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रविवार, 27 अगस्त 2017

aaj ki rachna

कवि-मन की बात
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कैसा राष्ट्रवाद यह जिसमें अपराधी संरक्षित?
रहें न बाकी कहीं विपक्षी, सत्ता हेतु बुभुक्षित.
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गूँगे अफसर, अंधे नेता, लोकतंत्र बेहोश.
बिना मौत मरती है जनता, गरजो धरकर जोश.
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परंपरा धृतराष्ट्र की, खट्टर कर निर्वाह.
चीर-हरण जनतंत्र का, करवाते कह 'वाह'
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राज कौरवी हुआ नपुंसक, अँधा हुआ प्रशासन.
न्यायी विदुर उपेक्षित उनकी, बात न माने शासन.
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अंधभक्ति ने देशभक्ति का, आज किया है खून.
नाकारा सरकार-प्रशासन, शेर बिना नाखून.
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भारतमाता के दामन पर, लगा रहे हैं कीच.
देश डायर बाबा-चेले, हद दर्जे के नीच.
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राज-धर्म ही नहीं जानते, राज कर रहे कैसे लोग?
सत्य-न्याय की नीलामी कर, देशभक्ति का करते ढोंग.
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लोग न भूलो, याद रखो यह, फिर आयेंगे द्ववार पर.
इन्हें न चुनना, मार भागना, लोकतंत्र से प्यार कर.
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अंधभक्त घर जाकर सोचे, क्या पाया है क्या खोया?
आड़ धर्म की, दुराचार का, बीज आप ही क्यों बोया??
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salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com
#हिंदी_ब्लॉगर
२०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन
जबलपुर ४८२००१

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