ!
दो ज्ञान की निर्बाधता अज्ञानता को दूर कर!
कर दो प्रवाहित ज्ञान - गंगा की निरंतर धार माँ।
हर वर्ण हैं बिखरे हुए बाधित अभी सुर- ताल है,
होऊँ उपकृत पा के वीणा की मधुर झंकार माँ!
सब छंद सुर में ढाल दो वागीश्वरी माँ शारदे!
हंसासिनी, वरदायिनी करके विनय स्वीकार माँ!
हे शुभ्र कमलासीना देवी हस्त पुस्तक धारिणी!
मैं सर्वदा सच ही लिखूँ, दो सत्यता की धार माँ!
कलुषित न मन में भाव हो सद्भावना हरदम रहे,
कल्याणमय हर कर्म हों पावन रहे सुविचार माँ!
यह मेरी मौलिक रचना है।
-डाॅ० अतिराज सिंह
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राज किशोर पाण्डेय

















पिता का नाम ..समृति शेष ..बाबूराम पाण्डेय
127/944. W1 SAKET NAGAR
KANPUR
जन्म तिथि - 15-10-60
संपर्क सूत्र --9838859027---7985783040
मां वाणी की वंदना
दिव्य दृष्टि दे के उर , अंतस के चक्षु खोल !
ज्ञानदायनी हे मातु , सुंदर विचार दो !!
दंभ द्वेष कपट के , मन में न आवें भाव !
सुसंस्कृता से सत्य का , प्रभुत्व प्रचार दो !!
अनुपम आलोक को , भर दो हृदय मध्य !
अपनी कृपा कोर से , जीवन सवाँर दो !!
शव्द शव्द अर्थ पूर्ण , वाणी हो मधुर प्रिय !
रसना मेें मेरी मातु , ऐसी रसधार दो !!
राजकिशोर पाण्डेय
कानपुर
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गुप्ता कुमार सुशील 'गुप्तअक्स"










पिता का नाम-स्व.श्री मोलई प्रसाद गुप्ता 
व्यवसाय- स्वरोजगार (दवा व्यवसायी)
विधा - गीत,दोहे ,गीतिका ,मुक्तक
सम्प्रति - साझा काव्य संकलन
जन्मतिथि-१४/११/१९७०
जन्म स्थान - डिगबोई (असम)
निवास- गोरखपुर
जिला- गोरखपुर (उ.प्र.)
मो.न.-9807352988
ईमेल: ks4u1ly@gmail.com
[सरस्वती वंदना ]
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{१}
[गीतिका ]
~~~~~~~~
आधार छंद - सरसी (मापनीमुक्त मात्रिक)
विधान - 27 मात्रा, 16,11 पर यति, अंत में गाल 21 दीर्घ लघु
समान्त - आँव/ अपदान्त।
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[ गीतिका ]
~~~~~~~
बीच राह में ड़ोल रहे हैं, देखो मेरे पाँव |
समझ अकिञ्चन मातु शारदे, पार लगा दो नाँव ||
भाव सुशोभित कर दो मेरे, मैं बालक मतिमूढ़ |
हर मन शोभित काव्य लिखूँ मैं, जो दे दो शुभ छाँव ||
वरदायिनी आप हो माते, दूर करो मम् पीर |
आन बसो जो मातु शारदे, हृदय बने तव गाँव |
मन में श्रद्धा उमड़ रही है, हर लो हृदय विकार |
नित्य करूँ मैं नमन-वन्दना, जो मिल जाए ठाँव ||
छंद लिखा मैंने माँ सरसी, लेकर शुभ संज्ञान |
हर्षित अंतस मेरा कर दो, खेलूँ खुलकर दाँव ||
🙏गुप्ता कुमार सुशील'गुप्तअक्स'
{२}
मां वाणी को समर्पित एक वंदना सादर 🙏
हैं भाव शुचित मातु समर्पित, लो माँ संज्ञान पुत्र हित |
समझो हृदय संवेदना को, हो मातु लेखनी शोभित ||
आया अज्ञानी द्वार तेरे, हर लो मेरे विकार को |
करूँ याचना संग कामना, बरसा दो माँ कृपा शुचित ||
🙏गुप्ता कुमार सुशील'गुप्तअक्स'
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पुनीता भारद्वाज











माता - श्रीमती निर्मला शर्मा
पिता - स्व.श्री महेश चंद्र शर्मा
पति - श्री ज्ञान प्रकाश भारद्वाज
जन्म _ १९ अप्रेल १९७१
शिक्षा - एम . ए. संस्कृत , शिक्षा शास्त्री
कार्यानुभव - लगभग ३० वर्षों से शिक्षण कार्य में रत
सम्प्रति - प्रिंसिपल *द वेदांत इंटरनेशनल स्कूल भीलवाड़ा*
लेखन -📚📝 छंद मुक्त
मुक्तक , गीतिका व कुछ छंद में
🏆🏅🏅पुरस्कार एवं सम्मान -🏅🏅🏆
- भारत/ स्काउट गाइड ने *राज्यपाल पुरस्कार प्राप्त* अनेक सामाजिक , साहित्यिक, सांस्कृतिक योग्यता प्रमाण पत्र प्राप्त व सेवा कार्य प्रमाण पत्र प्राप्त ।
हिंदी में शुद्ध वर्तनी के प्रयोग के लिए निरंतर प्रयास रत ।
कृति - अभी तक कोई नहीं
साझा संकलन - *विहग प्रीति के*
शुभमस्तु - 5 में रचनाएँ प्रकाशित
अनेक राज्यों से प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं​ में रचनाएँ प्रकाशित।
ज्ञान बोध , साहित्य सरोज , मुक्तक मकरंद , काव्य रंगोली ,
किस्सा कोताह जैसी स्तरीय पत्रिकाओं​ में रचनाएँ प्रकाशित ।
*मेरा अंतर्द्वंद्व नाम से फेसबुक पेज*
गहमर साहित्यिक संस्था द्वारा वुमन ऑफ द ईयर 2016 पुरस्कार
गंगासागर साहित्य संस्थान द्वारा साहित्य सागर सम्मान -२०१७
नवोदित साहित्यकार मंच द्वारा "साहित्य सृजक "सम्मान
जिला साहित्यकार परिषद भीलवाड़ा द्वारा सम्मानित
सामयिक संस्थान भीलवाड़ा द्वारा काव्य श्री सम्मान
युवा उत्कर्ष मंच द्वारा सारस्वत सम्मान , साहित्य गौरव सम्मान , श्रेष्ठ रचनाकार
मुक्तक लोक द्वारा - मुक्तक रत्न , सारस्वत सम्मान , मुक्तक श्री ।
" वेदना " को श्रेष्ठ रचना पुरस्कार - जिला साहित्यकार परिषद द्वारा।
अधूरा मुक्तक द्वारा - मुक्तक सम्राट ,
मधुशाला साहित्यिक मंच द्वारा साहित्य रत्न- 2018
विक्रम शिला विश्वविद्यालय द्वारा विद्या वाचस्पति सम्मान
पिरामिड श्री
व अन्य फेसबुक मंचों से अनेक पुरस्कार ।
शिक्षण के क्षेत्र में अनेक बार श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान द्वारा सम्मानित ।
*सांप्रदायिक सौहार्द एवं समन्वय समिति भीलवाड़ा द्वारा प्रिंसिपल आफ द ईयर अवार्ड* २०१८ से सम्मानित
पुनीता भारद्वाज
*प्रदेश अध्यक्ष*-दिव्य ब्राह्मण एकता कल्याण समिति राजस्थान
संस्थापक अध्यक्ष आदि गौड़ महिला मंडल भीलवाड़ा
विप्र फाउण्डेशन की कार्यकारिणी में शामिल
*संगठन सचिव राजस्थान इकाई -युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच दिल्ली*
निवास - भीलवाड़ा राजस्थान
मोबाइल नं - 09694914860
सादर नमन मंच के सभी गुणीजनों को 🙏
सादर नमन आदरणीय मंच
सरस्वती वंदना ( प्रकाशन हेतु)
*सिंहावलोकन घनाक्षरी माँ शारदे के श्री चरणों में समर्पित कर रही हूँ।*
वीणा पाणि शारदे माँ , मुझको भी तारदे माँ ,
कलम में खड्ग जैसी , धार मुझे चाहिए ।।
धार मुझे चाहिए माँ, भाव मुझे चाहिए माँ ,
छन्द हेतु अनुपम , अलड्कार चाहिए।।
अलङ्कार चाहिए जी , शब्द को सजाइए जी ,
रचना बने जो दिव्य , वो निखार चाहिए ।।
वो निखार चाहिए भी , संग आप आइए भी ,
है पुनीत की पुकार , अम्ब प्यार चाहिए ।।

(2)
एक गीतिका
आधार छंद - गीतिका
मापनी - गालगागा गालगागा गालगागा गालगा
समांत - आर ,
पदांत - माँ
कर रही मैं आज पूजन , तुम करो स्वीकार माँ ।
दो मुझे आशीष अपना , नेह का संसार माँ ।
आरती की थाल में कुछ ,पुष्प भावों के लिए ,
भेंट अर्पित है तुम्हें दो ,प्रीति का उपहार माँ ।
चाहती हूँ मैं कृपा वह , जो सदा मुझपर रहे ,
शब्द के मोती भरो तुम , लेखनी में धार माँ ।
हो भरा साहित्य आँगन , गीत मुस्काते रहें ,
काव्य की क्यारी सजे अब , काव्य में रसधार माँ ।
इस हृदय की वल्लरी में , प्रेम के किसलय लगें ,
दोष दुख का नाश करदो , स्वस्थ हो परिवार माँ ।
पुनीता भारद्वाज
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राजकिशोर मिश्र 'राज ' प्रतापगढ़ी












विधिक नाम - राजकिशोर मिश्र
पिता का नाम-.श्री अयुग नारायण मिश्र
विधा - हिन्दी साहित्य की समस्त विधा , छंद विशेष
जन्मतिथि- १२/ १२/ १९७२
जन्मभूमि - प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश
निवास- वाशी नवी मुम्बई
मो.न.९३२३०६८३८९ / /९०२९२५२९२५
ईमेल: rajkishormishra2021@gmail.com
[सरस्वती वंदना ]
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माँवीणा के श्री चरणों में , नमन करूँ दिन -रात l
जीवन में उजियारा भर दो , , ओजस नवल प्रभात ll
मैं मूरख अज्ञानी हूँ माँ , ज्ञानी यह संसार l
भटक रहा हूँ दर -दर माता , कर दो बेड़ापार ll
श्रद्धा भक्ति सुमन अर्पित कर , करे समर्पण दास l
मैया तेरे श्री चरणों में, करता हूँ अरदास ll
धन दौलत माणिक नहिं माँगूँ ,नहिं स्वर्णिम परिधान ll
शब्द अर्थ भावों के मोती, अनुपम नवल विधान ll
काम क्रोध माया का बंधन,अज्ञानी आधार।
अहंकार मन द्वेष मिटाओ,भर दो सरस विचार।l
हंसवाहिनी हे माँ वाणी , महिमा अपरम्पार l
निर्मल भाव बहा मन गंगा,शुचि उज्ज्वल अविकार।l
मिटा मातु अंतस अँधियारा ,खुशहाली हर छोर l
अनुपम ज्ञान कुञ्ज का उपवन,महक उठे चहुँओर।l
ज्ञान पथिक छाया में विचरे,मानस करे विहार।
माँ वाणी के श्री चरणों में,शुचिता का आधार।l
आकांक्षा के बादल बरसें ,हर्षित हो भिनसार l
विहग उड़े धरती से अम्बर,ज्ञान प्रेम आगार।l
काव्य सुधा उत्कर्ष हर्ष में,निरखे नवल विधान।
माँ वीणा ज्ञानी संगत का,दे दो मुझे वरदान।l
पिंगल छंदस पाणिन रचना,अलङ्कार रस सार।
माँ वाणी ऐसा वर दे दो,मुस्काए संसार।l
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नमामि हंसवाहिनी , सुशब्द कोष दायिनी, विशिष्ट अर्थ भाव से , भक्त को माँ तार दें l
अनादि काल गर्भ में , निशा प्रभा के मध्य में , हे भावना प्रदायनी , शब्द में सुधार दें ll
नमोः मरालवाहिनी , सु शब्द अर्थ योगिका , प्रकल्पना प्रबोधता , बुद्धि ज्ञान सार दें l
छंदबद्ध कालजयी , उच्च भावना प्रसार , विशुद्ध प्रेम वीथिका, ज्ञान का आधार दें l
मौलिक अप्रकाशित सृजन
राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी

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महाकवि गुलाब खंडेलवालजी : 
अयि मानस-कमल-विहारिणी!
हंस-वाहिनी! माँ सरस्वती! वीणा-पुस्तक-धारिणी!

शून्य अजान सिन्धु के तट पर 
मानव-शिशु रोता  था कातर 
उतरी ज्योति सत्य, शिव, सुन्दर
तू भय-शोक-निवारिणी 

देख प्रभामय तेरी मुख-छवि
नाच उठे भू, गगन, चन्द्र, रवि
चिति की चिति तू  कवियों की कवि
अमित रूप विस्तारिणी 

तेरे मधुर स्वरों से मोहित 
काल अशेष शेष-सा नर्तित 
आदि-शक्ति तू अणु-अणु में स्थित
जन-जन-मंगलकारिणी

अयि मानस-कमल-विहारिणी!
हंस-वाहिनी! माँ सरस्वती! वीणा-पुस्तक-धारिणी!

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शकुंतला बहादुर जी : 
शारदे ! वर दे , वर दे ।
दूर कर अज्ञान-तिमिर माँ,
ज्ञान-ज्योति भर दे , वर दे । शारदे...
सत्य का संकल्प दे माँ,
मन पवित्र रहें हमारे ,
वेद की वीणा बजा कर,
जग झंकृत कर दे,वर दे ।। शारदे...
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सरस्वती माता ss
सरस्वती माता ss
विद्या-दानी, दयानी
सरस्वती माता ss
कीजे कृपा दृष्टि,
दीजे विमल बुद्धि,
गाऊँ मैं शुभ-गान,
मुझको दो वरदान।
सरस्वती माता, सरस्वती माता।।
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आर. सी. शर्मा :   
 rcsharmaarcee@yahoo.co.in 
माँ शारदे ऐसा वर दे।
दिव्य ज्ञान से जगमग कर दे॥

शीश झुका कर दीप जला कर।
शब्द्पुष्प के हार बना कर॥
हम  तेरा  वंदन  करते  हैं।
सब मिल अभिनन्दन करते हैं।।
करुण कृपा का वरद हस्त  माँ, शीश मेरे धर दे।

प्रेम दया सबके हित मन में।
करुणा की जलधार नयन में॥
वीणा  की  झंकार  सृजन  में।
भक्ति की  रसधार  भजन में॥
हंस वाहिनी धवल धारिणी परम कृपा कर दे।

साक्षरता के दिये  जला दें।
भूख  और  संताप मिटा दें।
बहे ज्ञान की  अविरल धरा
हो अभिभूत जगत ये सारा॥
जग जननी माँ अब गीतों को नितनूतन स्वर दे।
माँ शारदे ऐसा वर दे।
दिव्य ज्ञान से जगमग कर दे॥

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माँ शारदा के स्तुति गान में एक विनम्र पुष्प:
कल्पना की क्यारियों से
फूल चुन चुन कर सजाये
कार्तिकी पूनम निशा के
मोतियॊं की गूँथ माला
शब्द के अक्षत रंगे हैं
भावना की रोलियों में
प्राण में दीपित किये हैं
अर्चना की दीप-ज्वाला
और थाली में रखे हैं
काव्य की अगरु सुगन्धित
शारदे तेरे चरण में
एक कविता और अर्पित
छंद दोहे गीत मुक्तक
नज़्म कतए और गज़लें
कुछ तुकी हैं, बेतुकी कुछ
जो उगा हम लाये फ़सलें
हर कवि के कंठ से तू
है विनय के ्साथ वम्दित
शारदे तेरे चरण में
एक कविता और अर्पित
आदि तू है, तू अनादि
तू वषटकारा स्वरा है
तू है स्वाहा तू स्वधा है
तू है भाषा, अक्षरा है
तेरी वीणा की धुनों पर
काल का हर निमिष नर्तित
शारदे तेरे चरण में
एक कविता और अर्पित
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-आर० सी० शर्मा “आरसी”
 - rcsharmaarcee@yahoo.co.in

धवल  धारिणी  शारदे,  वीणा  सोहे  हाथ।
शब्द सुमन अर्पित करें, धर चरणों में माथ ॥

वागेश्वरी, सिद्धेश्वरी, विश्वेश्वरी तुम मात।
वाणी का वरदान दो, गीतों की  बरसात ॥

बन याचक  वर  मांगते, पूरी  कर  दे साध।
हम पानी के बुलबुले, तू कृपासिन्धु अगाध॥

शब्द पुष्प अर्पित करें, हम गीतों के हार ।
दिन दूना बढ़ता रहे, ज्ञान कृपा भण्डार ॥

इतनी  शीतलता  लिए,  है  माँ  तेरा  प्यार ।
ज्ञान पिपासु हम धरा, तू रिमझिम बरसात ॥

हम  तेरे  सुत  शारदे  दे  ऐसा  वरदान ।
फसल उगाएं ज्ञान की, भरें खेत खलिहान॥

आस लिए  हम  सब  खड़े, देखें तेरी ओर।
ज्यों चातक स्वाति तके, चंदा तके चकोर ।।
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ओमप्रकाश शुक्ल 



सरस्वती जय सरस्वती माँ, जय जय जय हे सरस्वती
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धवल वस्त्र विद्या की दाती, कर मे वीणा सदा सुहाती
प्रबल तेज मुखमण्डल शोभित, छवि उत्तम माँ सबको भाती
मुनि किन्नर नर नारि देवता, करें निरंतर सुखद आरती
सरस्वती जय सरस्वती माँ, जय जय जय हे सरस्वती....
प्रखर शब्द अति पुण्य भाव से, हम सब करते अर्चन माँ
हृदय विराजो हे सतरूपा, दूर करो हर अड़चन माँ
महाभद्रा हँसवाहिनी, जयति जयति जय मातु गोमती
सरस्वती जय सरस्वती माँ, जय जय जय हे सरस्वती....
सबको भाव प्रबल दो देवी, कृपा करो निज पुत्रों पर भी
सदा आपकी शरण रहे हम, सुख की छाँव करो हमपर भी
कलमकार की कलम डिगे कब, कृपा दृष्टि जब माता करती
सरस्वती जय सरस्वती माँ, जय जय जय हे सरस्वती....
ओम प्रकाश शुक्ल

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