आज का लेखा
.
प्रभु तो प्रभु है, ऊपर हो या नीचे हो.
नहीं रेल के प्रभु सा आंखें मीचे हो.
निचली श्रेणी की करता कुछ फ़िक्र न हो-
ऊँची श्रेणी के हित लिए गलीचे हो.
.
रेल पटरी से उतरते जा रही
यात्रियो को अन्त तक पहुँचा रही
टिकिट थोड़ी यात्रा का था लिया
पार भव से मुफ़्त में करवा रही.
.
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
बुधवार, 23 अगस्त 2017
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें