कुल पेज दृश्य

बुधवार, 30 अगस्त 2017

doha karyashala

कार्यशाला:
चर्चा डॉ. शिवानी सिंह के दोहों पर
*
गागर मे सागर भरें भरें नयन मे नीर|
पिया गए परदेश तो कासे कह दे पीर||
तो अनावश्यक, प्रिय के जाने के बाद प्रिया पीर कहना चाहेगी या मन में छिपाना? प्रेम की विरह भावना को गुप्त रखना जाना करुणा को जन्म देता है.
.
गागर मे सागर भरें, भरें नयन मे नीर|
पिया गए परदेश मन, चुप रह, मत कह पीर||
*
सावन भादव तो गया गई सुहानी तीज|
कौनो जतन बताइए साजन जाए पसीज||
साजन जाए पसीज = १२
सावन-भादों तो गया, गई सुहानी तीज|
कुछ तो जतन बताइए, साजन सके पसीज||
*
प्रेम विरह की आग मे झुलस गई ये गात|
मिलन भई ना सांवरे उमर चली बलखात||
गात पुल्लिंग है., सांवरा पुल्लिंग, नारी देह की विशेषता उसकी कोमलता है, 'ये' तो कठोर भी हो सकता है.
प्रेम-विरह की आग में, झुलस गया मृदु गात|
किंतु न आया सांवरा, उमर चली बलखात||
*
प्रियतम तेरी याद में झुलस गई ये नार|
नयन बहे जो रात दिन भया समुन्दर खार||
.
प्रियतम! तेरी याद में, मुरझी मैं कचनार|
अश्रु बहे जो रात-दिन, हुआ समुन्दर खार||
कचनार में श्लेष एक पुष्प, कच्ची उम्र की नारी,
नयन नहीं अश्रु बहते हैं, जलना विरह की अंतिम अवस्था है, मुरझाना से सदी विरह की प्रतीति होती है.
*
अब तो दरस दिखाइए, क्यों है इतनी देर?
दर्पण देखूं रूप भी ढले साँझ की बेर|
क्यों है इतनी देर में दोषारोपण कर कारण पूछता है. दर्पण देखना सामान्य क्रिया है, इसमें उत्कंठा, ऊब, खीझ किसी भाव की अभिव्यक्ति नहीं है. रूप भी अर्थात रूप के साथ कुछ और भी ढल रहा है, वह क्या है?
.
अब तो दरस दिखाइए, सही न जाए देर.
रूप देख दर्पण थका, ढली साँझ की बेर
सही न जार देर - बेकली का भाव, रूप देख दर्पण थका श्लेष- रूप को बार-बार देखकर दर्पण थका, दर्पण में खुद को बार-बार देखकर रूप थका
*
टिप्पणी- १३-११ मात्रावृत्त, पदादि-चरणान्त व पदांत का लघु गुरु विधान-पालन या लय मात्र ही दोहा नहीं है. इन विधानों से दोहा की देह निर्मित होती है. उसमें प्राण संक्षिप्तता, सारगर्भितता, लाक्षणिकता, मर्मबेधकता तथा चारुता के पञ्च तत्वों से पड़ते हैं. इसलिए दोहा लिखकर तत्क्षण प्रकाशन न करें, उसका शिल्प और कथ्य दोनों जाँचें, तराशें, संवारें तब प्रस्तुत करें.
***

कोई टिप्पणी नहीं: