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शनिवार, 12 अगस्त 2017

baal geet

बाल गीत 
अपनी माँ का मुखड़ा..... 
संजीव वर्मा 'सलिल'


मुझको सबसे अच्छा लगता 
अपनी माँ का मुखड़ा.....   
*
सुबह उठाती गले लगाकर, 
फिर नहलाती है बहलाकर.
आँख मूँद, कर जोड़ पूजती 
प्रभु को सबकी कुशल मनाकर.
देती है ज्यादा प्रसाद फिर 
सबकी नजर बचाकर.   
आंचल में छिप जाता मैं 
ज्यों रहे गाय सँग बछड़ा.
मुझको सबसे अच्छा लगता 
अपनी माँ का मुखड़ा.....      
*
बारिश में छतरी आँचल की. 
ठंडी में गर्मी दामन की..  
गर्मी  में धोती का पंखा, 
पल्लू में छाया बादल की.
कभी डिठौना, कभी आँख में  
कोर बने काजल की..   
दूध पिलाती है गिलास भर -
कहे बनूँ मैं तगड़ा. ,
मुझको सबसे अच्छा लगता -
अपनी माँ का मुखड़ा!
***** 
salil.sanjiv@gmail.com 
http://divyanarmada.blogspot.com 
#हिंदी_ब्लॉगर 

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